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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Monday, 5 March 2012

पद्य - ४३ - देखू आयल बसन्त


देखू आयल बसन्त
(गीत)



लागय  धरती  केर  कण – कण जीवन्त 



बीति गेल,  बीति गेल,  देखू बीतल हेमन्त ।
निज दल-बल केर संग, देखू आयल बसन्त ।।


हवा  मदहोश  बहय,  मोन उतड़ए – चढ़ए ।
जनु   सबतरि,   अछि   छायल   अनंग ।।


खग  कलरव  करय,  राह  गमगम करय ।
गूँजय  कोयलीक  स्वर,   दिग – दिगन्त ।।


देखू  केसर,  पलाश,  बेली, चम्पा, गुलाब ।
भेल   सुरभित,   धरा    संग   अनन्त ।।


विरह  वेदना बढ़ल,  मिलन सपना सजल ।
रम्य  लगइत  अछि,   सुरूजक  किरण ।।


नऽव शाखी* उगल, आयल किशलय नवल ।
लागय  धरती  केर  कण – कण जीवन्त ।।





* शाखी = शाखायुक्त = गाछ - बिरिछ






विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५१, अंक ‍१०१ , ‍०१ मार्च २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।


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