ऊद या
ऊदबिलाड़ि (बाल कविता)
कोना करै छै, देखही एकरा,
ऊदमति धऽ लेलकैए
।
की छी ऊद आ केहेन
ऊदमति,
ककरा धऽ
लेलकैए ??
ऊद छी जीव, जमीनक बासी,
तइयो छै बड़
पानि प्रिय ।
पानिमे हेलए,
डुम्मी काटए,
ओकरा छै बड़ माछ प्रिय ।।
देहमे ओकरा
बड़ छै फुर्ती,
बुट्टी - बुट्टी चमकै
छै ।
की जमीन, की
पानिक भीतर,
मस्त - मगन ओ
रमकै छै ।।
बैसि ने
रहइछ ओ
निचैनसँ,
पानिमे करइछ बड़ छलमल ।
तेँ कहबी छै -
ऊदमति धेलकै,
जकर मोन
बेसी चंचल ।।
ऊदमति मोन
ने रहए थीर,
लगले एम्हर, लगले
ओम्हर ।
जेना “ऊद” ने
रहैछ थीर,
एखने एम्हर, एखने
ओम्हर ।।
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
ऊद वा ऊदबिलाड़ि मुख्यतः स्थलीय जीव अछि आ मीठ पानिक जलाशय
सभसँ लऽ कऽ समुद्रक नोनगर पानि धरि भेटैछ । ओ मांसाहारी जीव अछि आ माछक शिकार
करबामे बहुत माहिर होइत अछि । ओ पानिमे डुम्मी कटबामे आ गोंता लगएबामे अत्यन्त
कुशल होइत अछि । बांग्लादेशमे एकरा पोशुआ बनाए प्रशिक्षित कएल जाइत अछि आ
प्रशिक्षित ऊद मनुक्खक लेल नदीमेसँ माछ पकड़ि कऽ आनैत अछि ।
मैथिली
पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 212म अंक (15 अक्टूबर 2016) (वर्ष 9, मास 106, अंक 212) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे प्रकाशित ।