छायल मिथिला मे आजु बसन्त
(गीत)
यत्र – तत्र देखबा मे
आबए,राधा आ
कृष्णक टोली ।
लाले रंग साड़ी रंग
सँ तीतल, हरियर रंग
राँगल चोली ।।
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जेम्हरहि देखू, तेम्हर आइ
अछि भाँति – भाँति केर रंग ।
आइ भेल बेमत्त
लोक सभ, पीबि कऽ नबका
भंग ।।
भाँग पीबि कऽ आइ ई
बुढ़हो,
पओलन्हि नऽव
खुमारी।
काया लकलक, दाँतहु टूटल,
पर नस – नस मे जुआनी ।
छायल चहु दिशि जेना उमंग ।
आइ भेल बेमत्त
लोक सभ, पीबि कऽ नबका
भंग ।।
तोड़ि आजु
संकल्प – प्रतिज्ञा,
तरुणी संग
ब्रम्हचारी ।*
छाड़ि
ध्यान-तप-त्याग ओ पूजा,
कामिनी संग
सञ्चारी ।
छायल अंग – अंग जेना अनंग ।
आइ भेल बेमत्त
लोक सभ, पीबि कऽ नबका
भंग ।।
यत्र – तत्र देखबा मे
आबए,
राधा आ
कृष्णक टोली ।
लाले रंग साड़ी रंग
सँ तीतल,
हरियर रंग
राँगल चोली ।
छायल मिथिला मे आजु बसन्त ।
आइ भेल बेमत्त
लोक सभ, पीबि कऽ नबका
भंग ।।
* ई पाँती सभ प्रतीकात्मक मात्र थिक । कोनहु वर्ग विशेष वा समुदाय विशेष पर
आक्षेप नञि ।
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