की थिक मिथिला ???
....................के छथि मैथिल ???
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"दरभंगा प्राचीर" केर एक गोट भाग जकरा "यूरोपिय गेस्ट हाउस" कहल जाइत अछि - मिथिलाक नञि अपितु विश्व धरोहरि होयबाक योग्यता रखैछ । स्मारक थिक मिथिलाक गौरवशाली इतिहासक । |
की थिक मिथिला ? के छथि मैथिल ? हम कहैत छी ओरहि सँ ।
मिथिलावासी सुनह पिहानी, हम कहैत छी तोरहि सँ ।।
- श्री
रविन्द्रनाथ ठाकुर
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राजनगर (मधुबनी) स्थित "नौलक्खा महल" केर भग्नावशेष, जे कि १९३४ ई॰ आ बाद मे १९८८ ई॰ केर भूकम्प मे क्षतिग्रस्त भेल । पर तइयो ई मिथिलाक गौरवशाली अतीतक साक्षी अछि । क्षतिग्रस्तहु भेला पर ई पर्यटनक एक गोट महत्त्वपुर्ण स्थल भऽ सकैत अछि ।
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वास्तव
मे की थिक मिथिला आ के छथि मैथिल - ई प्रश्न हर मिथिलावासी अपना आप सँ पूछि रहल
छथि आ अथक प्रयासक बादो सोझ – सोझ उतारा नहि भेटि रहल छन्हि । एहि सोझ प्रश्नक बहुत
सोझ उत्तर थिक जकरा किछु “अज्ञात मिथिला विरोधी शक्ति” सभ ओझड़ी लगा देने अछि आ
ओझड़ी तेना ने लटपटायल अछि जे एहि मकरजाल सँ निकलबाक प्रयास मे मैथिल लोकनि स्वयं
आओरो ओझड़ायले जा रहल छथि । एहि अत्यन्त सोझ प्रश्नक बहुतहि सोझ सन उत्तर रखबाक
प्रयत्न हम आइ एहि ठाम कऽ रहल छी ।
पुराण
सभ मे वर्णित राजा मनुक पौत्र, इक्ष्वाकु वंशी “निमि” अयोध्या सँ आगाँ बढ़ि
शालिग्रामी (गण्डक) नदी केँ टपि कऽ एक टा राज्यक स्थापना कयलन्हि जकर राजधानी “जयन्तपुर” छल । इएह “निमि” किछु
कारणवश (एकर कारण पर प्रकाश देनिहार कम सँ कम ३ टा कथा पुराणादि मे वर्णित अछि) “विदेह” कहओलन्हि आ आगाँ हिनकर
उत्तराधिकारी सभ केँ सेहो “विदेह” वा “वैदेह” (विदेहक वंशज) कहि कऽ सम्बोधित कयल गेल । राजा केँ पिता सदृश
मानबाक कारणेँ वा पिता समान राज्यक देखभाल करबाक कारणेँ हिनका “जनक” उपाधि सेहो देल गेल – जे
कि बादक सभ विदेहवंशी राजा लोकनिक उपाधि वा पर्याय बनल रहल । एहि प्रकारेँ “निमि जनक” सेहो हिनकहि नाम छल । हिनकहि
वर्णन शतपथ ब्रह्मण मे “विदेघमाथव” नाम सँ भेटैछ कारण दुनु गोटे एक्कहि भू – भाग पर राज करैत छलाह आ
दुनु गोटेक पुरोहित “ब्रह्मर्षि गौतम” छलथिन्ह । हिनकहि नाम पर एहि राज्यक नाँव “विदेह” पड़ल ।
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"श्री जानकी मन्दिर" (सम्प्रति नेपाल मे) - मिथिलाक गौरवशाली अतीतक स्मरण करबैछ । याद दियाबैछ जनक राजवंशक - जतए सँ मिथिलाक इतिहास प्रारम्भ होइछ । वर्णित अछि कि मिथिलाक भूमि दलदल होयबाक कारणेँ रहबाक योग्य नञि छल आ तेँ जंगल केँ काटि आ अनेकानेक यज्ञ कए "निमि जनक" एहि भूमि केँ रहबा योग्य बनओलन्हि । एखनहु गण्डक, कोशी (कोसी) आ एहि नदी सभक अगनित धार एहि बातक पुष्टि करैछ । |
बाद मे
“निमि जनक” केर पुत्र “मिथि जनक” विदेह साम्रज्यक राजा भेलाह आ विदेहक राजधानी वा अन्तःपुर केर नाम
जयन्तपुर सँ बदलि कऽ हुनिकहि नाम
पर “मिथिलापुरी” या “मिथिला नगरी” पड़ि गेल । बाद मे “मिथिला”
केर अर्थ प्रसार भेल आ ओ विदेहक पर्याय बनि समस्त "विदेह" साम्राज्यक द्योतक बनल । एहि
प्रकारेँ “विदेह” राज्यक दोसर नाम “मिथिला” भेल । अन्तःपुर केर नाँव “मिथिलापुरी” या “मिथिला नगरी” सँ बदलि कऽ “जनकपुर” या “जनकपुरी” भऽ गेल । ई घटना गवाह
थिक जे प्रजाक बीच मिथि जनक अपन पिता निमि जनक सँ बेशी प्रतिष्ठित भेलाह ।
“निमि जनक” व जनक राजवंशक सभ राजा लोकनि प्रकाण्ड विद्वान रहथि –
मात्र धर्मशास्त्रे नहि अपितु ओहि समयक अन्यान्य सभ विधाक । आयुर्वेदक आठ अंग मे
सँ एक अंग “शालाक्य तन्त्र” कहबैछ, जाहि मे उर्ध्वजत्रुगत अंग (Supra clavicular organs = ears, eyes, nose, throat, brain & teeth =
modern ENT + Opthalmology + Dentistry + Encephalon) सभक चिकित्सा
व शस्त्रकर्म अबैत अछि । निमि जनक आयुर्वेदक एहि शाखा केर प्रणेता वा जनक (Father Of The SHĀLĀKYA TANTRA) मानल जाइत छथि ।
एहि विषय पर
हुनक लिखित ग्रण्थ “वैद्यसन्देहभञ्जन” एखन अप्राप्य अछि पर सुश्रुत संहिता आदि आयुर्वेदक ग्रण्थ
सभ मे ओहि ग्रण्थक संदर्भित अंश सभ भेटैछ ( ई सन्दर्भ सभ एहि बातक प्रमाण थिक कि "जनक" कोनो मिथक वा महाकाव्यक काल्पनिक पात्र नञि छलाह । मिथिलाक अस्तित्व केँ मात्र बौद्ध साहित्य मे वर्णित महाजनपद सभक काल सँ मानचित्र पर देखायब आ ओहि सँ पहिने नञि देखायब सरासर बदमाशी थिक ) । बाद मे “कराल
जनक” धरि ई परम्परा चलैत रहल आ कराल
जनकक किछु विचार वैभिन्यक चर्च सेहो सुश्रुत संहिता आदि मे भेटैत अछि ।
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श्री जानकी (सीता / सिया / वैदेही) जन्मभूमि - उर्विजा कुण्ड - सीतामढ़ी । जतए हऽर चलओला पर धरती सँ "सीता" नामक रत्न बहार भेलीह । |
जनक राजवंशक
आन प्रमुख वा उल्लेखनिय राजा रहथि “सिरध्वज जनक” (सीताजी आ माण्डवीजीक पिता), “कुशध्वज
जनक” ( सीताजीक पित्ती आ उर्मिलाजी आ श्रुतिकिर्त्तिजीक पिता, ओ राजा नञि रहथि), “कृति
जनक”, “कीर्त्ति जनक”, “बहुलाश्व जनक” (महाभारतक समयक) आ “कराल
जनक” । “कराल जनक” केर विचारधारा
पुर्ववर्ती जनक लोकनि सँ साम्य नञि रखैत छल तेँ प्रायः हुनक नामक संग शास्त्र सभ
मे जनक प्रत्यय /
उपाधि नहि भेटैछ – सिर्फ “कराल” नामोल्लेख भेटैछ । ओ अपन कुकृत्यक कारणेँ
राज्यच्युत आ निर्वासित भेलाह ।
जनक राजवंशक
समाप्तिक बाद “मिथिला” बहुतहि छोट – छोट इकाई सभ मे बँटि गेल – एहि मे सँ हरेक
भाग स्थानीय जनसमूह द्वारा चुनल गेल “गण” (स्थानीय
निर्वाचित राजा) द्वारा शाशित छल – एहि
प्रकारक व्यवस्था “गणतन्त्र” कहल गेल । ई विश्व पटल पर अपना तरहक प्रजातण्त्र
/ जनतन्त्र / गणतन्त्र केर पहिल
व्यवस्था छल । यद्यपि ई विभाजित भू – भाग वा इकाई सभ अलग – अलग गण वा स्थानीय राजा सभ सँ
शाशित छल तथापि “मगध” सँ चलि रहल शीतयुद्धक कारणैँ सैन्य व सामरिक स्तर पर एकजुट
छल (ठीक ओहिना जेना कि पहिनुका सोवियत संघ छल वा एखन संयुक्त राज्य अमेरिका वा भारतिय
गणतन्त्र संघ वा यूरोपिय संघ अछि) । एहि प्रकारेँ मिथिला वा विदेह राज्यक स्थान एक
संघ वा महासंघ लऽ लेलक, जकर नाम राखल गेल “वज्जि महासंघ / बज्जि महासंघ / बज्जि महाजनपद / वज्जि महाजनपद” । तेँ एहि प्रकारेँ "वज्जि वा बज्जि" विदेह वा मिथिला केर पर्यायी नाँव भेल, परस्पर पृथक राज्य नञि ।
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"वैशाली" स्थित "विश्व शान्ति स्तूप" जे कि "अजातशत्रु" द्वारा शीतयुद्ध मे भेल पराजयक परिचायक छी । |
बज्जि महासंघ
मूलतः मिथिला केर विखण्डन सँ बनल “मैथिल
लघु राज्य” वा "मैथिल लघु जनपद"
सभक सामुहिक संघ छल जाहि मे नेपालक एक – आध टा “अमैथिल लघु राज्य” सभ सेहो सम्मिलित भेल ।
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"वैशाली" स्थित "अशोक स्तम्भ" आ बौद्ध स्तूपक भग्नावशेष जे कि अजातशत्रु केर बाद अशोक धरिक आधिपत्यक याद दियाबैछ । वैशाली पर भलहि किछु समय धरि मगधक अधिकार रहल हो परञ्च ओहि सँ पहिने मूल रूपेण ओ "विदेह / मिथिला" केर भाग छल आ तकर बादहु मिथिलहि केर भाग रहल आ एखनहु अछि । |
“वैशाली” मिथिलाक विखण्डन सँ बनल उपरोक्त “मैथिल लघु राज्य” सभ मे सँ एक छल । ओहि समय मे लुम्बिनी वा लिच्छवी (नेपाल)
सँ वैशाली धरि एक गोट राजमार्ग छल जे बीच मे कुशीनगर आ श्रावस्ती सँ होइत जाइत छल
। चुकि “महात्मा बुद्ध” एहि राजमार्ग सँ बहुधा आबैत – जाइत छलाह तेँ तत्कालीन
बौद्ध साहित्य मे बज्जि महाजनपदक आन घटक राज्य सभक उल्लेख नञि भेटैछ जखन कि एहि
जनपद सँ वैशालीक उल्लेख पर्याप्त रूपेण भेटैछ । ओहुना बज्जि महाजनपदक प्राचीन शहर "जनकपुर" तऽ पहिनहि सँ अपन वैभवक लेल विश्वविख्यात छल पर बज्जि महाजनपदक समय वैशाली नऽव शहर छल जे वैभव परिपुर्ण भेल, आ नऽव वस्तुक चर्च स्वभाविकहि तेँ वैशालीक विशेष उल्लेख । एकर अतिरिक्त, वैशाली मगध सँ बज्जि
महासंघ मे प्रवेश करबाक द्वारि छल । एतहि सँ अजातशत्रु –
शीतयुद्ध मे जयचन्दक भूमिका मे ठाढ़ि आम्रपाली
द्वारा – अभेद्य बज्जि महासंघ मे प्रवेश पओलक । तत्कालीन साहित्य मे वैशालीक विशेष
चर्चा होयबाक ईहो एक टा मुख्य कारण थिक । (बहुधा इतिहासदर्शक मानचित्र इएह महाजनपदकालीन "विदेह" केँ "मिथिला वा विदेह" रूप मे चित्रित करैत अछि, जे कि अत्यन्त भ्रामक थिक आ निन्दनिय थिक । बज्जि महासंघक समय मे एहि महाजनपदक मध्यवर्ती भाग "विदेह" कहबैत छल पर ई सम्पुर्ण "विदेह वा मिथिला" केर द्योतक नञि । एहि समय केर सन्दर्भ देखा कऽ ई भ्रम उत्पन्न कएल जाइत अछि कि "वैशाली" आ "मिथिला" हमेशा सँ अलग क्षेत्रक परिचायक थिक - जे कि सर्वथा अनुचित, निन्दनिय आ अग्राह्य थिक । बज्जि महासंघक सभय मे छोट - छोट हरेक इकाई (गण) केँ किछु ने किछु नाम देल गेल छल, जाहि मे विदेह आ वैशाली अलग अलग क्षेत्र / इकाई / गण केर नाम छल । पर इतिहास मे आओरो पाछाँ गेला पर, जनक राजवंशक समय मे, ज्ञात होइछ कि "विदेह" वा "मिथिला" "वैशाली सहित" तथाकथित सम्पुर्ण भू - भाग केँ निरूपित करैछ । तेँ मानचित्र मे "विदेह" नाम सँ "वैशाली रहित" क्षेत्रक निरूपण अग्राह्य व भ्रामक थिक । )
“हर्षवर्धन” केर समकालीन
वा किछु पुर्ववर्ती आ परवर्ती समय मे राज्यक केँ “भुक्ति” कहल
जाइत छल । एहि समय मे मिथिला प्रदेश केँ “तीरभुक्ति” कहल
जाइत छल । तीरभुक्तिक अर्थ अछि ओ भुक्ति / राज्य जे
नदीतट सँ घेड़ल हो – आ सर्वविदित अछि कि मिथिला तीन कात सँ नदी सँ घेड़ायल अछि –
पूब दिशि कोशी (कोसी) व सहयोगी नदी (tributaries) सभ, पच्छिम दिशि गण्डक (शालिग्रामी) व ओकर सहयोगी सदी (tributaries) सभ तथा
दक्षिण दिशि गंगा नदी । “तीरभुक्ति” तत्सम् शब्द थिक, जकर तद्भव स्वरूप “तिरहुत” भेल ।
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मैथिली सम्प्रति "देवनागरी" लीपि मे लिखल जाइत अछि । पर एकर मूल लीपि थिक "मिथिलाक्षर / तिरहुता / वैदेही लीपि" ।
एहि लिपिक नाँव सभ स्वयम् साक्ष्य थिक कि विदेह, मिथिला आ तिरहुत पर्यायी नाँव थिक ।
बाङ्गला आ असमिया लीपि वस्तुतः मिथिलाक्षरहि सँ निकलल अछि । उड़िया सेहो मिथिलाक्षरहि सँ निकलल पर पाल राजवंश आदिक शासनकाल मे ओहि पर द्रविड़ समूहक भाषा सभक प्रभाव परबाक कारणेँ ओ मिथिलाक्षर आ बाङ्गला सँ किछु परिप्रेक्ष्य मे अलग भऽ गेल । मणिपुरी सम्भवतः असमिया सँ निकलल अछि जे कि मूल रूपेँ मिथिलाक्षरहि सँ उत्पन्न थिक ।
मैथिलीक किछु पाण्डुलिपि "कैथी लीपि" मे सेहो अछि, पर ई लीपि मैथिलीक सम्भवतः मूल लिपि नञि थिक, ई विशेषतः व्यापारी वर्ग द्वारा जानकारी केँ जन - सामान्य सँ गुप्त रखबाक लेल प्रयोग होइत छल । बाद मे एहि लिपि केँ प्रयोक्ता लोकनि अप्पन सुविधाक कारणेँ, एहि लिपि मे किछु महत्तवपुर्ण रचना सभ सेहो कएलन्हि आ किछु अभिलेखादि सेहो लिखल गेल । |
एहि प्रकारेँ, मिथिला, विदेह, बज्जि / वज्जि, तीरभुक्ति आ तिरहुत – ई पाँचो नाँव एक्कहि भू भागक परिचायक थिक आ परस्पर
पर्यायवाची थिक । एहि पाँचो नाँव मे ओतबहि समानता वा भिन्नता अछि जतेक कि आर्यावर्त, भारत, हिन्दोस्ताँ, हिन्दुस्तान व
इण्डिया मे थिक । . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
आओर एहि तरहेँ जँ मिथिला, विदेह,
बज्जि / वज्जि, तीरभुक्ति आ तिरहुत पर्यायवाची
भऽ एक्कहि भू – भाग / क्षेत्र
/ प्रदेश
केँ निरूपित
करैछ, तऽ मैथिली,
बज्जिका, वज्जिका आ तिरहुतिया अलग –
अलग भाषा कोना भऽ गेल ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? ? वास्तव मे ई चारू नाँव एक्कहि भाषा केर
पर्यायी नाँव थिक आ ओ भाषा अछि “मिथिला –
भाषा” वा “मैथिली” ।
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पाल राजवंशक समय मे निर्मित विश्वप्रशिद्ध "विक्रमशिला विश्वविद्यालय" केर भग्नावशेष (सम्प्रति भागलपुर जिला मे अवस्थित) । |
“अंग प्रदेश / चम्पा” ऐतिहासिक रूपेँ कहियो मिथिला मे समेकित छल वा नहि
तकर वर्णन नहि भेटैछ । महाभारत काल मे कौरवक उपनिवेशक रूप मे एकर चर्च भेटैत अछि
जकरा दुर्योधन “दानवीर कर्ण” केँ दान स्वरूप मे देलक आ तहिया सँ कर्ण “अंगराज कर्ण” कहओलाह । जानकारी भेटैत अछि कि समकालीन मिथिला मे जनक
राजवंश स्थापित छल जकर राजा “बहुलाश्व जनक” छलाह आ मिथिला व हस्तिनापुर केर बीच मैत्री
सम्बन्ध छल तेँ ओ पहिने पाण्डु (पाण्डव नहि) तथा बाद मे कौरवक संग युद्ध कयने छलाह
। एहि मैत्री सम्बन्धक करणेँ, कौरवक उपनिवेश रहितहुँ सम्भवतः अंग आ मिथिला मे
मैत्री सम्बन्ध रहल होयत – आ तेँ सांस्कृतिक व भाषायी समानता रहल होयत । “पाल राजवंशक” शाशनकाल मे एहि ठाम विश्वविख्यात “विक्रमशिला विश्वविद्यालय” केर निर्माण भेल । यद्यपि भौगोलिक स्थितिक कारण
बीच - बीच मे मगध सँ सेहो कमोबेश प्रभावित होइत रहल तथापि मिथिला सँ एहि प्रदेशक
सांस्कृतिक व भाषायी साम्य बनल रहल । “चौरचन / चौठचन्द्र” आ “सामा – चकेबा” मिथिलाक विशिष्ट पावनि थिक जे भारत मे आओर कतहु नञि मनाओल
जाइत अछि पर तथाकथित अंग – प्रदेश मे मिथिले जेकाँ मनाओल जाइत अछि ।
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"सामा - चकेबा" नामक ई पावनि मात्र मिथिला वा मैथिल संस्कृतिक विशेषता थिक । तहिना "चौरचन (चौठ - चन्द्र)" पावनि सेहो । |
किछु लोक एहि
प्रदेशक भाषा “अंगिका” केँ अलग
भाषा (Separate
language) मानैत छथि तऽ किछु लोक हिन्दीक बोली (Dialect of Hindi) । जँ अंगिका बोली थिक तऽ ओ हिन्दीक बोली
कथमपि नञि – ओ मैथिलीक बोली भऽ सकैत अछि, हिन्दीक बोली होयबाक तऽ कोनो आधारहि नञि
थिक । प्रशिद्ध भाषाविद् स्व॰ सर जॉर्ज
अब्राहम ग्रियर्शन अंगिकाक
वर्णन “छिका – छिकी” नामक मैथिलीक
बोलीक (Dialect of
Maithili) रूप मे कयलन्हि अछि । मात्र एहि प्रकारक ऐतिहासिक अस्थिर
सीमारेखा मिथिला आ अंग प्रदेश मे अलग – अलग भाषा होयबाक आधार नहि भऽ सकैछ । जँ से
रहैत तऽ आधुनिक महराष्ट्र मे कम सँ कम चारि अलग – अलग भाषा रहैत कारण विदर्भ,
खानदेश, मराठवाड़ा आ पच्छिमी महाराष्ट्र इतिहास मे कहियो अलग – अलग सेहो रहल अछि ।
तेँ भारतक उपरोक्त प्रदेश (मिथिला आ अंग)
ओ नेपालक मिथिला केर भाषा एक्कहि थिक “मिथिला – भाषा” वा “मैथिली” ।
वास्तव मे
अंग्रेजी शासनकाल मे (सन् 1875 ई॰ मे) “बाँटू आ राज करू नीति” (Divide & Rule Policy) केर अनुसारेँ सम्पुर्ण “तिरहुत / मिथिला” प्रदेश केँ गलत ढंग सँ दू भाग मे बाँटल गेल, जकर
नाँव पड़ल – मुजफ्फरपुर डीविजन आ दरभंगा (दड़िभंगा) डीविजन । ओहि समयक दरभंगा (दड़िभंगा) डीविजन मे
आधुनिक दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, बेगूसराय पुर्णिञा आ पुबरिया मिथिलाक शेष सभ जिला अबैत छल । ओहिना मुजफ्फरपुर
डीविजन मे आधुनिक
मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, वैशाली, शिवहर, पुबारी आ पछबारी चम्पारण अर्थात् पछबरिया
मिथिला आबैत छल । मुजफ्फरपुर डीविजन मे भोजपुरी भाषी आधुनिक तीन जिला सीवान, सारण (छपरा) आ
गोपालगंज सेहो राखल गेल । एतहि सँ मिथिला आ मैथिली केर प्रति भ्रम आ मिथिला –
मैथिली केर क्षेत्रक अतिक्रमणक प्रयास शुरू भेल ।
एहि समय मे
अंग्रेज नीति निर्माता लोकनि मिथिला आ मैथिली केँ तोड़बाक – फोड़बाक बीया रोपलन्हि
। दुष्प्रचार कयल गेल कि दरभंगा
(दड़िभंगा) डीविजन केर लोक सभ “मैथिली” बजैत
छथि आ मुजफ्फरपुर डीविजन केर लोक सभ “तिरहुतिया / बज्जिका” बजैत छथि । बाद मे एहि अनुसारेँ मुजफ्फरपुर
डीविजन केर नाँव
तिरहुत डीविजन राखि देल गेल । जे तिरहुत आ बज्जि, मिथिला केर पर्यायी नाँव छल तकरा
मिथिला केर प्रतिद्वंदी नाँव बना देल गेल आ नव भाषा तिरहुतिया गढ़ि देल गेल । बाद
मे, भारतक आजादी केर समय आ आजादी केर बाद तिरहुतिया नामक भाषा केर असरि समाप्त
होइत देखि एकरहि एक नऽव नाँव गढ़ल गेल बज्जिका / वज्जिका – जे बज्जि वा वज्जि समस्त मिथिलाक परिचायक छल ओकरा
जबरदस्ती केवल वैशाली आ लिच्छवी धरि सीमित कऽ देल गेल ।
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सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्शन । आयरिश भाषाविद् । जन्म - ०७ जनवरी १८५१ ई॰ । मृत्यु - ०९ मार्च १९४१ ई॰ । भारतक भाषा सर्वेक्षणक महान कृति (१८९८ ई॰ सञो १९२८ ई॰ धरि), कुल ३६४ भाषा आ बोलीक जानकारी, निश्पक्षतापुर्ण सर्वेक्षण । एकर अतिरिक्त "क्रिस्टोमैथी ऑफ मैथिली" आ "पीजेण्ट लाइफ ऑफ बिहार" नामक महत्त्वपुर्ण रचना । मधुबनी मे बहुत दिन धरि पदस्थापित, "गिलेशन बजार" हिनकहि नाम पर अछि । |
एहि सभ उठा –
पटक केर बीच एक गोट उदार तटस्थ विद्वान भाषाविद् “सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन” केर आगमन आ कार्य – कलाप भारत मे भेल । ओ अपन महान काज “भारतक
भाषा सर्वेक्षण” पूरा कयलन्हि आ मैथिली केँ एकटा स्वतन्त्र, सजीव भाषाक रूप मे
प्रतिष्ठित कयलन्हि, जकर की बहुतहि बोली अछि । यद्यपि प्रारम्भ मे ओहो थोड़ेक
भ्रमित भेलाह आ मैथिली केँ "बिहारी" नामक भाषाक एकटा बोली मानि बैसलाह । पर जल्दिअहि
हुनिका बुझि पड़लन्हि कि मैथिली केँ बिहारी केर अन्तर्गत एकटा बोली मात्र मानक
भयंकर गलती थिक । ओ बंगाली, उड़िया आ असमिया भाषाक सर्वेक्षणक
भूमिका मे अपन एहि गलती केँ मानलन्हि आ मैथिली केँ स्वतन्त्र, सजीव भाषा स्वीकार
कएलन्हि । बाद मे ओ बहुत दिन धरि मधुबनी जिला मे कार्यरत छलाह (आधुनिक गिलेशन बजार
हुनिकहि नाम पर अछि) आ मैथिली केर व्याकरण विषयक अध्ययन आ लेखन सेहो कएलाह । सर
ग्रियर्सन मैथिली केँ तत्कालीन बिहारक राजभाषा केर रूप मे अनुमोदित कएने छलाह ।
परन्तु ओहि समय स्वतन्त्रता संग्रामक समय छल आ सर ग्रियर्सन एहि प्रस्ताव केँ गलत रूप मे देखल
गेल । मैथिल लोकनि सेहो देशहित मे एहि पर जोर नहि देलन्हि आ हिन्दीअहि केँ राजभाषा
स्वीकार कएलन्हि – मोन मे आश रहन्हि कि देश स्वतन्त्र भेलाक बाद पुनः मैथिलीक
स्थान लेल बात कयल जायत । आ से कोनो बेजाए विचार नहि छल (सन्दर्भ देखू -
http://www.lisindia.net/Maithili/Maith_lang.html ) ।
देश स्वतन्त्र भेल, भाषायी आधार पर राज्य बनाओल गेल पर दुर्भाग्यवश मिथिला केर
कोनहु चर्च नहि । एतबहि नहि मैथिल केँ परस्पर लड़एबाक आ मैथिली केँ क्षिन्न –
भिन्न कए नामो – निशान मेटएबाक व्यवस्था कएल गेल । मिथिला रज्य के कहइए, मैथिली
केँ नहिञे साहित्य अकादमी मे स्थान देल गेल आ नहिञे आठम अनुसुची मे । मैथिली केँ
जबरदस्ती हिन्दीक बोली केर रूप मे घोषित करबाक असफल परन्तु जीतोड़ प्रयास भेल । अंग्रेज
नीतिज्ञ लोकनिक रोपल मिथिला आ मैथिलीक विखण्डन ओ विभाजनक बीया सुखायल नहि । भारतक
स्वतन्त्रताक बाद किछु “अज्ञात
शक्ति” सभ ओकरा
आओरहु सिञ्चित कऽ – पानि आ खाद दऽ कऽ - गाछ बनयबाक प्रयास कयलन्हि । दरभंगा,
तिरहुत आ भागलपुर आदि कमिश्नरी बनाओल गेल आ मैथिल लोकनि केँ भ्रमित कयल गेल कि
मैथिली दरभंगा कमिश्नरीक लोकक भाषा थिक
जखन कि तिरहुतिया / बज्जिका तथा
अंगिका क्रमशः तिरहुत आ भागलपुर कमिश्नरी केर भाषा थिक । मिथिलाक पर्यायी नाँव
तिरहुत केँ जबरदस्ती मात्र किछुए जिला धरि सीमित करबाक दुष्प्रयास कयल गेल ।
एहि प्रकारक “अज्ञात
शक्ति” सभ सँ पूछए चाहैत छिअन्हि कि जँ अंग आ मिथिलाक भाषा सिर्फ एहि द्वारे एक
नञि भऽ सकैत अछि कि इतिहास मे ओ पृथक राज्य छल तऽ फेर बिहारक भोजपुर आ मॉरिशस केर
बोली एक होयबाक दावा कोन आधार पर ? जँ दरभंगा, चम्पारण, वैशाली, मुजफ्फरपुर,
खगड़िया, पुर्णिञा, बेगूसराय, भागलपुर, मुँगेर आदि स्थानक बोली मे थोड़ेक भिन्नता
अछि तऽ ताहि सँ की ? ई भिन्नता तऽ कोनहु सजीव आ विस्तृत भाषा सभक बोली मे देखल
जाइछ चाहे ओ हिन्दी हो, मराठी हो अंग्रेजी हो वा आन कोनहु भाषा हो । एहि सँ बेशी
भिन्नता आरा, सासाराम, छपरा सीवान आ बलिया आदि स्थानक बोली मे थिक । जाहि आधार पर
मैथिली, अंगिका आ बज्जिका केँ अलग - अलग भाषा देखएबाक प्रयास भऽ रहल अछि
ताहि आधार पर भोजपुरी, छपपरिया, जौनपुरी, आ बनारसी आदि अलग अलग भाषा भेल । परञ्च जँ ओ
सभ अलग – अलग भाषा नञि कहबैछ तऽ फेर मैथिली केर लेल एहि प्रकारक कसरत किएक
? ? ? ? ? ? किछु लोक "मैथिली कोकिल, महाकवि विद्यापति" केँ सेहो बरजोरी हिन्दी कविक लेबल लगएबाक प्रयास कऽ रहल छथि (यथा सन्दर्भ देखू -
http://www.brandbihar.com/hindi/literature/kavya/vidyapati.html ) ।
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मैथिली कोकिल, अभिनव जयदेव, महाकवि "विद्यापति" । पुर्ण नाँव - "स्व॰ विद्यापति ठाकुर । अनुमानित काल - १३४० सञो १४३० ई॰ (महाराह शिवसिंह केर समकालीन) । जन्म स्थान - बिस्फी (बिसफी) , मधुबनी । तत्कालीन पाण्डित्यक भाषा छाड़ि , जनभाषा "मैथिली" मे पदावली रचना । हिनकहि सँ प्रेरित भए गुरुदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) "भानुसिंहेर पदावली" नाम सँ अपन प्रारम्भिक रचना कएलन्हि । हर तरहक मैथिली मे (मैथिलीक बोली सभ मे) महाकवि विद्यापति अपन रचना कएलन्हि ।
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बहुत संघर्षक
बाद 1956 ई॰ कऽ मैथिली साहित्य अकादमी मे स्थान पओलक आ 2004 ई॰ मे आठम अनुसुची मे सुचीबद्ध भेल । पर किछु
लोक सभ केँ ई गप्प पचि नञि रहल छन्हि । मैथिल
केँ आ विश्व समुदाय केँ मिथिला आ मैथिलीक प्रति भ्रमित करबाक ई प्रक्रिया एखनहु
पूरा जोर – शोर सँ किछु “अज्ञात
शक्ति” सभ द्वारा चलाओल
जा रहल अछि । विकिपीडिया, वेबसाइट आ
प्रिण्ट मीडिया पर सेहो भरपूर भ्रामक जानकारी छापल जा रहल अछि । एहि सन्दर्भ मे ऑउटलुक इण्डिया द्वारा कएल गेल सर्वेक्षण केर क्रम मे देल गेल प्रस्तावित मिथिला राज्यक मानचित्र सराहनीय अछि (सन्दर्भ देखू - http://www.outlookindia.com/article.aspx?279690 ) ।
हमरा जतबा बूझल छल से लिखल , बाकी अपने लोकनिक इच्छा – मानी अथवा नञि मानी । ई अपने
लोकनिक इच्छा पर निर्भर करैछ कि सच बुझबाक वा जानबाक प्रयास करब या दिग्भ्रमित भऽ
भोतिआएत रहब । हम ई नञि कहैत छी जे हमर बात मानू । पर समस्त मैथिल लोकनि सँ निवेदन
जे स्वयम् सच – बात जानबाक प्रयास करू । हमर वा ककरहु आनक बात पर सीधा विश्वास
करबाक प्रयास नञि करू । अपने सुविज्ञ छी, विचारवान छी आ संगहि अपन मत मानबाक लेल
स्वतन्त्र छी । अन्त मे हम एतबहि कहब जे
आउ
आइ हम सभ हिलि मिलि कऽ माँक उतारी आरती ।
जय
जय मिथिला, जयति मैथिली, जय भारत, जय भारती ।।
- श्री
जगदीश चन्द्र ठाकुर "अनिल"
।। अथ शुभम् ।।