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मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Tuesday, 31 January 2017

पद्य - ‍२‍२‍‍४ - कागत केर फूल (कविता)

कागत केर फूल (कविता)





            हमर ई कविता मौलिक रूपसँ मैथिलीमे लिखित अछि । ई कविता तहिया लिखल गेल छल जहिया हम कॉलेज ऑफ आयुर्वेदमे (भारती विद्यापीठ, पूना) B.A.M.S. द्वितीय ओ तृतीय वर्षक (2nd & 3rd PROFESSIONAL YEAR) छात्र रही । ताहि समएमे महाविद्यालयक छात्र लोकनिमे EXTRA CO-CURRICULAR ACTIVITY केँ बढ़एबाक लेल “निर्मिती” नामक WALL MAGAZINE पर कविता आदि साहित्यिक कृति लगाओल जाइत छल जकर संयोजिका श्रीमति इण्दापुरकर मैडम (तत्कालीन लेक्चरर आ बादमे विभागाध्यक्ष - शारीर क्रिया विभाग) छलीह । हमहूँ मैथिली कविता लेल प्रस्ताव देल मुदा पाठक आन केओ नञि छलाह तेँ ओकर हिन्दी अनुवाद (स्वयं द्वारा अनुदित) देब स्वीकृत भेल । ताहि अनुदित रचना पर स्पष्ट उल्लेख रहैत छल कि मूल रचना मैथिली भाषामे अछि । प्रश्न उठि सकैत अछि कि मैथिली कविता मौलिक छल वा हिन्दी ? तेँ निर्मितीमे देल गेल रचनाक छायाप्रति सेहो संगहि देल जा रहल अछि ।




हम  छोड़ि  चलल  हुनिकर  दुनिञा,
जनिकर  दुनिञामे  प्रीति  ने  छल ।
छल  द्वेष - लोभ - छल - कपट  सगर,
नञि छल तँऽ  केवल प्रीति ने छल ।।

वन - उपवन  आ   फुलबाड़ी  छल,
पर  डाढ़ि  कोनहु  ने  फूल  एकहु ।
जे किछु छल, सब किछु  कागत केर,
नञि छल सुगन्धि वा गमक कोनहु ।।

हम   जनिका   लेल   रही   पागल,
नञि  हुनिका  छल  विश्वास  हमर ।
सब  लऽग  रहथि  बस  कहबा  लए,
केओ  अप्पन  कहनिहार  ने  छल ।।

विमर्शः-

गमक = सुगन्धि (मैथिलीमे; यथा - फूल गमकि रहल अछि)

महक = दुर्गन्धि (मैथिलीमे; यथा - आलू सड़ि कऽ महकि रहल अछि) = गन्ध (हिन्दीमे) (हिन्दीमे महक या मेहक शब्द दुहु प्रकारक गन्ध मतलब कि सुगन्धिदुर्गन्धि केर लेल प्रयुक्त होइत अछि) ।

गन्ह, गन्धि आ गन्ध - गन्ध तत्सम रूप थिक, गन्धि अर्धतत्सम ओ गन्ह तद्भव रूप । मैथिलीमे तीनूक मतलब एक्कहि थिक आ से नाक/घ्राणेन्द्रिय (NOSE / OLFACTORY RECEPTORS) ग्राह्य विषय थिक जकरा अंग्रेजीमे स्मेल  (SMELL / OLFACTION) कहल जाइत अछि । मैथिलीमे एहि शब्दसभक प्रयोग तीन अर्थमे होइत अछि -

(‍१) गन्ध केर स्वरूप अज्ञात भेला पर; यथा - ई कोन तरहक गन्ध/गन्धि/गन्ह अछि ?

(२) प्रायः दुर्गन्धि केर अर्थमे; यथा - ई की गन्ध करै(त) छै अथवा ई की गन्हाइत छै ?

(३) कोनहु आन विशेषण लगला पर अथवा परिस्थिति या भाव विशेषक अभिव्यक्तिक कारणेँ सुगन्धिक अर्थमे; यथा - महमह गन्ध, सुन्नर गन्ह, गुलाबक मादक गन्ध, रातुक रानीक गन्ध, मीठ गन्ध आदि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍218म अंक (‍15 जनबरी 2017) (वर्ष 10, मास 109, अंक ‍218) केर पद्य स्तम्भमे प्रकाशित ।



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