Pages

मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

Powered By Blogger

Tuesday, 31 January 2017

पद्य - ‍२‍२‍‍६ - दर्द (कविता)

दर्द (कविता)






            हमर ई कविता मौलिक रूपसँ मैथिलीमे लिखित अछि । ई कविता तहिया लिखल गेल छल जहिया हम कॉलेज ऑफ आयुर्वेदमे (भारती विद्यापीठ, पूना) B.A.M.S. द्वितीय ओ तृतीय वर्षक (2nd & 3rd PROFESSIONAL YEAR) छात्र रही । ताहि समएमे महाविद्यालयक छात्र लोकनिमे EXTRA CO-CURRICULAR ACTIVITY केँ बढ़एबाक लेल “निर्मिती” नामक WALL MAGAZINE पर कविता आदि साहित्यिक कृति लगाओल जाइत छल जकर संयोजिका श्रीमति इण्दापुरकर मैडम (तत्कालीन लेक्चरर आ बादमे विभागाध्यक्ष - शारीर क्रिया विभाग) छलीह । हमहूँ मैथिली कविता लेल प्रस्ताव देल मुदा पाठक आन केओ नञि छलाह तेँ ओकर हिन्दी अनुवाद (स्वयं द्वारा अनुदित) देब स्वीकृत भेल । ताहि अनुदित रचना पर स्पष्ट उल्लेख रहैत छल कि मूल रचना मैथिली भाषामे अछि । प्रश्न उठि सकैत अछि कि मैथिली कविता मौलिक छल वा हिन्दी ? तेँ निर्मितीमे देल गेल रचनाक छायाप्रति सेहो संगहि देल जा रहल अछि ।






एतबा भेटल जे दर्द केर  अभ्यस्त भऽ गेलहुँ ।
नोरहिकेँ प्रति  आइ हम  आशक्त भऽ गेलहुँ ।।

सोचने रही  हम बैसब,  कोनहु प्रेम - खोहमे ।
देखल जे  प्रेम - रंग तँऽ  विरक्त भऽ गेलहुँ ।।

निकलल रही हम चाह लऽ फूलहि केर सोहमे ।
थाम्हल जे  काँट  आँचर  संशक्त भऽ गेलहुँ ।।

भटकैत रही  निरन्तर  इजोतहि केर खोजमे ।
इजोतक चमकसँ आइ  अनाशक्त भऽ गेलहुँ ।।

सुनइत छलहुँ   अन्हार  करए सेन्ह ओजमे ।
अन्हारेक शांति पाबि कऽ सशक्त भऽ लेलहुँ ।।

सुनने  रही   खड़ाब छै  पड़िहेँ  ने  मोहमे ।
देखल जे  ताहि सोचसँ  विभक्त भऽ गेलहुँ ।।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍218म अंक (‍15 जनबरी 2017) (वर्ष 10, मास 109, अंक ‍218) केर पद्य स्तम्भमे प्रकाशित ।


No comments:

Post a Comment