पाकल आम
(छवि वा
सन्दर्भ आधारित ६ गोट बाल कविता)
कहियो - कहियो सभ किछु ठीक
रहितहुँ, पर्याप्त समय रहितहुँ, लाख प्रयासक बावजूदहु किछु नञि लिखाइत अछि । कहियो
तकर ठीक विपरीत, मोन चहुचङ्ग रहितहँ, बिना कोनो खास प्रयत्नक, बहुत कम समयमे
अनायसहि बहुत किछु लिखा जाइत अछि । सएह भेल १० जून २०१६ ई॰क भोरमे । फेसबुक फोलल,
श्री बिभूति आनन्दजीक (मैथिली वरिष्ठ लेखक) प्रोफाइल फोटोक रूपमे आमक झब्बाक छवि
लागल छल । झब्बामे चारिटा आम छल आ ताहिमे एकटा पाकल (पीयर ढाबुस), एकटा अधपक्कू आ
शेष दू टा काँच (किंवा डम्हाएल) छल । झब्बा नीक लागल - ताहि सन्दर्भ पर एक टा
कविता लीखल । तकरा बाद पाँचटा आओरहु कविता धरा-धर अपनहि-आप लिखा गेल ।
०१
एक अधवयसू − दू टा जुआन ।
संगहि एक गोट “पाकल आम” ।
सुन्नर समय − विहंगम दृश्य,
तीन पीढ़ी केर भेल मिलान ।।
जिनगीक गति छी एहने भैय्या,
सब अबटीमे
“पाकल आम” ।
समयक चालि ने बदलल कहियो,
तूबत बनि सब पाकल आम ।।
समय हाथ
- जीबू मस्तीमे,
जिनगी केर नञि कोनहु ठेकान ।
कनितहि रहब, हँसब कहिया
फेर,
उलहन − देव भेलाह बेइमान ।।
०२
एक परम पाकल प्रबुद्ध,
दोसर पकबा लए प्रेरित अछि ।
तेसर - चारिम से देखि रहल,
खेला देखि अचम्भित अछि ।।
पहिलुक अछि सत्ता हथिअओने,
आनक सत्ता लए काल
बनल ।
दोसर सोचए, तूबए पाकल,
तखनहि तँऽ गुरूघण्टाल बनब ।।
तेसर - चारिम छी मूक प्रजा,
सब देखि रहल आ सोचि रहल ।
सत्ताक समर नञि
प्रतिभागी,
परिणाम मुदा सब भोगि रहल ।।
०३
एक गुरू
छथि दीप्त ज्ञानसँ,
दोसर किछु अवभासित छथि ।
तेसर - चारिम नव शिष्य हुनक,
संगति बैसल आह्लादित छथि ।।
कहथि गुरू - ई ज्ञान थिकहि,
बँटलासँ कहियो नञि घटैछ ।
अज्ञानक
अम्मत टिकुला,
ज्ञानहि बल मधुर रसाल बनैछ ।।
सद्-ज्ञान गुरूक छी झलकि रहल,
पीताभ मधुर आमक फल सनि ।
संगतिमे अम्मत काँच आम सेहो,
बदलि रहल पाकल फल सनि ।।
०४
एक दूइर
दोसरहुँकेँ करैछ,
से संगति
केर प्रभाव छै ।
पाकल देखि कऽ काँच पकैए,
फऽड़क सहज स्वभाव
छै ।।
एक जँ उजिआएल, दोसरहुमे
उजिअएबा केर भाव
भरैछ ।
जँ केओ
बुड़िआएल समूहमे,
सभक भविष्यक काल बनैछ ।।
एक शराबी इएह चाहैत अछि,
मित्रहु बैसि शराब
पिउबए ।
मुदा तपस्वी सदिखन चाहैछ,
संगीक तप - जंजाल तजए ।।
संगति केर महिमा छी भारी,
एहि झब्बामे से बुझा रहल ।
पाकल देखि पकैए दोसर,
तेसर-चारिम छी डम्हा रहल ।।
०५
देखि सुपुक - पाकल - गोपीकेँ,
मोन करय
खएतहुँ ओकरा ।
बहुत ऊँच छी, चढ़ि नञि तोड़ब,
फेंकि रहल छी तेँ झटहा ।।
गछपक्कू तँऽ गछपक्कू छी,
दोसर पालहु पर पका लेबै ।
संगमे कँचका सेहो खसल तँऽ,
गोड़ि अनाजमे पका देबै ।।
ई की
भेलै ! गछपक्कू तँऽ,
अपनहि तूबल आओर खसल ।
हमर मोन भगवानहु बुझलन्हि,
हापुस आम ओ बिहुँसि रहल ।।
सुपुक = सुपक
= सुपक्व
गोपी =
सुपक्व निदग्ग पीयर वा लाल-पीयर गछपक्कू आम
हापुस = रत
- रत करैत सुपक्व गछपक्कू आम (मराठी आदि भाषामे "हापुस" आमक एक गोट
प्रकारक नाम थिक, मुदा मैथिलीमे ताहि अर्थमे नञि प्रयुक्त भऽ कऽ निर्दिष्ट अर्थमे प्रयोग होइछ)
आमक बिहुँसब
= गछपक्कू आम जखन बेसी ऊँचाईसँ तूबि कऽ माटि पर खसैछ तँऽ ओ एक वा एकाधिक स्थान पर
(प्रायः ऊपरमे या बगलमे/पार्श्वमे) फाटि जाइछ । एहि घटनाकेँ आमक बिहुँसब ओ एहेन
आमकेँ बिहुँसल आम कहल जाइत अछि ।
०६
पाँचहु आङ्गुर नञि छी समान,
नहिञे
दू गोटे संसारमे ।
भाँति - भाँति केर लोक
भेटैए,
अप्पन सभक समाजमे ।।
एक्कहि आमक झब्बामे छै,
काँच, डम्हाएल आ पाकल
।
तहिना समाजमे लोक
थिकै,
अपना - अपनी काजेँ पागल ।।
किछु प्रबुद्ध, किछु अतिप्रबुद्ध,
सामान्य तथा किछु निर्बुद्धी ।
सुजन - सुबुद्धि सेहो बहुतहि,
किछु रहैछ अनेरहु दुर्बुद्धी ।।
ओहुना ई सभ किछु बदलैत छै,
समय - वयस - अनुभव संगे ।
सबहक अप्पन अलगहि महत्त्व,
आ काज आबैछ अपना ढंगे ।।
पाकत जञो सभटा आम संग,
एक्कहि बेर भऽ जायत ढेरी ।
तेँ तकर व्यवस्था प्रकृति करैछ,
पकबैछ ओ आम बेरा - बेरी ।।
मैथिली
पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 204म अंक (15 जून 2016) (वर्ष 9, मास 102, अंक 204) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment