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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Sunday 19 February 2012

पद्य - ४‍१ - कामिनी ! जुनि तोड़ू अहँ फूल


कामिनी ! जुनि तोड़ू अहँ फूल


कामिनी !
जुनि तोड़ू अहँ फूल ।
फूलहि निर्मित अंग अहँक अछि, गरि जायत कोनो शूल ।।


[ई तैल चित्र स्व॰ एमिल ईजमान सेमेनोवस्की द्वारा बनाओल गेल  "एन ऑरिएण्टल फ्लावर गर्ल" नामक चित्रक अंश थिक । सेमेनोवस्की एक पॉलिश चित्रकार रहथि आ हुनक काल 1857 ई॰ सँ 1911 ई॰ धरि रहन्हि ।]







कामिनी !
        जुनि तोड़ू अहँ फूल ।
फूलहि निर्मित अंग अहँक अछि, गरि जायत कोनो शूल ।।

मुँह अहँक जनु रक्त कमल ।
नील कमलदल नयन युगल ।
ग्रीवा मृणाल, जल अलक बनल अछि, अधर कुसुम अरहूल ।
                      कामिनी ! जुनि तोड़ू अहँ फूल ।।

आँचरे झाँपि गुलाबक थौका ।
श्वासक संग मलय केर झोंका ।
अपनहि रमणि,  रुचिर कुसुमादपि,  तोड़ब किए अहँ फूल ?
                      कामिनी ! जुनि तोड़ू अहँ फूल ।।

पद पंकज अहँ केर कोमलतर ।
उपवन बीच भ्रमर कर सञ्चर ।
अहँ केँ  देखि  भ्रमर  लोभायल,  अयलहुँ,  कयलहुँ  भूल ।
                      कामिनी ! जुनि तोड़ू अहँ फूल ।।




डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४,

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५० , अंक ‍१०० , ‍१५ फरबरी २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित । 





अन्तर्राष्ट्रिय मातृभाषा दिवस


सभसँ पहिने “विदेह” केर शतकांकक बधाई आ भविष्यक शुभकामना संगहि समस्त विदेह परिवार केँ सादर धन्यवाद


अन्तर्राष्ट्रिय मातृभाषा दिवस
(21 फरबरीक अवसरि पर विशेष)



एक – आध महिना पहिनुक गप्प थिक । शीतलहरीक समय छल । साँझ खन दलान पर, लालटेमक ईजोत मे धिया – पुता सभ पढ़ि रहल छल । सोझाँ मे घूर पजड़ल रहै आ सभ बूढ़ – पुरान लोकनि घूर लग बैसल छलाह । 

रेडियो बाजि रहल छल, गप्प – सड़क्का चलि रहल छल । धिया – पुताक मोन सेहो पढ़बा पर कम्मे आ घूर लग बाजि रहल रेडियो आ चलि रहल गप – शप दिशि बेशी छल ।  एक तऽ शीतलहरी, दोसर रतुका भोजनक समय लगिचाएल आ तेसर सामने बजैत रेडियो आ गप्प सड़क्का – तखन तऽ स्वभाविकहि जे पढ़बा मे मोन कोना लगओ ? मोन मसोसि कऽ बैसल किताब दिशि ताकि रहल छल आ प्रतिक्षा मे छल जे कोनहुना समय बीतय आ खएबाक लेल जएबाक अनुमति भेटओ । 

एतबहि मे हम आङ्गन सँ दलान पर अयलहुँ । हमरा देखितहि धिया – पुता सभ केर मोन खुश । खुश होयबाक कारण ई जे आब ओकरो सभ केँ गप्प मारबाक संवैधानिक अधिकार भेटैत बुझि पड़लै । जे लोकनि घूर लऽग बैसल रहथि से बहुत पैघ, बहुत बुजुर्ग – तेँ पढ़ब छाड़ि हुनिका सभ सँ बतिअएबाक मतलब छल डाँट सुनब । हुनिका सभक आशय जे जा धरि अङ्गना जयबाक बिझो नञि भऽ जाय ता धरि किताब लऽ कऽ बैसल रहह ।

हमरा अबैत देखि कऽ सोनी  हमरा कुर्सी दैत बाजलि – यौ बैसू ।

– की पढ़ैत छी अहाँ सभ ? वस्तुस्थिति तऽ हमरा बुझाइए गेल छल तथापि हम पूछल ।

- यौ की पढ़ब ? रेडियो सुनि रहल छी – से तऽ अहूँ केँ बुझाइए गेल होयत । प्रिया धीरे सँ बाजलि । 

पढ़बा छाड़ि कऽ बतिआएब हमरो पसिन्न नञि पर बेमोन सँ किताब लऽ कऽ बैसबा सँ की लाभ ? इएह सोचैत हम पूछल – ई बात तऽ नीक नञि ?

केओ किछु नञि बाजल आ चुपचाप हमरा दिशि ताकए लागल । हमरो बुझाएल जे एहि मे धिया – पुताक कोन दोष । नेनपन तऽ निर्दोष होइत अछि, ओकर अप्पन कोनो दिशा नञि होइत छैक, जे दिशा देखाओल जाइछ तकर अनुसरण करैछ । दोष ओहि वातावरणक थिक जाहि मे किछु लोकनि पढ़बाकेँ मात्र नित्य कर्म जेकाँ बुझैत छथि आ धिया – पुताक अध्ययन – अध्यापन केर प्रति एखनहु लापरवाह छथि । ई स्थिति कोनो एक ठामक नञि अपितु प्रायः सम्पुर्ण मिथिलाक अछि जे कि बहुत असन्तोषप्रद अछि । अनायस मोन मे श्री अरविन्द कुमार “अक्कू”जीक गीतक चारि पाँती याद आबि गेल


सखी पिया केँ पत्र आइ हम,  कोना  कऽ लिखबै  हे ?
ककरा  सँ  अ – आ – क – ख – ग – ङ  सिखबै  हे ?
...............................................................
पाँचे बरष सँ फुलडाली लए, तोड़ब सिखलहुँ फूल अरहूल ।
जानी ने हम चिट्ठी - पत्री, छी बेटी  मिथिला  केर मूल ।


हलाकि आजुक स्थिति उपरोक्त गीतक पाँती सन नञि अछि, पर बेशी किछु एखनहु नञि बदलल अछि । आन ठामक धिया – पुता केर पढ़बाक व पढ़एबाक तरीका परिस्कृत भेल अछि, ओ सभ एहि क्षेत्र मे सजग भेल अछि, ओहि ठाम धिया – पुता नेनपनक आनन्द सेहो उठबैछ आ अपेक्षाकृत कम मेहनति कऽ कऽ नीक शैक्षणिक स्तर केँ सेहो प्राप्त करैछ । अपना सन्दर्भ मे बात एकदम उनटा । मैथिल धिया – पुता केर जे किछु उपलब्धि देखैत छी से अपेक्षाकृत बेशी मेहनति कऽ कऽ आ नेनपनक बलिदान कएलाक उपरान्त भेटैछ । विशिष्ट उपलब्धि – जेना कि आइ॰ ए॰ एस॰, आइ॰ पी॰ एस॰ आदि - केर सुची भलहि नम्हर हो पर औसत मैथिल धिया – पुताक उपलब्धि बहुत असन्तोषजनक अछि । या तऽ नेनपनक पाछाँ शिक्षा हेराए जाइत अछि या फेर शिक्षाक पाछाँ नेनपन, जखन कि आन ठामक धिया – पुता केँ दुहुक लाभ ओ सुख भेटैछ । आ गामक सन्दर्भ मे “धिया – पुता” कहाँ - एखनहु मात्र “पुता” । “धिया” केर पढ़ाई तऽ बहुशः एखनहु ओहिना अछि – हाँ चिट्ठी जरूर पढ़ि - लीखि सकैत छथि, पर ताहि सँ की ? एखनहु बहुधा स्थिति ओएह अछि, ओएह मानसिकता कि धिया – पुता किताब लऽ कऽ बैसल अछि, सामने फालतूक गप्प चलि रहल अछि, रेडियो बाजि रहल अछि ..........................। बियाह काल वर पक्ष पुछैत अछि कि कनिञा कते पढ़ल छथिन्ह तेँ नाँव लिखा देने छियै, पास तऽ भइए जेतै ......................... । एखनहु कते घण्टा किताब लऽ कऽ बैसल से देखल जाइत अछि, की पढ़लक से नञि ।

- यौ एकटा चीज पुछबाक अछि । सोनीक शब्द हमर मोनक विचार - प्रवाह केँ तोड़लक । 

- की ? पूछू । हम बजलहुँ ।

- ई “मातृभाषा दिवस” की होइत छै ?

- अहाँ केँ के कहलक ?

- नञि, रेडियो पर किछु बजैत छलै ।

- 21 फरवरी कऽ हर साल “अन्तर्राष्ट्रिय मातृभाषा दिवस” (International Mother Language Day) केर रूप मे मनाओल जाइत अछि । हम उत्तर देल ।

- से किएक ? पवन बाजल ।

- अहाँ सभ केँ तऽ बुझलहि होयत कि 15 अगस्त 1947 ई॰ कऽ जखन भारत स्वतन्त्र भेल तऽ भारत केर विभाजन भेल आ पाकिस्तान नामक देश बनल ।

- हाँ । से तऽ सभ केँ बुझल छै -  सोनी बाजलि ।

- ओहि समयक पाकिस्तानक दू टा भाग छल पच्छिमी पाकिस्तान यानि कि आजुक “पाकिस्तान” आ “पुरबी पाकिस्तान” अर्थात् आजुक “बाङ्गला देश” ।

- अच्छा । गम्भीर स्वरेँ प्रिया बाजलि ।

- 21 मार्च 1948 ई॰ कऽ पाकिस्तानक तत्कालीन गवर्नर जनरल स्व॰ मोहम्मद अली जिन्ना जी आदेश देलन्हि कि सम्पुर्ण पाकिस्तान केर राजकाजक एकमात्र भाषा होयत “उर्दू” ।

- जेना कि अपना देश मे “हिन्दी” - पवन बाजल ।

- नञि पवन बाबू, अहाँक ई जानकारी गलत अछि । भारत एहि परिप्रेक्ष्य मे थोड़ेक उदार नीति अपनओलक । भारत केर संविधानक “आठम अनुसुची” (8th Schedule) मे मान्यता प्राप्त हरेक भाषा राष्ट्रभाषा थिक आ नैतिक व संवैधानिक रूपेण समान अधिकार रखैछ । जा धरि “हिन्दी” केर लेल सम्पुर्ण भारतवर्ष मे समान रूप सँ सहमति नञि होइछ ता धरि  पूरा भारत मे “हिन्दी” आ “अंग्रेजी” राजकाजक भाषा रहत । संगहि - संग आठम अनुसुची मे शामिल आन भाषा सभ सेहो अपन – अपन क्षेत्र वा राज्यविशेष मे राजकाजक भाषा रहत । जेना कि बंगाल मे बंगाली, महाराष्ट्र मे मराठी आ .............

- ............... आ मिथिला मे मैथिली । पवन बिच्चहि मे लोकैत बाजल ।

- हाँ । तऽ स्व॰ जिन्ना जी केर आदेश सँ तत्कालीन पच्छिमी पाकिस्तानक लोक सभ केँ खुशी भेलन्हि किएक तऽ हुनिका लोकनि केँ उर्दू नीक जेकाँ अबैत छल । पर तत्कालीन पुरबी पाकिस्तानक लोक क्षुब्ध भऽ उठलाह कारण हुनिका लोकनि केँ “बाङ्गला” केर अतिरिक्त आन भाषा वा उर्दू नञि अबैत छलन्हि ।

- तऽ फेर की भेलै ? उत्सुकता भरल स्वरेँ प्रिया पुछलक ।

- फेर पुरबी पाकिस्तान मे एहि प्रस्तावक भयंकर विरोध भेल । पुरबी पाकिस्तानक राजधानी “ढाका” मे छात्र लोकनि शान्तिपुर्ण प्रदर्शन कएलन्हि आ बन्न आयोजित कयलन्हि । पर तत्कालीन पाकिस्तान सरकार एहि विरोधक यथासम्भव दमण कएलक । 21 फरबरी 1952 ई॰ केर दिन शान्तिपुर्ण प्रदर्शन कए रहल छात्र लोकनि पर गोली चलाओल गेल । बहुत लोकनि घायल भेलाह आ बहुतहु प्राण गमओलाह । प्राण गमओनिहार आन्दोलनकारी छात्र लोकनि मे प्रमुख छलाह स्व॰ अब्दुर्सलीम, स्व॰ रफ़ीक़ उद्दीन अहमद, स्व॰ अब्दुल बर्कत आ स्व॰ अब्दुल ज़ब्बार । 

- ई तऽ जलियाँबाला बाग जेकाँ काज भेल । पवन बाजल ।

- हाँ । बाङ्गला देशक स्वतन्त्त्रताक बाद 21 फरबरी 1952 ई॰ केर दिन दिवंगत भेल सभ गोटेक स्मरण चिन्हक रूप मे “ढाका विश्वविद्यालय” केर प्राङ्गन मे एक गोट स्मारकक निर्माण कराओल गेल, जकर नाँव थिक “शहीद मिनार” ।


चित्र ‍१ – ढाका विश्वविद्यालय परिसर स्थित “शहीद मिनार”
(साभार सौजन्य – विकिपीडिया, पब्लिक डोमेन)


- तऽ तहिये सँ “अन्तर्राष्ट्रिय मातृभाषा दिवस” मनाओल जाय लागल । प्रिया बाजलि ।

- नञि । एतेक आसान नञि छल । बहुतहि संघर्ष चलल । 26 मार्च 1971 ई॰ कऽ पुरबी पाकिस्तान अपना आप केँ स्वतन्त्र घोषित कएलक पर पाकिस्तान सरकार केँ से मान्य नहि । अन्ततः 16 दिसम्बर 1971 ई॰ केर दिन युद्ध मे पुरबी पाकिस्तान द्वारा पच्छिमी पाकिस्तान पराभूत भेल ।  पुरबी पाकिस्तान स्वतन्त्र देश बनल जकर नाँव राखल गेल “बाङ्गला देश” । यद्यपि फरबरी 1974 ई॰ मे पकिस्तान  बाङ्गला देश केँ स्वतन्त्र देश मानलक तथापि 26 मार्च 1971 ई॰ केर दिन केँ “बाङ्गला देश” मे स्वाधीनता दिवस केर रूप मे मनाओल जाइत अछि । 

- हाँ । 1971 ई॰ केर युद्धक चर्च हमर इतिहासक किताब मे अछि । विकास बाजल ।

- बहुत बाद मे 17 नवम्बर 1999 ई॰ कऽ यूनेस्को (UNESCO; United Nation's Educational, Scientific & Cultural Organization) द्वारा 21 फरबरी केँ औपचारिक रूपेँ  “अन्तर्राष्ट्रिय मातृभाषा दिवस” केर रूप मे घोषित कएल गेल ।  आ ताहि दिन सँ हरेक वर्ष 21 फरबरी केर दिन “अन्तर्राष्ट्रिय मातृभाषा दिवस” केर रूप मे मनाओल जाइत अछि । एहि दिवस केँ मनएबाक मुख्य उद्देश्य भाषायी आ सांस्कृतिक वैविध्य केँ संरक्षण करब आ बहुभाषिता (multilingualism) केँ बढ़ायब थिक । 

चित्र ‍२ – ऑस्फील्ड पार्क, सिडनी, ऑस्ट्रेलिया स्थित “अन्तर्राष्ट्रिय मातृभाषा दिवस स्मारक”
(साभार सौजन्य – विकिपीडिया, पब्लिक डोमेन)


- चलू, आइ बहुत नीक चीज बताओल अहाँ । प्रिया बाजलि ।

- हाँ, ओना तऽ हम सभ खाली किताब खोलि बैसल रही आ घूर तऽरऽक गप्प पिबैत रही । अहाँ केँ अयला सँ किछु नऽव सीखल । सोनी बाजलि । 

- तऽ आब रतुका भोजन केर लेल चली ? हम पूछल ।

- हँ ........ हँ .......... सभ धिया – पुता बाजल । आ हम सभ रतुका भोजनक लेल आङ्गन दिशि विदा भेलहुँ ।



डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४


विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५० , अंक ‍१०० , ‍१५ फरबरी २०१२ मे “बालानां कृते” मे प्रकाशित ।



पद्य - ४० - वसन्तक आगमण पर


वसन्तक आगमण पर
          
भेल पुलकित दिग - दिगन्त, आ खीलि उठल हर अन्तरा
स्वागतहि   आगत  वसन्तक, सजि   रहल  ई  वसुन्धरा ।।


  

भेल पुलकित दिग - दिगन्त,
                       आ खीलि उठल हर अन्तरा
स्वागतहि  आगत  वसन्तक,
                       सजि   रहल  ई  वसुन्धरा ।।


कास केर तजि श्वेत  अभरण,
पहीरि कुसुमक ललित पहिरन,
कऽ  सकल  सिंगार   हर्षित, 
                        कर   प्रतिक्षा   वसुन्धरा ।
भेल पुलकित दिग दिगन्त, आ खीलि उठल हर अन्तरा ।।


चानने   मलयक   सुवासित,
सौरभेँ   पुष्पक    प्रभावित,
करय गमगम, मुदित हर कण, 
                         हर  दिशा,  हर  अन्तरा
भेल पुलकित दिग दिगन्त, आ  खीलि उठल हर अन्तरा ।।


हँसि रहल निमिलित कमलदल,
मुद  मनेँ  अलिदलक  सञ्चर,
मुदित, हर्षित, लसित कोकिल,
                        गाबय   स्वागत  अन्तरा
भेल पुलकित दिग दिगन्त, आ खीलि उठल हर अन्तरा ।।







अर्थ निर्देश :-

१)      अन्तरा = कोण / कोणा – दोगा
२)      अन्तरा =  दू (दिशाक) बीच मे स्थित (जगह या स्थान) 
३)      अन्तरा = गीतक आखर (सामान्य शब्देँ)






डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४

विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५० , अंक ‍१०० , ‍१५ फरबरी २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।



पद्य - ३९ - जयति जय श्री त्रिपुरारी केर


जयति जय श्री त्रिपुरारी केर
(शिवराति पर विशेष)



कार्तिक आओर गणेशक तात,  रुद्र - असुरारि केर ।
                   बसहा बरद सवारी केर ना ।।



गौरीकान्त,  गिरीश, उमापति,  जय ऋतुध्वंशी केर ।
                उगना मिथिलाविहारी केर ना ।।






बम - बम भोलेनाथ, जयति - जय श्री त्रिपुरारी केर ।
                   त्रिलोचन, चन्द्रधारी केर ना ।।

कर मे त्रिशूल आ डमरू विराजन्हि,
जनिकर  अम्बर  छन्हि बघछाल ।
गरा मे  लटकनि  साँप  अहर्निश,
संगहि  रुद्राक्षक   छन्हि   माल ।
शम्भू – गिरिजापति, जय नीलकण्ठ, जटाधारी  केर ।
                     गंगा मस्तकधारी केर ना ।।

श्मशान मे राज जनिक छन्हि,
भूत – प्रेत    केर     संग ।
कान मे कुण्डल, हाथ कमण्डल,
सौंसे   देह  रमओने   भस्म ।
गौरीकान्त,  गिरीश, उमापति,  जय ऋतुध्वंशी केर ।
                 उगना मिथिलाविहारी केर ना ।।

वास जनिक कैलाशक ऊपर,
हिमगिरि  जनिक तपोवन ।
त्रिपुरासुर केँ मारि खसाओल,
कएल   जलन्धर  भञ्जन ।
कार्तिक आओर गणेशक तात,  रुद्र - असुरारि केर ।
                   बसहा बरद सवारी केर ना ।।

हिनक भक्त रावण छल रक्तप,
तइयो  मान  ओकर राखल ।
कयल  तपस्या घोर भगीरथि,
मनवाञ्छित फल ओ पाओल।
भोला - भंगिया – शिव - शंकर;  भक्तक हितकारी जे ।
                   विष्णु - चरण पुजारी जे ना ।।
विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५० , अंक ‍१०० , ‍१५ फरबरी २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।


Thursday 2 February 2012

पद्य - ३८ - हे अए (ऐ) हमर शशिकामिनी


हे अए (ऐ)  हमर शशिकामिनी
(गीत)



मधु - हासिनी ,     सौदामिनी ।



हे अए (ऐ)  हमर शशिकामिनी ।*
हे अए (ऐ)  हमर शशिकामिनी ।।

गज - गामिनी,      मनोहारिनी ।
मम्   हृदय - कुञ्ज  विहारिणी ।।

मृदु - भाषिणी,  मित - भाषिणी ।
छलकय  अधर  सञो  वारुणी ।।

मधु - हासिनी ,     सौदामिनी ।
रति - छवि नयन  सुखदायिनी ।।

प्रिय - दर्शिनी,    मधु - वर्षिणी ।
शोभा       अलंकृत - कारिणी ।।

मन्मथ - जयी,     सद्यः   रती ।
कर काम  जय - ध्वज धारिणी ।।

अहँ   उर्वशी,    मम् उर बसी ।
अहँ    प्रीति पय - मन्दाकिनी ।।

हे  अए (ऐ)  हमर  शशिकामिनी ।
हे अए (ऐ)  हमर  शशिकामिनी ।।




* शशिकामिनी = चाँदनी = चानी



“विदेह” मैथिली पाक्षिक इ – पत्रिका, अंक ९९, वर्ष ५, मास ५० मे,  ‍१ फरवरी २०१२ कऽ, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।

उड़ि ने सकी पर चिड़ै छी हम (भाग-२)




विज्ञान विषयक लेख सभक लेल नित नऽव पारिभाषिक शब्द सभक आवश्यकता पड़ैछ । एहि प्रकारक पारिभाषिक शब्द सभ कोनहु भाषा मे ओकर मातृक मूल भाषा (Parent / Source language) सँ बनाओल जाइछ, यथा अंग्रेजी मे लैटिन सँ  मैथिली मे संस्कृत सँ 


उड़ि ने सकी पर चिड़ै छी हम
(भाग-२)


अगिला साँझ, हाट – बजार कऽ कऽ आङ्गन अबैत रही । दूरहि सँ कोनटहि लऽग सँ बुझा गेल जे धिया – पुता सभ बाट ताकि रहल अछि । आइ संख्या सेहो किछु बेशीअहि बुझि पड़ल, जे कि यथार्थे छल ।
लऽग अबितहि सभ धिया  - पुता सामने राखल काठक कुर्सी पर हमरा झीकि – तीरि कऽ बैसा देलक आ अपने सभ सामने राखल चौकी पर बैसि रहल ।
सोनी – तऽ चलू आब शुरू भऽ जाउ आ आगाक खिस्सा सुनाउ ।

कञ्चन – हम्मे काल्हि नञि रहियै , हम्मे शुरू सऽ सुनबै । 
किछु धिया पुता सभ बाजल – नञि ! नञि !  हम सभ आगा केर खिस्सा सुनब । 
कञ्चन आइ भोरहि भागलपुर सँ आयल छलि, एहि ठाम ओकर मामा गाम । तऽ फेर भगिनमानक बऽल, कोना ओकर बात टारि सकैत छलियै । बाकी धिया – पुता केँ सेहो मोन नञि तोड़ल जा सकैत छल तेँ ओकरा सभ केँ समझबैत पहिलुका खिस्सा एक बेर फेर सँ संक्षेप मे कहल । 
.......................... तऽ हम सभ कैसोवरी लग आबि कऽ रूकल रही ??
- हँ, आ एकर बाद “सोन चिड़ै” केर बारी रहए । बब्बन सोनी दिशि इशारा करैत बाजल । सभ धिया – पुता फेर जोर सँ भभा कऽ हँसि पड़ल ।
सोनी ओहि ठाम सँ उठि, हमर कुर्सीक कात मे आबि ठाढ़ि भऽ गेलि । थोड़ेक तामस मे बाजलि – यौ देखै छियै ई सभ कोना हमरा खौंझबैत रहइए ।
- हम कात मे राखल एकटा मचिया अपन कुर्सीक बगल मे रखैत बजलहुँ – ठीक छै तोँ एहि ठाम बैसह । एहि मे खौंझाइ केर कोन गप्प , तोँ तऽ छऽहे “सोन चिड़ै” । लोक तऽ दुलार सँ कहैत छौ ने । 
- ओकर तामस कम होइत निपत्ता भऽ गेलै जेना कि सहजहि धिया – पुता सभ मे होइत छै । ओ हमरहि लऽग ओहि मचिया पर बैसि रहलि । 
- हँ तऽ ऑस्ट्रेलिया केर बगल मे कोन देश छै ? - हम बाकी धिया – पुता दिशि मूँह करैत बजलहुँ ।
– न्यूजीलैण्ड । सभ धिया पुता केँ शान्त देखि कञ्चन कने गम्भीर पर आत्मविशवास भरल स्वर मे बाजलि ।
हम – आ ओहि ठामक राष्ट्रिय चिड़ै कोन ? 
– सभ धिया पुता फेर अवाक भए हमर मूँह ताकए लागल । 
- तोँ सभ क्रिकेट खेलय जाय छह, टी॰ भी॰ पर सेहो देखै जाय छह, कने जोड़ दहक दिमाग पर – हम बजलहुँ ।
हम पुनः बजलहुँ - अच्छा छोड़ह, ई कहह जे न्यूजीलैण्ड केर लोक सभ केँ की कहल जाइत छै ?
बब्बन – चहकैत बाजल – अरे, हाँ ................ कीवी ।
हम – एकदम सही “कीवी” ओहि ठामक राष्ट्रिय चिड़ै अछि आ ओहो उड़ि नञि सकैत अछि आ ओकरहि कारणेँ ओहि ठामक रहनिहार लोक सभ केँ सेहो कीवी कहि सम्बोधित कयल जाइत अछि । कीवीक वंश (Genus) थिक अटेरिक्स (Apteryx) । एकर पाँच टा जाति (Species) पाओल जाइत अछि , जाहि मे सँ अटेरिक्स ऑस्ट्रेलिस (Apteryx australis) बेशी प्रशिद्ध । ई लजकोटरि आ मुख्यतः राति मे विचरण कएनिहार चिड़ै अछि । तेरहम सती मे न्यूजीलैण्ड मे मनुक्खक आगमन सँ पहिने ओहि ठाम कीवी केर कोनो शत्रु नञि छल । परञ्च मनुक्ख अपना संगहि कुकुर, बिलाइ आ ओकरहि सन आन जानवर जेना कि स्टोट (Stoat) फेर्रेट (Ferret ,बिज्जी केर एक प्रकार)  आदि सेहो नेने आयल । स्टोट आ फेर्रेट कीवीक अण्डा केर परम शत्रु आ कुकुर बिलाइ वयस्क कीवीक । एहि प्रकारेँ कीवीक संख्या बहुत कम होइत गेल आ ई चिड़ै वलुप्त होयबाक श्रेणी मे आबि गेल । एकरा बचयबाक लेल 2000 ई॰ मे न्यूजीलैण्ड मे पाँच टा कीवी अभयारण्य (sanctuary) बनाओल गेल अछि ।




प्रिया – से सभ तऽ ठीक । पर एकरा बारे मे कोनो विशेष बात बताउ ।
हम – बहुत किछु विशेषता छै । एकर सूँघबाक शक्ति बहुत तेज होइत अछि ।
सोनी – तखन तऽ ईहो कुकुरहि भेल कि ने ?
हम – हाँ एहि मामिला मे कुकुरहि सन तेज । एकर नमगर चोंचक अगिला भाग मे नासाछिद्र (Nostrils)  होइत अछि जखन कि आन चिड़ै सभ केर चोंच केर पछिला भाग मे । ई सर्वाहारी अछि आ फल – फूल, कीड़ा – मकोड़ा, बेङ्ग – दादुर आदि खा जाइत अछि । कीवी बिना देखनहि, जमीनक नीचा मे, बिल मे बैसल कीड़ा – मकोड़ा केँ सही – सही अन्दाजि सकैत अछि । यद्यपि शुतुर्मुर्गक अण्डा केर वास्तविक आकार दुनिञा मे सभसँ पैघ अछि , पर वयस्क चिड़ै केर आकार केर अनुपात मे अण्डा केर आकार  देखला सँ कीवीक अण्डाक सानुपातिक अकार (Relative / comparative size) सभसँ पैघ होइछ । कीवीक एक अण्डा केर ओजन वयस्क स्त्री कीवीक ओजन केर चौथाई ओजन धरि भऽ सकैत अछि । ई किछु गिनल - चुनल चिड़ै मे सँ अछि जे एक बेर जोड़ी बनओलाक बाद जिनगी भरि संग रहैछ । 
विकास – हूँ । से नञि बूझल छल ।
हम – आब हम सभ नऽव दुनिञा दिशि चली ।
बब्बन – नऽव दुनिञा ? हम नञि बुझली ।
प्रिया – अमेरिका के नऽव दुनिञा कहल जाइत छै ........छै ने ? हमरा दिशि तकैत बाजलि ।
हम – हँ नऽव दुनिञा (New World) प्रायः अमेरिकहि केँ आ खास कऽ दक्षिणी अमेरिका (उच्चारण – दैच्छनी अमेरिका)  केँ कहल जाइत छै । ओना किछु लोक ऑस्ट्रेलिया आ लऽग – पासक द्वीप समूह सभ केँ सेहो नऽव दुनिञा कहैत छथिन्ह ।
कञ्चन यानि कि हम्मे सभ एक नऽव दुनिञा सऽ दोसर नऽव दुनिञा जयवो ।
हम हँ । तऽ चली । सभ केओ तैय्यार छी ।
- सभ धिया पुता एक स्वरेँ बाजल हँ, तैय्यार छी ।
हम -  द॰ अमेरिका केर मूल निवासी अछि रिया । ई करीब – करीब पूरा दक्षिणी अमेरिका – जेना कि ब्राजील, पेरू, अर्जेण्टीना, चीली आदि देश – मे पाओल जाइत अछि ।
पवन रिया तऽ हमर मौसी के नाम हए ।
हम पर एहि ठाम रियामनुक्खक नञि, चिड़ै केर नाँव थिक । एकर दू टा जाति पाओल जाइछ पहिल बड़की रिया या रिया अमेरिकाना (Rhea americana) आ दोसर छोटकी रिया या रिया पिन्नाटा (Rhea pennata) । ई सभ सर्वाहारी (Omnivirous)  होइत अछि पर अधिकांशतः चाकर पत्तावला गाछ – बिरिछ केर पात खाइत अछि, पर जरूरति पड़ला पर फल, बीया आ छोट – मोट गाछक जड़ि सेहो चिबा जाइत अछि । भूख लगला पर छोट – मोट कीड़ा – मकोड़ा आ गिरगिट धरि खा सकैत अछि । नञि उरि सकएबला चिड़ै सभ मे रिया केर पंखक आकार सभसँ पैघ होइत अछि आ जखन ओ चलैत वा दौड़ैत अछि तऽ पंख केँ थोड़े – थोड़े पसारि लैत अछि । ई चिड़ै बहुत चलाक होइत अछि ।
सोनी – से कोना ?
हम – पहिने बताओल आन चिड़ै सभ जेना ईहो जमीने पर अपन अण्डा दैत अछि , घोसला आस – पास मे पाओल जाय वला  घास – पात सँ बनबैछ । एक घोसला मे 10 सँ 60 धरि अण्डा भऽ सकैत अछि । 
पवन – एहि मे कथी केर चलाकी ?
हम - ई एकर चलाकी नञि । अण्डा खएनिहार जीव – जन्तु केर ध्यान बहटारए केर लेल ई चिड़ै अपन मुख्य घोसला केर चारू कात दू – चारि टा अण्डा छोड़ि दैत अछि । एहि प्रकारेँ अपन किछु अण्डा केर बलि दऽ कऽ शेष अण्डा केँ बुद्धिमानी सँ सुरक्षित बचा लैछ । 




बब्बन – हँ, तऽ बुझली, इएह छी एकर चलाकी । 
हम – दक्षिणी अमेरिका मे एक गोट आओरो चिड़ै भेटैछ , जे उड़ि नञि सकैछ । केओ बता सकैत छी ओकर नाँव ??
- सभ धिया – पुता एक दोसराक मूँह ताकए लागल । पर केओ किछु नञि बाजल । 
हम“पेंगुइन” केर नाम सुनने छह की ?
- सभ धिया – पुताक जेना भक टुटि गेल हो । एक्कहि संगे जोर सँ बाजल – यौ ! ओ तऽ अण्टार्कटिका मे होइत छै ।
सोनी –  अहीं तऽ अपन पिछला खिस्सा – “खिस्सा अण्टार्कटिका केर” - मे लिखने छलियै । यौ अहूँ केँ निन्न लागल सन बुझाइत अछि ।
हम – निन्न नञि लागल अछि । हम ई थोड़े ने लिखने रही कि पेंगुइन (पेंग्वीन) खाली अण्टार्कटिकहि मे होइत अछि । पेंगुइन केर करीब 17 सँ 20 जाति पाओल जाइत अछि आ ओ अण्टार्कटिकाक अतिरिक्त दक्षिणी अमेरिका (अर्जेण्टीना, चीली), ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, दक्षिण अफ्रिका, गैलेपैगोस द्वीपसमूह आदि स्थान पर पाओल जाइत अछि । ई सभटा स्थान पृथ्वीक दक्षिणी गोलार्ध (Southern hemisphere) मे अबैछ । जे अकार मे पैघ आ भारी पेंगुइन अछि ओ ठण्ढा जगह पर आ जे छोट आ हल्लुक पेंगुइन अछि से अपेक्षाकृत गर्म जगह पर पाओल जाइछ । सम्राट पेंगुइन या एम्पेरर पेंगुइन (Emperor penguin) सभसँ पैघ आ भारी होइछ जे कि अण्टार्कटिका मे रहैछ । एकर ऊँचाई 1.1 मीटर (लगभग साढ़े तीन फीट) आ ओजन लगभग 35 कि॰ग्रा॰ धरि होइत अछि ।  सम्राट पेंगुइन केर जैव वैज्ञानिक नाँव अछि ऑप्टेनोडाइटिस फोर्सटेराइ (Aptenodytes forsteri) । अच्छा, अहाँ सभ केँ एकरा बारे मे की की बूझल अछि ?





बब्बन – ई हमरे आर मनुक्ख जेकाँ दू पैर सऽ चलि सकै हए ।
हम – एकर मतलब कि अहाँ सभ एहि चिड़ै सँ अपरिचित नञि छी । पेंगुइन मनुक्खे जेकाँ दू पएर सँ धऽर उठा कए नाकक सीध मे चलि सकैत अछि । एहि चलबाक समय ओकर छोट- क्षीण नाँगरि (Tail)  सन पछिला भाग ओकरा अपन शरीर केँ सन्तुलित रखबा मे मदति करैछ ।
कञ्चन – हम्मे डिस्कवरी चैनल पर देखने रहियै जे ओकर पेट उज्जर आ पीठ कारी होइ छैक ।
हम – एकदम सही, ओकर पेटक रंग बर्फ सन उज्जर होइत अछि । एहि कारणेँ समुद्रक अन्दर सँ ताकि रहल शिकारी समुद्री जीव – जेना कि सील, वालरस आदि – समुद्रक कात मे बर्फ पर ठाढ़ पेंगुइन आ बर्फ मे भेद नञि कऽ पबैछ । एहि प्रकारेँ पेटक उज्जर रंग ओकरा लेल सुरक्षा – कवच सन काज करैत छै । तहिना पीठ परक कारी रंग सेहो – आकाश मे उड़ि रहल पैघ शिकारी चिड़ै सभ पाथर सन बुझि धोखा खा जाइत अछि ।  जीव विज्ञान मे एहि प्रकारक प्राकृतिक सुरक्षा व्यवस्था केँ छद्मावरण (Camouflage)  कहल जाइछ । एकर आन उदाहरण अछि गिरगिट केर रंग बदलब । आओर की ?
सोनी – ओ पानि मे सेहो हेलि सकैत अछि ।
हम – बेस कहल । ओ समुद्रक पानि मे डुम्मी काटि कऽ हेलि (Diving) सकैत अछि । ओकर देह मे बहुत चर्बी रहैत छै । अहाँ सभ केँ बुझले होयत कि चर्बी पानि सँ हल्लुक होइत अछि आ तेँ ओ पानि मे हेलबा मे मदति करैछ । ई चर्बी पेंगुइन केँ ठण्ढी सँ सेहो सुरक्षित रखैछ । ओकर दुनू पंख पानि मे हेलबाक लेल अनुकूलित भऽ गेल अछि आ हेलबाक समय नाओ केर पतवाड़ि सदृश काज करैछ । ओ 6 सँ 12 कि॰ मि॰ प्रति घण्टा केर गति सँ पानि मे दुम्मी मारि कऽ हेलि सकैछ । सम्राट पेंगुइन समुद्र केर भीतर 365 मीटर अर्थात्  1870 फीट गहीर तक जा सकैत अछि । ओ समुद्री माछ आ जीव  जन्तुक शिकार कऽ कऽ अपन पेट भरैछ आ कहुखन – कहुखन इएह फेरी मे स्वयं आन समुद्री प्राणीक (यथा सील आ वालरसक) शिकार सेहो बनि जाइछ । ओ समुद्रक पानि सेहो पिउबि कऽ पचा सकैत अछि आ समुद्रक पानि केर संग पिउल गेल अतिरिक्त नोन केँ मगरमच्छे जेकाँ नोरक संग बहा दैछ । पानि मे पेंगुइन केर हेलबाक प्रक्रिया देखबा मे बहुत किछु हवा मे कोनो चिड़ै केर उरबाक प्रक्रिया सँ मेल खाइछ ।





प्रिया – सही मे , ई तऽ चिड़ै सनि लगिते नञि अछि ।
हम – हाँ । कखनो - कखनो ई बर्फ पर छहलैत – छहलैत (Sliding)  एक जगह सँ दोसर जगह पहुँचि जाइछ तऽ कखनो – कखनो छोट धिया – पुता जेकाँ दुनु पएर उठा कऽ कूदि – कूदि कऽ सेहो चलैछ ।
पवन – आश्चर्य !!!
हम – हाँ आश्चर्ये थिक । ओना तऽ नञि उड़ि सकनिहार करीब 40 प्रकारक चिड़ै अछि पर ई चिड़ै सभ लोक केँ बेशी आकर्षित करैत अछि तेँ अहूँ सभ केँ सुना देलहुँ । ई  खिस्सा आब एतहि समाप्त करैत छी । 
विकास – तइयो किछु आओर एहि तरहक चिड़ै सभहक नाँव तऽ बताउ ।
हम – नाँव तऽ अहूँ सभ केँ बुझले अछि – मुर्गा, बत्तख मोर
प्रिया – पर ओ सभ तऽ उड़ए छै ।
हम – नञि खा गेलहुँ ने धोखा । ओ सभ वास्तव मे उड़ैत नञि अछि, कोनो ऊँच स्थान सँ कुदैत अछि, अपन पंख केँ फड़फड़बैत अछि आ हवा पर गुड्डी (पतंग) जेकाँ उधियाइत वा उड़ियाइत (Glide) रहैत अछि ।
पवन – ठीके यौ, सही कहलहुँ अहाँ ।
हम – चलैत – चलैत एकटा नाँव आओर बता दैत छी – “डोडो” (Dodo) । ई चिड़ै मॉरिशस केर मूल निवासी छल, उड़ि नञि सकैत छल । अत्यधिक शिकार होयबाक कारणेँ ओ करीब चारि – साढ़े चारि सौ वर्ष पहिने विलुप्त (Extinct) भऽ गेल ।
पवन – ओह ! ई तऽ बहुत खड़ाब भेल ।
हम – हँ से तऽ अछि । पर जे एक बेर विलुप्त भऽ गेल से फेर सँ दोबारा नञि आबि सकैत अछि ।
- किछु क्षण केर लेल सभ धिया – पुता शान्त भऽ गेल ।
- शान्तिमय वातावरण केँ तोड़ैत हम बजलहुँ । ठीक अछि तऽ आब चलबाक चाही ।
- हाँ । सभ धिया – पुता बेमोन सँ बाजल ।
सोनी – फेर अगिला बेर कोन खिस्सा सुनाएब ।
हम – से अगिलहि बेर कहब । ता धरि शुभ रात्रि ।

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"विदेह पाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५०, अंक ९९, स्तम्भ – बालानां कृते,  दिनांक ०१।०२।२०१२ मे प्रकाशनार्थ ।