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Wednesday 6 June 2012

पद्य - ६९ - मिलन गीत


मिलन गीत




सखी !   की हम कहू,  फुजय  लाजेँ  ने ठोर ।
हम बुझलियै ने आई,  कोना भऽ गेलै भोर ।।







सखी !
की हम कहू,
फुजय लाजेँ ने ठोर ।
हम बुझलियै ने आई,  कोना भऽ गेलै भोर ।।



सखी धक् – धक् करैत छल हमर जिया ।
ता बजलाह,  सुनू  हे  ऐ  प्राण – प्रिया !
आउ !
पहिरायब   हऽम   आई,
          अहाँ  केँ  पटोर ।
हम  बुझलियै ने आई,  कोना भऽ गेलै भोर ।।



हाथ धयलन्हि पिया, गेलहुँ हम तँ लजाय ।
पुनः  लेलन्हि  मोरा, अपन छाती सटाय ।
चूमि   लेलन्हि,
 चट  दऽ,
        हमर   दुहु   ठोर ।
हम  बुझलियै ने आई,  कोना भऽ गेलै भोर ।।



मेरु  पर  सँ  देलन्हि पिया अम्बर हटाय ।
पुनः  लेलन्हि  सखी, निज  अंक  बैसाय ।
सखी !
 लाजेँ   सिहरि   उठल,
      हमर  पोर – पोर ।
हम  बुझलियै ने आई,  कोना भऽ गेलै भोर ।।



आँखि   मुनने   छलहुँ,  जेना  छुई – मुई ।
पिया अचकहि मे सखी, फोलि देलन्हि नीबी ।
आ कि,
  एतबहि  मे  सखी,
  मिझा  गेलै  ईजोत ।
हम  बुझलियै ने आई,  कोना भऽ गेलै भोर ।।





विदेह” पाक्षिक मैथिली इ  पत्रिकावर्ष ,  मास ५३ ,  अंक ‍१०६‍१५ मई २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७”  मे प्रकाशित ।



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