Pages

मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

Powered By Blogger

Saturday 24 March 2012

पद्य - ५४ - कोन खुशिएँ नाचि रहलह

 
कोन  खुशिएँ  नाचि रहलह



अजेय दुर्गक,  आइ हर  प्राचीर  विक्षत
(सन्दर्भ छायाचित्रः- नौलक्खा महल, राजनगर, मधुबनी, मिथिला, भारत) 



मोन  कहइछ “शशि” ने तोँ  होरी मनाबह ।
कोन  खुशिएँ  नाचि रहलह - से बताबह ??



स्वर्ग मिथिला बनल छह, नर्कहु सँ बत्तर ।
अजेय दुर्गक,  आइ हर  प्राचीर  विक्षत ।
माए मैथिली – तोहर जननी, केर हृदय मे,
व्याप्त  दुख केर  होलिका - पहिने जराबह ।। मोन कहइछ ..........



जनकजा  सीताक  जे छल मातृभाषा ।
महाकवि विद्यापतिक जे कीर्त्ति – गाथा ।
मेघनादक  फाँस  मे  से  छह अचेतन,
आनि संजीवनि तोँ “शशि” तकरा जियाबह ।। मोन कहइछ ..........



गाबि  थाकल  जकर  महिमा,
शास्त्र  वेद  पुराण  अगनित ।
आइ तकरा  नञि भेटल अछि,
हा !  अपन पहिचान समुचित ।
आइ लागल छह ग्रहण  मिथिलाक रवि केँ,
एहेन  दुर्गति पर  ने तोँ  डम्फा बजाबह ।। मोन कहइछ ..........




डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५१ , अंक ‍१०२ , ‍१५ मार्च २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।

No comments:

Post a Comment