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Saturday, 24 March 2012

पद्य - ५२ - हमरा जुनि करिहेँ याद सखी


हमरा जुनि करिहेँ याद सखी





हमरा  जुनि  करिहेँ  याद  सखी 




हमरा  जुनि  करिहेँ  याद  सखी,
हम तऽ किछु  कालक संगी छी ।
जीवनक  जँ  राह  अनन्त  कही,
हम क्षण भरि केर बस संगी छी ।।


आइ एहि आङ्गन, आइ ओहि आङ्गन ।
हम  एहि  कानन  सँ  ओहि  कानन ।
नञि अता – पता हम्मर किछुओ,
हम  मुक्त गगन  केर पंछी छी ।
हमरा  जुनि  करिहेँ  याद  सखी,
हम तऽ किछु  कालक संगी छी ।।


जिनगी  मे  बहुतहु  भेंट  होयत ।
बहुतो  संगी  सभ  छुटि  जायत ।
एक जायत  तऽ  दोसर  आओत,
अछि  जीवन  तऽ  बहुरंगी  ई ।
हमरा  जुनि  करिहेँ  याद  सखी,
हम तऽ किछु  कालक संगी छी ।।


एक क्षण जञो हो मधुमय बसन्त ।
दोसर  सम्भव  पतझड़ - हेमन्त ।
थिक  समय-समय केर  फेर सखी,
हम मित्र,  बनल  प्रतिद्वन्दी छी ।
हमरा  जुनि  करिहेँ  याद  सखी,
हम तऽ किछु  कालक संगी छी ।।





डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५१ , अंक ‍१०२ , ‍१५ मार्च २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।

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