मधुश्रावणी गीत - १
सखी हे ! चलू
मधुबन फूल - पात लोढ़य लए ।
आयल मधुश्रावणी, अहिबात पूजय लए ।।
बितल आषाढ़, आयल
अछि साओन ।
ऋतु बरसातक परम सोहाओन ।
लागय वसुधा सुन्नर
अनुपम ।
चहु दिशि बाट
करैत’छि गमगम ।
सखी हे ! प्रकृतिक मनभाओन शिंगार देखय लए ।
आयल मधुश्रावणी, अहिबात पूजय लए ।।
कारी घटा देखि नाचय
मयूर ।
शोभित जहँ - तहँ बहु - विधि फूल ।
हरियर घास लसित भेल विपुला
।
उमड़ल जल सञो पोखरि
- सरिता ।
सखी हे ! मह - मह शीतल
बसात बहइए ।
आयल मधुश्रावणी, अहिबात पूजय लए ।।
फूल फुलायल भरि –
भरि डारि ।
चम्पा – चमेली आ नेवारि ।
देखितहि बनय
कनैलक कुञ्ज ।
लुबुधल जाहि पर
मधुपक पुञ्ज ।
सखी हे ! कामिनी - कञ्चन – कनैल लोढ़य लए ।
आयल मधुश्रावणी, अहिबात पूजय लए ।।
बैसलि डारि करैछ खग कलरव ।
गूँजय बेकल पपीहाक
मधु – स्वर ।
सखी हे ! कोइलियो प्रेमक
गीत गाबैए ।
आयल मधुश्रावणी, अहिबात पूजय लए ।।
उच्चारण संकेत :-
अंग्रेजी आदिक पोथी सभ मे “आन
भाषा – भाषी”क लेल वा “नवसिखिया” सभक लेल कोष्ठ मे “उच्चारण संकेत” (Pronunciations
/ Phœnetic symbols) देल रहैत छै । मैथिली मे
ई परिपाटी नहि, तथापि हमरा लगैत अछि जे देबाक चाही, तेँ एहि बेर सञो शुरू कए रहल
छी ।
मैथिली मे बहुधा “साहित्यिक
शब्द लेखन” ओ “शब्दोच्चारण”क बीच थोड़ेक अन्तर देखल जाइछ, जकरा “आन भाषा – भाषी मैथिली
शिक्षणार्थी” लोकनि वा “नवसिखिया” लोकनि ठीक सँ नञि बूझि पबैत छथि आ “हिन्दी
व्याकरण” केर आधार पर उच्चारण करैत छथि ।
बहुत बेर “मैथिल” लोकनि “सर्व
– साधारण गप्प – शप” मे तँ सही उच्चारण करैत छथि परञ्च जञो “लिखित मैथिली” केँ
पढ़ि कऽ उच्चारण करबाक हो तँ ओ “हिन्दी” व्याकरणक आधार पर उच्चारण करैत पाओल जाइत
छथि ।
एहि सभ कारण सँ कए बेर लिखल
कविता वा गीत वा गजल सभक उच्चारण, लय, ताल, मात्रा आदि बदलि जाइत अछि । ओना तँ एहि
बदलाव सभ केँ रोकब पुर्णतः सम्भव नञि आ पाठक ओ गायक लोकनिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता
सेहो । पर कएक बेर ई बदलाव एहि स्वरूपक होइछ जे अभिप्रेत लय, ताल पुर्णतया बदलि
जाइत अछि । नचारी, डिस्को भऽ जाइत अछि आ सुगम संगीत पॉप या रैप ।
तेँ उपरोक्त कारण सभक
द्वारेँ, हम अप्पन रचना मे प्रयुक्त किछु शब्द सभक उच्चारण संकेत एहि बेर सँ देअब
शुरू कएल अछि ।
क्रम संख्या
|
लिखित शब्द
|
अभिप्रेत उच्चारण
|
१
|
अहिबात
|
अहिबात, ऐहबात
|
२
|
साओन
|
साओन, साउन
|
३
|
सोहाओन
|
सोहाओन, सओहावन
|
४
|
मनभाओन
|
मनभाओन, मनभावन
|
५
|
करैत’छि
|
करैतैछ, करै अछि
|
६
|
सरिता
|
सैरता
|
७
|
पोखरि
|
पोखैर
|
८
|
भरि
|
भइर, भैर
|
९
|
डारि
|
डाइर, डाइढ़
|
१०
|
नेवारि
|
नेवाइर
|
११
|
देखितहि
|
देखितहि, देखिते
|
१२
|
जाहि
|
जाहि, जइ
|
१३
|
बैसलि
|
बैसैल
|
१४
|
केर
(सम्बन्ध कारक
विभक्ति)
|
केर (।।, एकमात्रिक दू
आखर/अक्षर),
के (ऽ, द्विमात्रिक एक आखर/अक्षर )
|
१५
|
केँ
(कर्म ओ सम्प्रदान
कारक विभ॰)
|
केँ (ऽ, द्विमात्रिक),
के
(ऽ, द्विमात्रिक)
|
१६
|
के
(प्रश्नवाचक सर्वनाम
वा प्रश्नवाचक सार्वनामिक सम्बोधन)
|
के
(एक-, द्वि- या त्रिमात्रिक) |
१७
|
अछि
|
अछि, अइछ, ऐछ, अइ
|
१८
|
छन्हि
|
छन्हि, छैन्ह, छैन
|
१९
|
छथि
|
छथि, छैथ
|
डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”
“विदेह” पाक्षिक मैथिली
इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५५, अंक –१०९ , ०१ जुलाई २०१२ मे “स्तम्भ ३॰२”
मे प्रकाशित ।
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