तोहर जिनगी मे
वसन्तक लय
तोहर जिनगी मे वसन्तक लय,
हम्मर पतझड़ परवाहि ने अछि ।
तोहर नेहक भग्नावशेष पर,
प्रेम विजय निज चाह ने अछि ।।
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तोहर जिनगी मे
वसन्तक लय,
हम्मर पतझड़ परवाहि ने अछि ।
तोहर नेहक
भग्नावशेष पर,
प्रेम विजय निज चाह ने अछि ।।
तोँ हमर ने भऽ
सकलेँ, सरिपहु
अनकर होयबा पर आह ने अछि ।
तोहर सुख मे हम्मर सुख छी,
स्वीकार्य तोहर दुख छाँह ने अछि ।।
हम प्यासल मरु
मे पानि बिना,
मरि जायब - से परवाहि ने अछि ।
बस तोहर
जिनगी हो सुन्नर,
मन मे तोहर अधलाहि ने अछि ।।
छल हमरहि प्रेम
मे दोष कोनहु,
तोरा पर सखि अवसाद ने अछि ।
हो पूर तोहर हर - एक सपना,
नञि भेल हमर, से आह ने अछि ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली
इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५४ , अंक –१०८ , १५ जून २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२”
मे प्रकाशित ।
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