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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Tuesday, 31 January 2017

पद्य - ‍२‍२‍‍८ - हे आकांक्षे ! (कविता)

हे आकांक्षे ! (कविता)








            हमर ई कविता मौलिक रूपसँ मैथिलीमे लिखित अछि । ई कविता तहिया लिखल गेल छल जहिया हम कॉलेज ऑफ आयुर्वेदमे (भारती विद्यापीठ, पूना) B.A.M.S. द्वितीय ओ तृतीय वर्षक (2nd & 3rd PROFESSIONAL YEAR) छात्र रही । ताहि समएमे महाविद्यालयक छात्र लोकनिमे EXTRA CO-CURRICULAR ACTIVITY केँ बढ़एबाक लेल “निर्मिती” नामक WALL MAGAZINE पर कविता आदि साहित्यिक कृति लगाओल जाइत छल जकर संयोजिका श्रीमति इण्दापुरकर मैडम (तत्कालीन लेक्चरर आ बादमे विभागाध्यक्ष - शारीर क्रिया विभाग) छलीह । हमहूँ मैथिली कविता लेल प्रस्ताव देल मुदा पाठक आन केओ नञि छलाह तेँ ओकर हिन्दी अनुवाद (स्वयं द्वारा अनुदित) देब स्वीकृत भेल । ताहि अनुदित रचना पर स्पष्ट उल्लेख रहैत छल कि मूल रचना मैथिली भाषामे अछि । प्रश्न उठि सकैत अछि कि मैथिली कविता मौलिक छल वा हिन्दी ? तेँ निर्मितीमे देल गेल रचनाक छायाप्रति सेहो संगहि देल जा रहल अछि ।





हम आपना प्रति उत्तरदायी छी,
तोहर कृत्यक तोंऽऽहींऽ जानए ।
हम कएलहुँ जे से उचित रहए,
तोहर औचित्य  तोंहीं जानए ।।

अप्पन छवि  अपनहि सोझाँमे,
कारी-मलीन नञि बनल रहए ।
अपनहि समक्ष  अप्पन  माथा,
लाजेँ बोझिल ने झूकल रहए ।।

ई प्रीति  पुनीत  रहए  हम्मर,
हम तँऽ बस एतबहि टा बूझल ।
तोहर  प्रदत्त  अपमान - गरल,
सेहो  अमृत सनि हम बूझल ।।

सभटा बन्हन आब टूटि चुकल,
भ्रम मोह छोड़ि पाछाँ अएलहुँ ।
रही  दूर स्वयंसँ  भटकि  गेल,
आपिस फेर अपनाकेँ पओलहुँ ।।

हे आकांक्षे ! हम मुक्त भेलहुँ,
तोहर  एहि  विस्तृत  मायासँ ।*
मुइलहुँ ने, तपि कऽ निखड़ल छी,
ओहि  हवनकुण्ड केर छायासँ ।।


* आकांक्षा = इच्छा,

  स्पृहा = प्रायः एहेन इच्छासभ जे ककरहु अहं केर तुष्टि लेल होइछ ।



मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍218म अंक (‍15 जनबरी 2017) (वर्ष 10, मास 109, अंक ‍218) केर पद्य स्तम्भमे प्रकाशित ।




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