मिथिलाक्षर
सीखू
यौ मैथिल ! मिथिलाक्षर सीखू ।
मिथिलाभाषा तिरहुतेँ
लीखू ।
हम कहलहुँ, हम सीख लेने छी, अहाँ
कहै छी फेरो
सीखू ।।
“मिथिलाक्षर अभ्यास
पुस्तिका”, आ “ मिथिलाक्षर शिक्षा ” ।
पढ़लहुँ, सीखलहुँ,
लीखए लगलहुँ, जे
वैदेहीक इच्छा ।
क – ख – ग - घ सभहक
एक्के, पर किछु वर्णक अन्तर ।
पर सभसँ
दिक्कत करैत छल,
मात्रा - संयुक्ताक्षर ।
अहँ कहलहुँ ओ हस्तलिखित छल, टाइप –
प्रिण्ट सभ सेहो सीखू ।
हम कहलहुँ, हम सीख लेने छी, अहाँ
कहै छी फेरो
सीखू ।।
मरणासन्न “लिपि -
वैदेही”, सभकेओ चाहथि जीबए
।
पर जञो एतेक रास संशोधक, ककर उचित – की सीखए ?
“झा बाबू” नेपालसँ अयलाह,
“मिथिला” फॉण्टकेँ नेने ।
“पाण्डेयजी” भारतसँ गरजलाह, “तिरहुता” हम छी धेने ।
“मिथिला आवाज”क
किछु अलगेँ, ककर
सही – की सीखू ?
हम कहलहुँ, हम सीख लेने छी, अहाँ
कहै छी फेरो
सीखू ।।
ह्रस्व - मात्रा मिथिलाक्षरमे,
धरइछ बहुते रूप ।
संगहि संयुक्ताक्षर बहुधा, धएने रूप अनूप ।
ऊपरसँ नित नव संशोधन,
एकक
दस – दस रूप ।
शिक्षार्थीसभ असमंजसमे, बैसल छथि सभ चूप
।
सोचि
रहल छी - रहए दियौ, ई
व्यर्थक झंझटि दूरे
फेंकू ।
हम कहलहुँ, हम सीख लेने छी, अहाँ
कहै छी फेरो
सीखू ।।
तीन तिरहुतिया तेरह पाक, आ मुण्डे – मुण्डे मतिर्भिन्ना ।
ककरो केओ सूनए – नञि
राजी, अपनहि बजबए तक्धिन्ना ।
हम कहैत
छी - सुनू भाइ यौ,
अपनहिमे बैसार करू ।
एक फॉण्ट सहमतिसँ चूनू, बाद
प्रचार – प्रसार करू ।
तखने
मृत – सञ्जिवनी भेँटत, नञि तँऽ
तिरहुता मुइले बूझू ।
हम कहलहुँ, हम सीख लेने छी, अहाँ
कहै छी फेरो
सीखू ।।
01 JUNE 2014 कऽ प्रकाशनार्थ “मिथिलाञ्चल टुडे” केर सम्पादकीय
कार्यालयकेँ प्रेषित; तत्पश्चात (मिथिलांचल टुडेक अनियमित प्रकाशनक कारणेँ) 27 DEC. 2014 कऽ प्रकाशनार्थ “मिथिला दर्शन” केर सम्पादकीय
कार्यालयकेँ प्रेषित ।
बडसुन्दर व्यङ्ग्य । मिथिला आ मैथिली'क दुर्दशा एहि कारणें भय रहल अछि , कोनो सन्देह ने । मैथिलजन'क पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता आ अहम्मन्यता जाधरि ने मरत , मैथिली'क विकास दिवास्वप्ने रहत ।
ReplyDeleteधन्यवाद श्रीमान ।
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