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Monday, 25 June 2012

पद्य - ७९ - तोहर जिनगी मे वसन्तक लय


तोहर जिनगी मे वसन्तक लय





तोहर जिनगी मे वसन्तक लय,
हम्मर पतझड़  परवाहि ने अछि ।
तोहर  नेहक  भग्नावशेष  पर,
प्रेम विजय निज  चाह ने अछि ।।



तोहर जिनगी मे वसन्तक लय,
हम्मर पतझड़  परवाहि ने अछि ।
तोहर  नेहक  भग्नावशेष  पर,
प्रेम विजय निज  चाह ने अछि ।।


तोँ हमर ने भऽ सकलेँ, सरिपहु
अनकर होयबा पर आह ने अछि ।
तोहर सुख मे  हम्मर सुख छी,
स्वीकार्य तोहर दुख छाँह ने अछि ।।


हम प्यासल मरु मे  पानि बिना,
मरि जायब - से परवाहि ने अछि ।
बस  तोहर  जिनगी  हो  सुन्नर,
मन मे तोहर  अधलाहि ने अछि ।।


छल हमरहि प्रेम मे  दोष कोनहु,
तोरा पर सखि  अवसाद ने अछि ।
हो पूर तोहर  हर -  एक सपना,
नञि भेल हमर, से आह ने अछि ।।






डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”    


विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५४ , अंक ‍१०८ , ‍१५ जून २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२” मे प्रकाशित ।



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