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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Sunday, 24 June 2012

पद्य - ७८ - हम नञि रोकब


हम नञि रोकब



अहँ जाइ छी तऽ जाउ, हम नञि रोकब ।
किछु  सुनितहि जाउ, बरु नञि टोकब ।
हम प्रेम कयल,  थिक दोष हमर,  सच  मानल  सपनहि  जे  देखल ।।



अहँ जाइ छी तऽ जाउ, हम नञि रोकब ।
किछु  सुनितहि जाउ, बरु नञि टोकब ।
हम प्रेम कयल,  थिक दोष हमर,  सच  मानल  सपनहि  जे  देखल ।।


हम  नेह लगा, गलती  कयलहुँ ।
हम प्रीति जगा,  गलती कयलहुँ ।
नञि दोष अहाँ केर अछि कनिञो,  हम अपन विकट छवि नञि देखल ।।


हम स्नेहक धुनि मे, नञि सोचल ।
की अहाँ, की हम, से नञि देखल ।
छी  दण्डक  भागी  हमहि  सखी, हो अहँक हरेक दिन शुभ - मंगल ।।


अहँ जतय रही, सुख  सदिखन ।
हो  अहँक संग, सातो  सरगम ।
हम्मर  हिस्सा  मे  भलहि  नोर,  हो अहँक  हरेक पल मधु बोड़ल ।।




डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                



विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५४ ,  अंक ‍१०८ , ‍१५ जून २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२” मे प्रकाशित ।






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