बगरी
(बाल कविता)
पोखरिक भीड़ ई, एम्हर
घाट ।
ओम्हर नञि छी
आबरजात ।।
ओहि भीड़ पर
जंगल - झाड़ ।
देखू ! पानिमे लटकल
गाछ ।।*१
ताहि गाछ पर अजगुत
खोंता ।
कोना बनओलक, होइछ छगुन्ता ।।*२
खोंता डाढ़िसँ लटकि
रहल छै ।
बीच फूलल, मूँह गोल ओकर छै ।।
ओहिमे सँ
उड़लै जे चिड़ै ।
बगरा सनि देखबामे
छै ।।
किछु केर माथ छै सुन्नर पीयर ।
पर दोसर किछु, नञि छै पीयर ।।*३
झुण्डक - झुण्ड आबै
छै, देखू !
खेतहि - खेत
घुमै छै, देखू !!
जखनि झुण्ड बड़
पैघ रहै छै ।
फसिलक बड़ नोकशान करै छै ।।*४
चिड़ै-बझौआ जाल बिछओलक ।
पकड़ल बगरी पिञ्जरा धएलक ।।*५
संकेत
आ किछु रोचक तथ्य -
*१ - एहन स्थान जाहि ठाम मनुक्खक पहुँच सुलभ नञि हो (प्रायः
कोनहु जलाशयक परित्यक्त भीड़ परक कोनहु पैघ गाछ पर) ई चिड़ै अपन खोंता लगबैत अछि ।
*२ - एकर खोंता विशिष्ट प्रकारक होइत अछि । खोंताक उपरुका शिर्ष गाछक कोनहु डाढ़िसँ बान्हल रहैत अछि आ निचलुका भाग हावामे झुलैत रहैत अछि । खोंताक बीचक भाग फुलल रहैत अछि जाहिमे चिड़ै केर अएबा - जएबा लेल गोलाकार मूँह बनल रहैछ । प्रायः एक गाछ पर कतेकहु एहि तरहक खोंता रहैत अछि ।
*३ - बगरी देखबामे बहुत किछु बगरा सनि लागैत अछि ।
बरखाक समयमे पुरुष बगरीक माथक रंग टुहटुह पीयर भऽ जाइत अछि जखनि कि स्त्री बगरीमे
से नञि होइत अछि ।
*४ - ई चिड़ै खेतमे अन्नक दाना चुनि कऽ अपन पेट भरैत
अछि । तेँ बहुत अधिक संख्यामे भेला पर खेतक जजातिकेँ नोकशान सेहो पहुँचबैत अछि ।
*५ - चिड़ै बझओनिहार लोकनि एकरा जालमे बझाए बजारमे
बेचैत छथि । किछु लोक पिञ्जरामे पोषबाक लेल तँऽ किछु लोक एकर मांसु खएबाक लेल एहि
चिड़ैकेँ किनैत छथि ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 198म अंक (15 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक 198) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे प्रकाशित ।
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