Pages

मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

Powered By Blogger

Saturday 22 November 2014

मिथिलाक तीर्थ- बर्थ ओ पर्यटन स्थल - ‍‍९ --- उर्विजा कुण्ड आ जानकी मन्दिर, सीतामढ़ी


उर्विजा कुण्ड आ जानकी मन्दिरक किछु दृष्य
(जिला – सीतामढ़ी)

Photo © Dr. Shashidhar Kumar “Videha”
चित्र ©  डॉ॰ शशिधर कुमर ““विदेह”






















मिथिलाक तीर्थ- बर्थ ओ पर्यटन स्थल - ‍‍‍१० --- पुनौरा धाम, सीतामढ़ी


पुनौरा धामक किछु दृष्य
(जिला – सीतामढ़ी)

Photo © Dr. Shashidhar Kumar “Videha”
चित्र ©  डॉ॰ शशिधर कुमर ““विदेह”








Friday 21 November 2014

पद्य - ‍९७ - मंगलमय हो नव वर्ष (कविता)

मंगलमय हो  नव वर्ष



मोन पड़ैतछि, आइ नगद  आ  काल्हि उधारी ।
हमरा  सभकेँ,  लागल  किछु  एहने  बेमारी ।।
हरेक  साल – मंगलमय हो  नव वर्ष – उचारी ।
विगत्  वर्षकेँ,  अपना – अपनी,  खूब लतारी ।।

पिछला साल, सेहो स्वागत छल, एहि नववर्षक ।
आइ पुनः,  स्वागत करैत छी,  अगिला वर्षक ।।
गओले गीत ओ, पुनि गबैत छी, अछि लाचारी ।
हरेक  साल – मंगलमय हो  नव वर्ष – उचारी ।।

विगत् वर्ष, जे छल आगत, से नञि तत् नीके ।
नव आगत, करी पुनि स्वागत, होयत सब ठीके।।
जे ने कटल, से कटि जायत,  सब संकट भारी ।
हरेक  साल – मंगलमय हो  नव वर्ष – उचारी ।।

आबि रहल अछि, एक जनबरी, नऽव साल छी ।
पुनि होली, नव वर्षक स्वागत,  तेँ बेहाल छी ।।
कहिया–कहिया, कतेक–कतेक,  नव वर्ष मनाबी ।
हरेक  साल – मंगलमय हो  नव वर्ष – उचारी ।।

विगत् वर्ष, कंगाल – दिगम्बर,  बुझले अछि से ।
नवल वर्ष,  होयत विश्वम्भर,  होइछ भरम से ।।
कर्म करू,  तजि सभ आडम्बर, औना - पथारी ।
हरेक  साल – मंगलमय हो  नव वर्ष – उचारी ।।




28 DEC. 2014  कऽ प्रकाशनार्थ मिथिला दर्पण केर सम्पादकीय कार्यालयकेँ प्रेषित ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍193म अंक (‍01 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक ‍193) मे प्रकाशित ।

पद्य - ९६ - ओजोन (कविता)


ओजोन


३ टा ऑक्सीजन परमाणुसँ बनल ओजोनक अणु (प्रदर्श) 


ओजोन – ओजोन बड्ड सुनै छी,
की थिक कने बताउ ।
सुनलहुँ बहुते किछु नञि बुझलहुँ,
हमरो किछु समझाउ ।।


एक तत्त्व थिक गैस रूपमे,
नाँव जकर ऑक्सीजन ।
दू परमाणुक युतिक अणु जे,
से परिचित ऑक्सीजन ।
गाछ-बिरिछ सभ जन्तु मनुक्खो,
इएह  साँसमे  लैत’छि ।
गाछ बिरिछ पुनि आन क्रियामे,
ऑक्सीजन  छोड़ैत’छि ।
ऑक्सीजन केर त्रिपरमाणुक,
युतिसँ बनल  ओजोन ।
साँस लेबा केर ऑक्सीजनसँ,
बिल्कुल अलग ओजोन ।

जँ एतबा धरि समझि गेलहुँ,
तँऽ  आगू  बात   बढ़ाउ ।
नञि बुझलहुँ - तँऽ सेहो बाजू,

की दिक्कत कतऽ बताउ ।।

पृथिवीक वायुमण्डलक ४ पड़त वा स्तर (क्षोभ-, मध्य-, समताप- व तापमण्डल) तथा बाहरी अन्तरिक्ष वा बाह्यमण्डल
(रेखाचित्र) 

पृथिवीक वायुमण्डलक ४ पड़त वा स्तर (क्षोभ-, मध्य-, समताप- व तापमण्डल) तथा समतापमण्डलक उपड़ी सीमा पर स्थित "ओजोन पड़त वा ओजोन स्तर)
(रेखाचित्र) 


तापक्रमक घट-बढ़ अनुसारेँ,
चारि पड़त वायुमण्डल केर ।
आन विशिष्ट गुणक आधारेँ,
   उपविभाग पुनि हर मण्डल केर ।
पहिल क्षोभ, समताप फेर,
आ  मध्य-ताप तेसर-चारिम ।
समतापक  उपरी सीमा  पर,
घटना  एक  घटय  बंकिम ।
सूर्यकिरण केर एक घटक जे,
पराबैगनी  किरण  कहाबय ।
तकरा अवशोषित कऽ एहि ठाँ,
ऑक्सीजन ओजोन बनाबय ।

ओजोनक  ई  जन्म - प्रक्रिया,
सुनि  कऽ ने अनठाउ ।
ई घटना  नञि थिक  मामूली,

मुँहकेँ जुनि  बिचकाउ ।।



ऑक्सीजन आ ओजोनक अणु - परमाणुक निर्माण ओ विखण्डनक अनवरत परञ्च सन्तुलित प्रक्रिया



ई ओजोन रहय ओहि ठाँ,
ने  ऊपर – नीचाँ   जाय ।
पातड़ सन स्तर बनबय, से
ओजोन   पड़त   कहाय ।
छत्ता सन धरती पर तानल,
ओ जीवन रक्षक बनइछ ।
दुष्ट पराबैगनी किरण केर,
ई सद्यः  भक्षक बनइछ ।
टूटय – बनय – पुनः टूटय,
ओजोनक अणु  निरन्तर ।
सन्तुलित निर्माण – ध्वंश,
तेँ बुझि ने पड़इछ अन्तर ।

पराबैगनी  अछि   गुनधुनमे,
भीतर  कोना कऽ जाउ ।
ओजोनक   अभेद्य   दुर्गमे,

कोना कऽ सेन्ह लगाउ ।।

क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सी॰ एफ॰ सी॰)  युक्त पदार्थक एक उदाहरण



एतबामे मानव विकाश केर,
शंखनाद    सौंसे   भेलै ।
औद्योगिक विकाशक परचम,
ओजोनहु   पर   फहरेलै ।
सी॰एफ॰सी॰ छल सेनापति,
ओ ओजोनक संहार केलक।
भूर बना ओजोन पड़तमे,
दुष्ट किरणकेँ बाट देलक ।
पराबैगनी जा धरती पर,
डी॰एन॰ए॰ पर घात करय ।
डी॰एन॰ए॰ गुणसूत्र जीवनक,
तकरे संग  उत्पात करय ।

कर्करोग  त्वक् सँ  सम्बन्धित,
बाढ़त  से बुझि जाउ ।
जल-थल-नभ-ऋतुचक्र एखनुका,

बदलत एकदम बाउ ।।

अण्टार्कटिका महादेशक (महाद्वीपक)  ऊपर बनल ओजोन - भूर



जँ भविष्यमे नञि चाही,
एहेन सन किछु बदलाव ।
बन्न करू हर एक घटक,जनि
सी॰एफ॰सी॰  सन  भाव ।
प्रशीतक ए॰सी॰ आ फ्रीज केर,
तत्क्षण  बदलल   जाए ।
प्रणोदक-रॉकेट ईन्धन केर,
हो   उपयुक्त   उपाय ।
एखनहु चेतब तँऽ बर्षो धरि,
क्षतिपुर्तिमे     लागत ।
जँ विलम्ब कनिञो होएत तँऽ,
हमसभ होएब अभागल ।

विकसित राष्ट्र सक्षम अधिभारक,
तेँ  अधिभार  उठाउ ।
अन्य राष्ट्र बिनु मुँह बिचकओने,

निज दायित्व निभाउ ।।


'विदेह' १६७ म अंक ०१ नवम्बर २०१४ (वर्ष ७ मास ८३ अंक १६५) मे प्रकाशित ।


पद्य - ९५ - प्रदूषण (कविता)

प्रदूषण
ध्वनि - प्रदूषण केर एकटा उदाहरण

वायु - प्रदूषणक एकटा उदाहरण



प्रकर्षेण दूषित  सभ किछु थिक,  अनारोग्य केर जननी ।
ई दैवक नञि छी प्रकोप, छी मनुक्खक अपनहि करनी ।।

कोनहु बस्तु जञो  गन्दा भऽ गेल,  दूषित ओ कहबैत’छि ।
प्रकर्षेण मतलब अतिशय अछि, सीमा – हद जनबैत’छि ।।

सीमासँ   बेसी   अबाज  जञो,   कहबै  ध्वनिक  प्रदूषण ।
ऊँच सुनब, अनुनाद – नाद, बाधिर्य एकर अछि लक्षण ।।

दुषित हवा  जञो  साँस लेल  तँऽ,  साँसक होएत  बेमारी ।
दमा – एलर्जी   आओर  पता  नञि,  की – की महामारी ।।

दुषित पानि  पिउबा सँ जे सब, होइत’छि से बुझले अछि ।
पेट खड़ाब आ हैजा पेचिश,  सभटा  देखले–सुनले अछि ।।

मृदा – भूमि   सेहो   दूषित  भऽ,  बहुते  करैछ   समस्या ।
कऽलक  पानि आ खेतक उपजा,  माहुर सनक अभक्ष्या ।।

रेडियोधर्मी  अछि  पदार्थ   जञो,  विकिरण करय प्रदूषण ।
धरा – पानि  तँऽ  दूषित  अछिए,  सीधे   मारक    लक्षण ।।

एखनहुँ  जँ  संसार  ने  चेतत,   बदलत  नञि  निज करनी ।
हाथ  ने  किछु  बाँचत  भविष्यमे,  अपन दशा पर कननी ।।



'विदेह' १६७ म अंक ० नवम्बर २०१४ (वर्ष ७ मास ८३ अंक १६५) मे प्रकाशित ।