मैथिली दधीचि (कविता)
छायाचित्र © डॉ॰शशिधर कुमर "विदेह" |
बाबू साहेब चौधरी - मैथिली दधीचि ।
हँऽऽ ! हँऽऽ !! थम्हू !!!
दधीचि छथि भोला लाल दासजी ।
नञि ! नञि !! से कोना ?
दधीचि छथि लक्ष्मण झाजी ।
अओ भाइ लोकनि ! किएक लड़ैत छी ?
दधीचि माने की ?
दधीचि के ?
दधीचि जे अपन अस्थि दान देल ।
दान देल वृत्तासुरक संहार लेल ।
जीवितहि अस्थि दान - जिनगीक दान ।
मिथिलाक महायज्ञमे,
मैथिलीक महायज्ञमे,
नञि जानि एहने कतेको लोक,
लगा देल अपन जिनगी ।
आ कतेको लगओताह ।
ओ सभ मैथिली दधीचि छलाह ।
आ ओ सभ मैथिली दधीचि होएताह ।
यज्ञ एखन बाँकी अछि ।
हवन एखन बाँकी अछि ।
कतेकहु दधीचि केर,
अवतरण बाँकी अछि ।।
मैथिली
पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 219म अंक (01 फरबरी 2017) (वर्ष 10, मास 110, अंक 219) केर “पद्य” स्तम्भमे प्रकाशित ।
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