अप्पन नैना
सम्हार !
(गीत)
(गीत)
आँखि सुन्नर एहेन की पाओत हरीन ।
की तुलना करत गोरी तोरा सँ मीन ।
धन्य काजर भऽ गेल बनि एकर शिंगार ।
अप्पन नैना सम्हार !
गोरी कनखी ने मार !
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हाय ! सहलो ने जाइछ, तीर तेज - तर्रार ।
अप्पन नैना सम्हार !
गोरी कनखी ने मार !
केओ कहइत अछि नैन जेना सागर
वा झील ।
मीन युगल करय केलि वा हो
कमलदल नील ।
मुदा हमरा लगैछ ई सद्यः कटार ।
अप्पन नैना सम्हार !
गोरी कनखी ने मार !
आँखि सुन्नर
एहेन की पाओत
हरीन ।
की तुलना
करत गोरी तोरा
सँ मीन ।
धन्य काजर
भऽ गेल बनि एकर शिंगार ।
अप्पन नैना सम्हार !
गोरी कनखी ने मार !
थिक कारी मुदा मनोहारी
ई नैन ।
दूर रहितहुँ हमर छीनि
लेलक ई चैन ।
बिनु आहटिअहि कयलक हृदय आर – पार ।
अप्पन नैना सम्हार !
गोरी कनखी ने मार !
देन भगवानक तोरा ई
अनमोल छौ ।
मुल्य किछु
नञि मुदा बड़ एकर मोल
छौ ।
एकर आगाँ
निछाउर ई
सौंसे संसार ।
अप्पन नैना सम्हार !
गोरी कनखी ने मार !
“विदेह” पाक्षिक मैथिली
इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५४ , अंक –१०८ , १५ जून २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२”
मे प्रकाशित ।
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