हम नञि रोकब
अहँ जाइ छी तऽ जाउ, हम नञि रोकब ।
किछु सुनितहि जाउ, बरु नञि टोकब ।
हम प्रेम कयल, थिक दोष हमर, सच मानल सपनहि जे देखल ।।
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अहँ जाइ छी तऽ जाउ, हम नञि
रोकब ।
किछु सुनितहि जाउ, बरु नञि टोकब ।
हम प्रेम कयल, थिक दोष हमर,
सच मानल सपनहि
जे देखल ।।
हम नेह लगा, गलती
कयलहुँ ।
हम प्रीति जगा, गलती कयलहुँ ।
नञि दोष अहाँ केर अछि
कनिञो, हम अपन विकट छवि नञि देखल ।।
हम स्नेहक धुनि मे, नञि
सोचल ।
की अहाँ, की हम, से नञि
देखल ।
छी दण्डक
भागी हमहि सखी, हो अहँक हरेक दिन शुभ - मंगल ।।
अहँ जतय रही, सुख सदिखन ।
हो अहँक संग, सातो सरगम ।
हम्मर हिस्सा
मे भलहि नोर,
हो अहँक हरेक पल मधु बोड़ल ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली
इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५४ , अंक –१०८ , १५ जून २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२”
मे प्रकाशित ।
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