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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Saturday, 26 March 2016

पद्य - ‍१७४ - बगरी (बाल कविता)

बगरी (बाल कविता)



पोखरिक  भीड़  ई,  एम्हर घाट ।
ओम्हर  नञि  छी   आबरजात ।।

ओहि  भीड़  पर   जंगल - झाड़ ।
देखू ! पानिमे   लटकल   गाछ ।।*

ताहि  गाछ पर  अजगुत  खोंता ।
कोना बनओलक, होइछ छगुन्ता ।।*

खोंता  डाढ़िसँ  लटकि  रहल छै ।
बीच फूलल, मूँह गोल ओकर छै ।।

ओहिमे सँ   उड़लै   जे   चिड़ै ।
बगरा   सनि    देखबामे   छै ।।

किछु केर माथ छै सुन्नर पीयर ।
पर दोसर किछु, नञि छै पीयर ।।*

झुण्डक - झुण्ड  आबै छै,  देखू !
खेतहि - खेत  घुमै  छै,  देखू !!

जखनि झुण्ड  बड़ पैघ  रहै छै ।
फसिलक बड़ नोकशान करै छै ।।*

चिड़ै-बझौआ जाल बिछओलक ।
पकड़ल बगरी पिञ्जरा धएलक ।।*

संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - एहन स्थान जाहि ठाम मनुक्खक पहुँच सुलभ नञि हो (प्रायः कोनहु जलाशयक परित्यक्त भीड़ परक कोनहु पैघ गाछ पर) ई चिड़ै अपन खोंता लगबैत अछि ।

* - एकर खोंता विशिष्ट प्रकारक होइत अछि । खोंताक उपरुका शिर्ष गाछक कोनहु डाढ़िसँ बान्हल रहैत अछि आ निचलुका भाग हावामे झुलैत रहैत अछि । खोंताक बीचक भाग फुलल रहैत अछि जाहिमे चिड़ै केर अएबा - जएबा लेल गोलाकार मूँह बनल रहैछ । प्रायः एक गाछ पर कतेकहु एहि तरहक खोंता रहैत अछि ।




* - बगरी देखबामे बहुत किछु बगरा सनि लागैत अछि । बरखाक समयमे पुरुष बगरीक माथक रंग टुहटुह पीयर भऽ जाइत अछि जखनि कि स्त्री बगरीमे से नञि होइत अछि ।

* - ई चिड़ै खेतमे अन्नक दाना चुनि कऽ अपन पेट भरैत अछि । तेँ बहुत अधिक संख्यामे भेला पर खेतक जजातिकेँ नोकशान सेहो पहुँचबैत अछि ।

*- चिड़ै बझओनिहार लोकनि एकरा जालमे बझाए बजारमे बेचैत छथि । किछु लोक पिञ्जरामे पोषबाक लेल तँऽ किछु लोक एकर मांसु खएबाक लेल एहि चिड़ैकेँ किनैत छथि ।



मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍198म अंक (‍15 मार्च 2016) (वर्ष 9, मास 99, अंक ‍198) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।


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