टिटही
(बाल कविता)
टि - टि - टि -
टि बाजए टिटही ।
एम्हर -
ओम्हर भागए टिटही ।।
माथ - वक्ष -
गर्दनि छै कारी ।
दुहु दिशि
उज्जर छै एक धारी ।।
टाङ्गक रंग छै
टुहटुह पीयर ।
नाङ्गरि कारी,
लोलहु पीयर ।।
शेष शरीर
पिरौंछे - भूरा ।
आँखिक परितः लाल
कि पिउरा ।।*१
ओना तँऽ बहुतहु छैक प्रकार ।
विविध रूप ओ रंग
- आकार ।।*२
अपना दिशि जे
सुलभ भेटैछ ।
बेसीतर एहेनहि
रहैछ ।।*३
कहबी -
“टिटही टेकल पर्वत” ।
कारण चिड़ै
ई बहुतहि
सजग ।।*४
कनिञो खतरा
भेल आभास ।
उड़ि भागल टिटही ओहि चास ।।
जाइत - जाइत ओ
करैछ सचेत ।
टि - टि -
टि खतरा - संकेत ।।*५
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - परितः = चारू
कात । आँखिक चारू कात आ गलचर्म लाल अथवा पीयर होइत अछि ।
*२ - टिटही शब्दसँ बहुत व्यापक चिड़ैसमूहक बोध होइत अछि
। एहि शब्दसँ अंग्रेजीक LAPWING आ SANDPIPER समूहक चिड़ैसभक बोध होइत अछि ।
*३ - एहि कवितामे
अपना दिशि बेसी भेटए बला टिटहीक वर्णन अछि जे कि LAPWING समूहक सदस्य अछि ।
*४ *५ - अपना दिशि कहबी छै - “टिटही टेकल पर्वत” । लोक कहैत छै जे
टिटही अपन पएर उपर कऽ कऽ सुतैत अछि आ ओकरा होइत छै कि ओ अपना पएरसँ पर्वतकेँ उठओने
अछि । पर ई बात बस सत्य नञि । वास्तवमे टिटही बहुत सजग चिड़ै अछि । कोनहु खतरा केर
आभास भेला पर ओ तुरन्त ओहि ठामसँ उड़ि भागैत अछि आ संगहि टि-टि-टि-टि आवाज निकालि
आस - पासक आनहु चिड़ैसभकेँ खतरासँ सावधान कऽ दैत अछि । सम्भवतः तेँ उपरोक्त कहबी
बनल होयत ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 198म अंक (15 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक 198) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
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