गीत
(कविता)
साहित्य रहितहु, साहित्यहि
लेल तीत छी ।
नाम ओकर गीत छी ।
हरेक ठोर पर सजल, सुख -
दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी
।।
कण्ठ - कण्ठ पसरए,
बैसाखक अगिलग्गी सनि ।
मानस सरोवरमे,
चतरए जललत्ती सनि ।
शोभा हर
मूँहक ओ, पतित मुदा
पीक छी ।
हरेक ठोर पर सजल,
सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी
।।
गीतसँ छी “गीतकार”, “कवि”सँ फराकहि छी ।
गद्य ने छी, पद्य मुदा,
तइयो तँऽ कातहि छी ।
तोषित हर
कण्ठ, पारितोषक विपरीत
छी ।
हरेक ठोर पर सजल,
सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी
।।
लिखल जञो गीत तँऽ,
साहित्यक मान नञि ।
श्रोता अछैतहुँ, साहित्यक
सम्मान नञि ।
पाठ करू कविता कहि, कहियौ ने — गीत छी ।
हरेक ठोर पर सजल,
सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी
।।
कतबहु उत्कृष्ट शब्द, भाव - अर्थ युक्त छी ।
कहि देल जँ गीत, बूझू सब गुण विलुप्त छी ।
कविता जँ कहि देल तँऽ, काज बड़ दीब छी ।
हरेक ठोर पर सजल,
सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी
।।
बनलहुँ जञो “गीतकार”, साहित्यक काँट छी ।
करतल ध्वनि संग तेँ,
साहित्यक भाँट छी ।
साहित्यक मञ्च पर ने, पुररष्कृत गीत छी ।
हरेक ठोर पर सजल,
सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी
।।
गीतक साम्राज्य
कहाँ, तइयो थम्हैत
छै ।
गीतक नञि
सर्जना, तइयो रुकैत
छै ।
मानल जे पद्य -
मञ्च, तिरस्कृत गीत छी ।
हरेक ठोर पर सजल,
सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी
।।
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