अहम् / अहं
(कविता)
हमर ई कविता मौलिक रूपसँ मैथिलीमे
लिखित अछि । ई कविता तहिया लिखल गेल छल जहिया हम कॉलेज
ऑफ आयुर्वेदमे (भारती विद्यापीठ, पूना)
B.A.M.S. द्वितीय ओ तृतीय वर्षक (2nd
& 3rd PROFESSIONAL YEAR) छात्र रही ।
ताहि समएमे महाविद्यालयक छात्र लोकनिमे EXTRA CO-CURRICULAR ACTIVITY केँ बढ़एबाक लेल “निर्मिती”
नामक WALL MAGAZINE पर कविता आदि
साहित्यिक कृति लगाओल जाइत छल जकर संयोजिका श्रीमति
इण्दापुरकर मैडम (तत्कालीन लेक्चरर आ बादमे विभागाध्यक्ष - शारीर क्रिया विभाग)
छलीह । हमहूँ मैथिली कविता लेल प्रस्ताव देल मुदा पाठक आन केओ नञि छलाह
तेँ ओकर हिन्दी अनुवाद (स्वयं द्वारा अनुदित) देब स्वीकृत भेल । ताहि अनुदित रचना
पर स्पष्ट उल्लेख रहैत छल कि मूल रचना “मैथिली” भाषामे अछि । प्रश्न उठि सकैत अछि कि मैथिली कविता मौलिक छल वा हिन्दी ? तेँ निर्मितीमे
देल गेल रचनाक छायाप्रति सेहो संगहि देल जा रहल अछि ।
हम देखि रहल
छी सिन्धु-लहरि,
जे अछि उठैत टकराइत अछि ।
अम्बर छूबा
केर आश नेने,
किछु दूर गगनमे
जाइत अछि ।।
किछु काल लागैतछि
एहना जे,
ओ सिन्धु
छाड़ि पाछाँ आएल ।
पर नभ असीम, अतिशान्त, शून्य,
के कहिया ओकरा अछि पाओल ??
एतबामे शैल-शिखर
भेटल, आ
लहरि ओतहि
जा टकराएल ।
फेर आँखि फुजल,
मुड़ि कऽ देखल,
पुनि सिन्धु बीच स्वकेँ पाओल ।।
ओ क्षुब्ध मनेँ बैसल
किछु क्षण,
नञि हारि मुदा
तइयो मानल ।
शैथिल्य त्यागि कऽ सजग भेल,
पुनि आपिस जएबा केर ठानल ।।
किछु पुनि बेसी, आओरहु बेसी,
ओ कसगर फेर
प्रयास करैछ ।
अम्बरसँ लहरि
धरिक दूरी,
मूँह बओने ओहिना ठाढ़ रहैछ ।।
कते दण्ड-पऽल, क्षण ओ प्रतिक्षण,
बीतल कतबा दिन - राति बरख ।
ओ तन - मन - धनसँ लागल छल,
श्रम - साफल्यक पर दूर दरस ।।
निज रूप - अहं ओ त्यागि देल,
एतबहिमे ओकरा
की फूरल !
घनगृहसँ नीचाँ
ताकि रहल,
अम्बर पर
अपनाकेँ देखल !!
मैथिली
पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 218म अंक (15 जनबरी 2017) (वर्ष 10, मास 109, अंक 218) केर “पद्य” स्तम्भमे प्रकाशित ।
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