हमरा जुनि करिहेँ
याद सखी
हमरा जुनि
करिहेँ याद सखी,
हम तऽ किछु कालक संगी छी ।
जीवनक जँ
राह अनन्त कही,
हम क्षण भरि केर बस
संगी छी ।।
आइ एहि आङ्गन, आइ ओहि आङ्गन
।
हम एहि
कानन सँ ओहि
कानन ।
नञि अता – पता हम्मर किछुओ,
हम मुक्त गगन
केर पंछी छी ।
हमरा जुनि
करिहेँ याद सखी,
हम तऽ किछु कालक संगी छी ।।
जिनगी मे
बहुतहु भेंट होयत ।
बहुतो संगी
सभ छुटि जायत ।
एक जायत तऽ
दोसर आओत,
अछि जीवन
तऽ बहुरंगी ई ।
हमरा जुनि
करिहेँ याद सखी,
हम तऽ किछु कालक संगी छी ।।
एक क्षण जञो हो मधुमय बसन्त
।
दोसर सम्भव
पतझड़ - हेमन्त ।
थिक समय-समय केर
फेर सखी,
हम मित्र, बनल
प्रतिद्वन्दी छी ।
हमरा जुनि
करिहेँ याद सखी,
हम तऽ किछु कालक संगी छी ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५१ , अंक –१०२ , १५ मार्च २०१२ मे “स्तम्भ
३॰७” मे प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment