कोन खुशिएँ
नाचि रहलह
अजेय दुर्गक, आइ हर प्राचीर विक्षत (सन्दर्भ छायाचित्रः- नौलक्खा महल, राजनगर, मधुबनी, मिथिला, भारत) |
मोन कहइछ “शशि” ने तोँ होरी मनाबह ।
कोन खुशिएँ
नाचि रहलह - से बताबह ??
स्वर्ग मिथिला बनल छह,
नर्कहु सँ बत्तर ।
अजेय दुर्गक, आइ हर
प्राचीर विक्षत ।
माए मैथिली – तोहर जननी,
केर हृदय मे,
व्याप्त दुख केर
होलिका - पहिने जराबह ।। मोन कहइछ ..........
जनकजा सीताक
जे छल मातृभाषा ।
महाकवि विद्यापतिक जे
कीर्त्ति – गाथा ।
मेघनादक फाँस
मे से छह अचेतन,
आनि संजीवनि तोँ “शशि” तकरा
जियाबह ।। मोन कहइछ ..........
गाबि थाकल जकर
महिमा,
शास्त्र वेद पुराण
अगनित ।
आइ तकरा नञि भेटल अछि,
हा ! अपन पहिचान समुचित ।
आइ लागल छह ग्रहण मिथिलाक रवि केँ,
एहेन दुर्गति पर
ने तोँ डम्फा बजाबह ।। मोन कहइछ ..........
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५१ , अंक –१०२ , १५ मार्च २०१२ मे “स्तम्भ
३॰७” मे प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment