मैथिली
वर्णमाला (बाल कविता)
अ सँ अल्हुआ, आ सँ आलू, इ सँ
भेलै इजोत ।
ई सँ ईंटेबा उ सँ
उल्लू, ऊ
केर ऊन छै मोट ।।
ए सँ एक आ ऐ सँ
ऐहब, ओ सँ
भेलै ओसारा ।
औ प्रायः “अओ” लीखल जाइए, मैथिलीमे बेचारा ।।
अं अंगूर आ अः
विसर्ग केर चिन्हमात्र भऽ सूतल ।
ऋ सँ ऋषि आ ऋक्ष भालु छै, ऋचा वेदकेर बूझल ।।
ऋ केर दीर्घ रूप बिनु मैथिली, कऽ लैतछि संतोष ।
क कनैल, ख - खाट आ ग सँ
गदहा छै निर्दोष ।।
घ सँ घोड़ा
घास आ घोड़न, ङ
छै खाली हाथ
।१
च सँ चौकी, छ सँ
छौंकी, ज सँ भेलै जहाज ।।
झ सँ झब्बा
या झाबा कहू, ञ प्रारम्भ ने शब्द ।
ट सँ टमाटर, ठ सँ ठेला, ड डम्फा केर शब्द ।।
ढ सँ ढाकी – ढौआ – ढैंचा, ढ़ फराक उच्चार ।
तहिना ड आ ड़ मैथिलीमे, अलग - अलग उच्चार ।।
ढोलक केँ ढ़ोलक जुनि लीखू आ पढ़ुआ
केँ पढुआ ।
ड सँ डमरू, ड़ रब्बड़ मे, हिन्दी नञि
छी बौआ ।।
ढोढ़ी मे दुहु
संग - संग, तहिना ढाढ़स मे देखियौ ।
पढ़ै छी मैथिली मैथिली बाजू, हिन्दी सनि ने बजियौ ।।
ण सेहो निःशब्द मुदा उपयोग
बहुत अछि एकरो ।२
हण्डा - हण्डी, ठण्ढा - ठण्ढी, अण्डा - अण्डी सगरो
।।
त सँ तौला -
तबला - तरुआ, थ
सँ थौका फूलक ।
थऽन गाए बकरी आ महीषक, थाल पएर मे लागल ।।
द सँ दीप दूध आ दऽही, दूरा - दरबज्जा ओ दलान ।
ध सँ धरती धाप धरोहरि, धऽनी धोती धार आ धान ।।
न पाँचम व्यञ्जन छै दुलारू, बहुत जकर बेबहार छै ।
नदी नाह नढ़िआ आ नेबो, नारिकेर ओ नाक छै ।।
प सँ पानि आ फ
सँ फूल - फर, ब सँ बकरी बुझले ।
भ सँ भारत देश अपन छी, म
केर महिमा सुनि ले ।।
न सनि म केर
हिस्सामे सेहो, शब्दक बहुत पथार ।
म सँ मड़ुआ माछ मखान आ माए मैथिलीक प्यार ।।
य सँ यमुना कहबै जमुना,
र –
रस्सी मजगूत ।
ल सँ लावा चन् – चन् बाजय, लाबा
तकरे रूप ।।
संस्कृतक जे मूल शब्द, ओहिमे व केर बेबहार ।
मिथिलाभाषा व
केर बदला, ब केर बड़
उच्चार ।।
श सँ शंख - शरीफा - शलगम, ष केर मान छै अल्प ।
ष बहुधा मैथिली भाषामे, ख केर कायाकल्प
।।
भाषाकेँ “भाषा” पढ़ैछ केओ, आन कहैतछि “भाखा” ।
उच्चारण दुहु छी प्रशस्त, पर लिखना जाइछ “भाषा”।।
ष केँ बहुधा ख बजैत छी, भाषा कहलहुँ भाखा ।
षष्ठी – खष्ठी सुनने होएब,
अभिलाषा – अभिलाखा ।।
स सँ सिन्दूर सिउँथ आ सपरी, साबुन सेब सेमार ।
ह सँ हाथी - हाथ - हृदय आ ह सँ होइछ हजार ।।
क्ष – त्र – ज्ञ
संयुक्ताक्षर, मानैत अछि पुरना
भाषा ।
पर स्वतन्त्र सनि आखर तीनू, विचरए नवका भाषा ।।
क्षत्रिय – रक्षक – भक्षक - रक्षा मे क्ष हुलकी मारए ।
त्र – त्रिशूल, त्रिभुवन, त्रिवेणी; त्रि तँऽ तीन कहाबए
।।
ज्ञ सँ ज्ञान, आ ज्ञान सँ ज्ञानी, संज्ञा नाँओ कहाबए ।
विज्ञानक ई युग छी बौआ, जिनगी सरल बनाबए ।।
नोटः- एहि कवितामे विभक्ति चिन्हकेँ फुटका कऽ लीखल गेल अछि ताकि धियापुतासभकेँ पढ़बामे सुविधा होअए ।
ई कविता मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट
पत्रिका “विदेह” केर 190म अंक (15 नवम्बर 2015) (वर्ष 8, मास 95, अंक 190) केर "बालानां कृते" स्तम्भमे प्रकाशित ।
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