कुहेस (कविता)
कुहेस ।
एखनहु धरि लगलहि अछि ।
हटि रहल शनैः शनैः ।
मुदा, एखनहु धरि लगलहि अछि ।।
मैथिलीक अस्तित्व पर लागल कुहेस ।
मिथिलाक मानचित्र पर लागल कुहेस ।
मैथिलक मैथिल होएबा पर लागल कुहेस ।
छँटि रहल शनैः शनैः ।
मुदा, एखनहु धरि लगलहि अछि ।।
बिकास कए रहल अछि ई राज्य ।
विकाश कए रहल अछि अपन देश ।
मिथिलाक ऊपर सरिपहुं घनगर कुहेस ।
फाटि रहल शनैः शनैः ।
मुदा, एखनहु धरि लगलहि अछि ।।
अगनित पीढ़ीसँ चलि रहल ओ प्रश्न ।
ओएह भात - रोटी - भुखमरीक प्रश्न ।
ओएह उच्चतर नीक शिक्षाक प्रश्न ।
सृजन करैछ नित कुहेस ।
तेँ, एखनहु धरि लगलहि अछि ।।
मैथिली
पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 219म अंक (01 फरबरी 2017) (वर्ष 10, मास 110, अंक 219) केर “पद्य” स्तम्भमे प्रकाशित ।
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