रौदी – दाही
(बाल कविता)
ई  विदेह – मिथिला  केर  धरती,
अजबहि एक्कर खिस्सा
यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी  हारि
ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।
देखू   सूरज   माथ 
चढ़ै  अछि ।
माथ सँ टप - टप घाम चुबै
अछि ।
धरती जरइत अछि  धह - धह कऽ,
बरखा  दाइ   निपत्ता
 यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी 
हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।
रस्तेँ  – 
पएरेँ,    धूर    उड़ैए ।
कुक्कुरहु  हकमए, 
छाँह  तकैए ।
कोन   दैत्य   केर 
पहरा  पड़लै,
पोखरि – सूखल   खत्ता
यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी 
हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।
जोतल  खेत 
पड़ल अछि परती ।
दमकल केर अछि बाढ़ल चलती ।
दमकल केर सेहो दम अछि निकलल,
जड़ि गेल बीया  कत्ता 
यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी 
हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।
पानि पतालहि धँसैत गेल अछि
।
कऽल ईनारहु भँसकि गेल अछि ।
सूतल   इन्द्रदेव 
 केँ   मनबथि,
झिझिया खेलथि  धीया यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी 
हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।
बरखा बरिसल,  लोक नचैतछि ।
हऽर - बरद आ बीया तकैतछि ।
जहिना - तहिना, जतबा - जे
हो,
धनरोपनी भेल  बढ़िञा यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी 
हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।
बरखा झर – झर बरसि रहल अछि
।
हृदय लोक केर  हहरि  रहल अछि ।
इन्द्रक कोप,  की  सभ
मेहनति केँ,
करत   फेर  बेपत्ता  यौ  ?
एहि ठाँ  जिनगी 
हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।
कोशी  उमरल,  कमला
 उफनल ।
बागमती – गण्डक  सेहो  चतरल
।
सहमि  गेल   हँसइत   जिनगी,
की करतीह कोसी
मैय्या यौ ?
एहि ठाँ  जिनगी 
हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।
बान्ह टुटल कत धार
फुटल नव ।
भाँसि दहायल,
जलमज्जित सभ ।
लोक   मरैए,   हक्कन   कनैए,
गामक – गाम  निपत्ता यौ ।
एहि ठाँ  जिनगी 
हारि ने मानय,
केहनो विषम  समस्या यौ ।।
 


 
 
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