कागत
केर फूल (कविता)
हमर ई कविता मौलिक रूपसँ मैथिलीमे
लिखित अछि । ई कविता तहिया लिखल गेल छल जहिया हम कॉलेज
ऑफ आयुर्वेदमे (भारती विद्यापीठ, पूना)
B.A.M.S. द्वितीय ओ तृतीय वर्षक (2nd
& 3rd PROFESSIONAL YEAR) छात्र रही ।
ताहि समएमे महाविद्यालयक छात्र लोकनिमे EXTRA CO-CURRICULAR ACTIVITY केँ बढ़एबाक लेल “निर्मिती”
नामक WALL MAGAZINE पर कविता आदि
साहित्यिक कृति लगाओल जाइत छल जकर संयोजिका श्रीमति
इण्दापुरकर मैडम (तत्कालीन लेक्चरर आ बादमे विभागाध्यक्ष - शारीर क्रिया विभाग)
छलीह । हमहूँ मैथिली कविता लेल प्रस्ताव देल मुदा पाठक आन केओ नञि छलाह
तेँ ओकर हिन्दी अनुवाद (स्वयं द्वारा अनुदित) देब स्वीकृत भेल । ताहि अनुदित रचना
पर स्पष्ट उल्लेख रहैत छल कि मूल रचना “मैथिली” भाषामे अछि । प्रश्न उठि सकैत अछि कि मैथिली कविता मौलिक छल वा हिन्दी ? तेँ निर्मितीमे
देल गेल रचनाक छायाप्रति सेहो संगहि देल जा रहल अछि ।
हम छोड़ि
चलल हुनिकर दुनिञा,
जनिकर दुनिञामे
प्रीति ने छल ।
छल द्वेष - लोभ - छल - कपट सगर,
नञि छल तँऽ केवल प्रीति ने छल ।।
वन - उपवन आ
फुलबाड़ी छल,
पर डाढ़ि
कोनहु ने फूल
एकहु ।
जे किछु छल, सब
किछु कागत केर,
नञि छल सुगन्धि
वा गमक कोनहु ।।
हम जनिका
लेल रही पागल,
नञि हुनिका
छल विश्वास हमर ।
सब लऽग
रहथि बस कहबा
लए,
केओ अप्पन
कहनिहार ने छल ।।
विमर्शः-
गमक = सुगन्धि (मैथिलीमे; यथा - फूल गमकि रहल अछि)
महक = दुर्गन्धि (मैथिलीमे; यथा - आलू सड़ि कऽ महकि रहल अछि) =
गन्ध (हिन्दीमे) (हिन्दीमे “महक” या “मेहक” शब्द दुहु प्रकारक गन्ध
मतलब कि “सुगन्धि” ओ “दुर्गन्धि” केर लेल प्रयुक्त होइत अछि) ।
गन्ह, गन्धि आ
गन्ध - “गन्ध” तत्सम रूप थिक, “गन्धि” अर्धतत्सम ओ “गन्ह” तद्भव रूप । मैथिलीमे
तीनूक मतलब एक्कहि थिक आ से नाक/घ्राणेन्द्रिय (NOSE
/ OLFACTORY RECEPTORS) ग्राह्य विषय थिक जकरा
अंग्रेजीमे “स्मेल” (SMELL /
OLFACTION) कहल जाइत अछि ।
मैथिलीमे एहि शब्दसभक प्रयोग तीन अर्थमे होइत अछि -
(१) गन्ध केर
स्वरूप अज्ञात भेला पर; यथा - ई कोन तरहक गन्ध/गन्धि/गन्ह अछि ?
(२) प्रायः
दुर्गन्धि केर अर्थमे; यथा - ई की गन्ध करै(त) छै अथवा ई की गन्हाइत छै ?
(३) कोनहु आन
विशेषण लगला पर अथवा परिस्थिति या भाव विशेषक अभिव्यक्तिक कारणेँ सुगन्धिक अर्थमे;
यथा - महमह गन्ध, सुन्नर गन्ह, गुलाबक मादक गन्ध, रातुक रानीक गन्ध, मीठ गन्ध आदि
।
मैथिली
पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 218म अंक (15 जनबरी 2017) (वर्ष 10, मास 109, अंक 218) केर “पद्य” स्तम्भमे प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment