सूरा आ
फाड़ा (बाल कविता)
गहूमक संग देखू “सूरा” पिसाइत
छै ।*१
फोकला बना कऽ गहूम
खा जाइत छै ।।
देखियौ, ई जीव केहेन असञ्जाइत छै !
एकरा पानि ने मिसियो सोहाइत छै ।।*२
गहूमहि टा नञि, आनहु जजाइत छै ।*३
जेहने अन्न रूचए,
तेहने प्रजाइत छै ।।*३*४
चाउर, मकई
सभ सेहो खा जाइत छै ।
धानक
सूराकेँ उड़बा लए पाँइख छै ।।*३
धानक सूरा -
वयस्क भऽ जाइत छै ।
पाँइख जन्मै
छै “फाड़ा” कहाइत छै ।।*३*५
उपजल अन्नक करइत
बड़ नाश छै ।
भेटैछ दबाइ आब
तेँ किछु उसास छै ।।*६
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - मैथिलीक ई एकटा
पुरान कहबी थिक जाहिमे सूरा आ ओकर बासस्थानक चर्च अछि ।
*२ - “सूरा छेँ जे पानि नञि पिबैत छेँ” − मैथिलीक दोसर पुरान कहबी । वास्तवमे सूरा कहियो पानि नञि पिबैत अछि ।
शरीरमे भोजनक चयापचय क्रियासँ उत्पन्न पानि (METABOLIC
WATER) सूराक जीवन
निर्वाहक लेल पर्याप्त होइत अछि ।
*३ - बहुत लोकसभ
लिखल वा टंकित मैथिलीक उच्चारण वा पाठ मैथिली जेकाँ नञि कऽ कऽ हिन्दी जेकाँ करैत
छथि । तेँ किछु शब्द सभक मैथिली वर्तनी वा उच्चार स्वरूपकेँ उपरोक्त कवितामे स्थान
देल गेल अछि । एहि शब्दसभक लिखबाक सही स्वरूप निम्न अछि -
क्र॰सं॰
|
लिखबाक सही स्वरूप
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मैथिली उच्चार वा वर्तनी
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१
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जजाति
|
जजाइत
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२
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प्रजाति
|
प्रजाइत
|
३
|
पाँखि
|
पाँइख
|
नियमानुसार उपरोक्त सब्द
सभक सही स्वरूपहि लिखल जएबाक चाही आ पढ़बा काल उच्चार उपरोक्त प्रकारेँ होयबाक
चाही । पर पाठक लोकनिक हिन्दीपरक उच्चार कविताक अभिप्रेत उच्चारकेँ विकृत कऽ सकैत
छल तेँ एहि कवितामे सीधा अभिप्रेत उच्चारकेँ स्थान देल गेल अछि ।
*४ - विभिन्न
प्रकारक अन्नमे सूराक विभिन्न प्रकार (प्रजाति) लागैत अछि ।
*५ - धानमे लागए बला
सूराकेँ वयस्कावस्थामे पाँखि जनमि जाइत अछि आ तेँ ओ उड़ि सकैत अछि । एहि उड़ए बला
सूराकेँ मैथिलीमे फारा (फाड़ा) कहल जाइत अछि ।
·
फारा या फाड़ा -
धानमे लागए बला सूरा ।
·
फाँरा या फाँड़ा
- अँचार बनएबाक लेल काटल आमक (प्रायः लम्बवत काटल गेल) टुकड़ी ।
*६ - उपजाक भण्डारण काल ई अन्नक बहुत नाश करैत अछि । यद्यपि एखन
सूरा मारबाक बहुत रास दबाई (गोली आ पाउडर) बजारमे उपलब्ध छै जाहिसँ किछु उसास भेल
छै तथापि एखनहु ओ उपजल अन्नक बहुत नाश करैत अछि ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 198म अंक (15 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक 198) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
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