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Tuesday, 6 March 2012

पद्य - ४७ - छायल मिथिला मे आजु बसन्त



छायल मिथिला मे आजु बसन्त
(गीत)



यत्र – तत्र  देखबा मे  आबए,राधा  आ  कृष्णक   टोली ।
लाले रंग साड़ी रंग सँ तीतल, हरियर  रंग  राँगल  चोली ।।



जेम्हरहि देखू, तेम्हर आइ अछि भाँति – भाँति केर रंग ।
आइ भेल  बेमत्त  लोक सभ,  पीबि कऽ  नबका  भंग ।।



भाँग पीबि कऽ आइ ई बुढ़हो,
पओलन्हि   नऽव   खुमारी।
काया लकलक,  दाँतहु टूटल,
पर  नस – नस मे जुआनी ।
छायल चहु दिशि जेना उमंग ।
आइ भेल  बेमत्त  लोक सभ,  पीबि कऽ  नबका  भंग ।।



तोड़ि  आजु  संकल्प – प्रतिज्ञा,
तरुणी     संग    ब्रम्हचारी ।*
छाड़ि ध्यान-तप-त्याग ओ पूजा,
कामिनी     संग    सञ्चारी ।
छायल अंग – अंग जेना अनंग ।
आइ भेल  बेमत्त  लोक सभ,  पीबि कऽ  नबका  भंग ।।



यत्र – तत्र  देखबा मे  आबए,
राधा  आ  कृष्णक   टोली ।
लाले रंग साड़ी रंग सँ तीतल,
हरियर  रंग  राँगल  चोली ।
छायल मिथिला मे आजु बसन्त ।
आइ भेल  बेमत्त  लोक सभ,  पीबि कऽ  नबका  भंग ।।






* ई पाँती सभ प्रतीकात्मक मात्र थिक । कोनहु वर्ग विशेष वा समुदाय विशेष पर आक्षेप नञि ।







विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५१, अंक ‍१०१ , ‍०१ मार्च २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।



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