चातक या
स्वाती चिड़ै (बाल कविता)
चातक एलै ! चातक एलै !
संगमे बरखा - बुन्नी लेलै ।।*१
धरती तबधल,
खेतहु दगधल
।
मनुक्खक मोन,
सेहो छै बगधल
।
धरतीक प्यास
मिझाबऽ एलै ।।
करिया पीठ,
सुरूज दिशि कएने
।
उजरा पेट,
धरा दिशि धएने
।
जानि कतऽसँ, कोना
कऽ एलै ! ! *२
माथक कलगी,
कारी रंगक ।
परजीवी ओ,
कोइली ढंगक ।*३
जलदक दूत
धरा पर एलै ।।
लोक कहए,
पहिलुक वर्षा जल
।
पिउबि बिताबए,
जिनगी चातक ।
अर्थ छी एतबहि,
पावस एलै ।।*४
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - चातक आ पपीहाक
आगमन भारतमे (खास कऽ उतबारी भारतमे) मॉनसून वा वर्षा ऋतुक आगमनक सूचना दैत अछि ।
*२ - ई चिड़ै
अफ्रिका महादेशक मूल निवासी अछि आ ग्रीष्म ऋतुमे बेसी गर्मी पड़ला पर ओ भारत आबि
जाइत अछि आ फेर शरद ऋतुमे आपिस अफ्रिका चलि जाइत अछि ।
*३ - कोइली जेकाँ
ईहो चिड़ै “शिशु-भरण परजीवी” (BROOD PARASITE) अछि आ कौआ आदि आन चिड़ै केर खोंतामे अण्डा दैत
अछि ।
*४ - कहबी छै कि ई
चिड़ै मात्र बरखाक पानि पिउबि (स्वाती नक्षत्रक वर्षाक पानि) रहैत अछि पर ताहिमे
कोनहु यथार्थ नञि । मतलब बस एतबहि कि चातकक आकमन वर्षाक अगमनक परिचायक अछि ।
गाबए बला पक्षी होयबाक
कारणेँ आ एक्कहि समयमे भारतमे आगमन होयबाक कारणेँ मैथिलीक संग - संग आन भारतीय
साहित्यसभमे बहुधा “पपीहा” ओ “चातक” पर्यायवाचीक रूपमे प्रयुक्त होइत अछि । पर
यथार्थमे दुहु एकदम भिन्न चिड़ै अछि । पपीहा परेबा या बाजक आकारक होइत अछि जखनि कि
चातक मएनाक आकारक ।
बंगालीमे चातक शब्द
अंग्रेजीक स्काइलार्क (SKYLARK) (Alauda
spp.) चिड़ै लेल सेहो प्रयुक्त होइत अछि, जकरा हिन्दीमे “चकता” या
“अबाबील” कहल जाइत अछि । एकर मैथिली नाँओ एखनि धरि हमरा नञि बूझल अछि ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 197म अंक (01 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक 197) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
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