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Monday, 30 January 2017

पद्य - ‍२‍२२ - गीत (कविता)

गीत (कविता)





साहित्य  रहितहु,  साहित्यहि  लेल  तीत  छी ।
नाम ओकर गीत छी ।
हरेक ठोर पर सजल, सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी ।।

कण्ठ - कण्ठ  पसरए, बैसाखक अगिलग्गी सनि ।
मानस  सरोवरमे,   चतरए   जललत्ती   सनि ।
शोभा  हर  मूँहक ओ,  पतित  मुदा  पीक छी ।
हरेक ठोर पर सजल, सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी ।।

गीतसँ छी  गीतकार, कविसँ  फराकहि छी ।
गद्य ने छी, पद्य मुदा, तइयो तँऽ कातहि छी ।
तोषित  हर  कण्ठ,  पारितोषक  विपरीत  छी ।
हरेक ठोर पर सजल, सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी ।।

लिखल जञो  गीत तँऽ,  साहित्यक मान नञि ।
श्रोता   अछैतहुँ,   साहित्यक  सम्मान  नञि ।
पाठ करू  कविता कहि, कहियौ ने — गीत छी ।
हरेक ठोर पर सजल, सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी ।।

कतबहु  उत्कृष्ट शब्द,  भाव - अर्थ युक्त छी ।
कहि देल जँ गीत,  बूझू सब गुण विलुप्त छी ।
कविता  जँ कहि देल तँऽ,  काज बड़ दीब छी ।
हरेक ठोर पर सजल, सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी ।।

बनलहुँ जञो गीतकार,  साहित्यक  काँट छी ।
करतल ध्वनि  संग तेँ,  साहित्यक  भाँट  छी ।
साहित्यक  मञ्च पर ने,  पुररष्कृत  गीत छी ।
हरेक ठोर पर सजल, सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी ।।

गीतक  साम्राज्य   कहाँ,  तइयो  थम्हैत  छै ।
गीतक   नञि  सर्जना,   तइयो   रुकैत  छै ।
मानल जे पद्य - मञ्च,  तिरस्कृत  गीत छी ।
हरेक ठोर पर सजल, सुख - दुख केर मीत छी ।
नाम ओकर गीत छी ।।

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