माटिक
चाली या बरसाती चाली
(बाल कविता)
बरखामे सह-सह
करैत अछि, जे बरसाती
चाली ।
भीजल माटि फोड़ि
कऽ निकसए, से बरसाती चाली ।।
नमरैछ, फेर आगाँ बढ़ैत अछि, ई बरसाती चाली ।
माटिक भीतर छुपल रहैतछि, ई बरसाती
चाली ।।
डरू ने बौआ -
बुच्ची एहिसँ, काटए नञि ई चाली
।
बोर बनैछ
बंशीमे माछक, से बरसाती चाली ।।*१
माटिमे जे जीवांश रहैछ, तकरे खा जीबए चाली ।
माटिक उपजाशक्ति बढ़ाबए, इएह बरसाती चाली
।।*२
विश्वमे भेटए भाँति-भाँति केर,
ई बरसाती चाली ।
ककरो माटि प्रिय
या गोबर, या सऽड़ऽल तरकारी
।।*३
जैविक कचड़ा अछि जेहने, तेहने तँऽ चाही चाली ।
हर तरहक जैविक कचड़ाकेँ, खाद बनाबए चाली ।।*४
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - बंशीसँ (FISHING HOOK) माछ मारए काल बहुत लोक चालीकेँ मारि कऽ ओकर टुकड़ीकेँ बोर (FISHING BAIT) केर रूपमे प्रयोग करैत छथि ।
*२ - माटिमे जे जीवांश (DEAD ORGANIC MATTER) रहैत अछि तकरे खाऽ कऽ माटिक चाली जिबैत अछि । ई पेटक चाली
जेकाँ परजीवी (PARASITE) नञि भऽ कऽ स्वतन्त्रजीवी
(FREE LIVING) अछि । एहि जीवांशसभकेँ
पचाऽ कऽ ओ जैविक खादमे (BIO FERTILIZER) बदलि दैत अछि ।
*३ - विश्वमे माटिक
चालीक हजारहु जाति - प्रजाति छैक आ प्रायः हर जातिकेँ एक विशिष्ट प्रकारक जीवांशक
प्रति रूचि रहैत छै − ककरहु माटिमे उपस्थित गाछक मृत भागक प्रति, ककरहु गोबरक
प्रति, ककरहु घऽरमे उत्पन्न तरकारी आदिक जैविक कचड़ाक प्रति ……………… आदि, आदि ।
*४ - जैविक खाद
बनएबाक उपक्रमक लेल जाहि तरहक जैविक कचड़ा उपलब्ध रहैछ ताहि तरहक ताहि तरहक रूचि
रखनिहार चालीक चयन कएल जाइत अछि ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 197म अंक (01 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक 197) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment