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Wednesday, 6 June 2012

पद्य - ७० - हमहूँ आई सँ इस्कूल जयबै (बालगीत)


हमहूँ आई सँ इस्कूल जयबै
(बालगीत)



हमहूँ आई सँ इस्कूल जयबै,
सीखबै  बहुते  बात ।
आब ने रहबै मूरूख बनि कऽ,
करबै ने कोनो लाथ ।।




हमहूँ आई सँ इस्कूल जयबै,
सीखबै  बहुते  बात ।
आब ने रहबै मूरूख बनि कऽ,
करबै ने कोनो लाथ ।।


धनरोपनी - कमठैनी लए ने,
करब पढ़ाई केँ कात ।
आब ने पेट – दरद फुसिये,
ने आब दुखेतै माथ ।।


हमहूँ पढ़बै भरि संसार, आ
मिथिला केर इतिहास ।
पढ़बै कोना हेतै भारत, आ
मिथिला केर विकास ।।


की   विद्यापति,   प्रेमचन्द,
गोर्की, होमर लिखलाह ।
कतऽ ठाढ़ छी, की करैत छी,
नीक छी की, अधलाह ??


हमहूँ पढ़बै चान – सुरूज आ
ग्रह - उपग्रहक खगोल ।
मिथिला – भारत केर चौहद्दी,
दुनिञा  केर   भूगोल ।।


हमहूँ सीखबै नापब – जोखब,
गणितक औना पथारी ।
नञि हिसाब सँ हम घबड़एबै,
कतबो  हो  ओ भारी ।।


हमहूँ बुझबै जीव – जन्तु केर,
बनल  कोना  छै  देह ।
कोना यन्त्र सभ काज करै छै,
अणु – परमाणुक  भेद ।।


धियापुता मिथिलाक नान्हि टा,
पर  बड़का  अभिलाषा ।
साक्षर भारत, साक्षर मिथिला,
शिक्षित  मिथिलाबासा ।।



                         
                                   

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका,   वर्ष , मास ५४,  अंक ‍१०६,  ‍दिनांक - १५ मई २०१२ , स्तम्भ – बालानां कृते, मे प्रकाशित । 

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