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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Tuesday, 31 January 2017

पद्य - ‍२‍२‍‍३ - अहम् / अहं (कविता)


अहम् / अहं (कविता)





            हमर ई कविता मौलिक रूपसँ मैथिलीमे लिखित अछि । ई कविता तहिया लिखल गेल छल जहिया हम कॉलेज ऑफ आयुर्वेदमे (भारती विद्यापीठ, पूना) B.A.M.S. द्वितीय ओ तृतीय वर्षक (2nd & 3rd PROFESSIONAL YEAR) छात्र रही । ताहि समएमे महाविद्यालयक छात्र लोकनिमे EXTRA CO-CURRICULAR ACTIVITY केँ बढ़एबाक लेल “निर्मिती” नामक WALL MAGAZINE पर कविता आदि साहित्यिक कृति लगाओल जाइत छल जकर संयोजिका श्रीमति इण्दापुरकर मैडम (तत्कालीन लेक्चरर आ बादमे विभागाध्यक्ष - शारीर क्रिया विभाग) छलीह । हमहूँ मैथिली कविता लेल प्रस्ताव देल मुदा पाठक आन केओ नञि छलाह तेँ ओकर हिन्दी अनुवाद (स्वयं द्वारा अनुदित) देब स्वीकृत भेल । ताहि अनुदित रचना पर स्पष्ट उल्लेख रहैत छल कि मूल रचना मैथिली भाषामे अछि । प्रश्न उठि सकैत अछि कि मैथिली कविता मौलिक छल वा हिन्दी ? तेँ निर्मितीमे देल गेल रचनाक छायाप्रति सेहो संगहि देल जा रहल अछि ।





हम देखि रहल छी  सिन्धु-लहरि,
जे अछि उठैत  टकराइत अछि ।
अम्बर  छूबा  केर   आश  नेने,
किछु दूर गगनमे जाइत अछि ।।

किछु काल लागैतछि एहना जे,
ओ सिन्धु छाड़ि  पाछाँ आएल ।
पर नभ असीम, अतिशान्त, शून्य,
के कहिया ओकरा अछि पाओल ??

एतबामे  शैल-शिखर  भेटल, आ
लहरि  ओतहि  जा  टकराएल ।
फेर आँखि फुजल, मुड़ि कऽ देखल,
पुनि सिन्धु बीच स्वकेँ पाओल ।।

ओ क्षुब्ध मनेँ बैसल किछु क्षण,
नञि हारि मुदा तइयो  मानल ।
शैथिल्य त्यागि कऽ सजग भेल,
पुनि आपिस जएबा केर ठानल ।।

किछु पुनि बेसी,  आओरहु बेसी,
ओ कसगर फेर प्रयास  करैछ ।
अम्बरसँ   लहरि  धरिक  दूरी,
मूँह बओने ओहिना ठाढ़ रहैछ ।।

कते दण्ड-पऽल, क्षण प्रतिक्षण,
बीतल कतबा दिन - राति बरख
ओ तन - मन - धनसँ लागल छल,
श्रम - साफल्यक पर दूर दरस ।।

निज रूप - अहं ओ त्यागि देल,
एतबहिमे  ओकरा  की  फूरल !
घनगृहसँ   नीचाँ  ताकि  रहल,
अम्बर  पर  अपनाकेँ  देखल !!


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍218म अंक (‍15 जनबरी 2017) (वर्ष 10, मास 109, अंक ‍218) केर पद्य स्तम्भमे प्रकाशित ।



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