करांकुल
या कंकूर (बाल कविता)
एत्तेक मेहनति
किएक करै छेँ ?
अपन स्वास्थ्य पर
ध्यान ने दै छेँ ।
कारी - झामरि देह भेल छौ, अनमन्न तोँ कंकूर लागै छेँ ।।
जे “कंकूर” छै
सएह “करांकुर” ।
इएह “कालकण्टक” आ “करांकुल” ।
एकरहि उपमा रोजहि
बाजथि, तइयो तोँ एकरा ने चिन्है छेँ ।।*१
चिड़ै ई
कारी, धुत्थुर - कारी ।
लेशहि उज्जर,
आँखियहु कारी ।
माथक लाल रंग केर
कारण, भ्रमसँ तोँ “लालसर” बुझै छेँ ।।*२
प्रायः छोट झुण्डमे
भेटैछ ।
बाध - बोन आ
चऽड़मे भेटैछ ।
पानिक
श्रोतसँ दूरहि देखही, धारक कातमे किएक ताकै छेँ ।।*३
लोल एकर किछु खास
लागैत छै ।
बिनु बेँतक
गैंतीसँ मिलैत छै ।
या फेर तकरहि सनि
आकृति छै, जकरा तोँ तरुआरि कहै छेँ ।।*४
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - “कंकूर” केर उपमा अपना दिशि बहुत
प्रचलित अछि, पर बहुत कम्महि लोककेँ बूझल अछि जे “कंकूड़ या कंकूर” एक टा चिड़ै केर
नाम थिक । किछु लोक “कंकूर” शब्दक उत्पत्ति “कंकाल” शब्दसँ मानैत छथि
− शायद ओहो लोकनि सही छथि । सूखि कऽ कंकूर भऽ गेलेँ - कंकालसँ कंकूरक उद्गम दिशि
ईशारा करैछ । चिड़ै दिशि ईशारा करैत बाँकी उद्धरण उपरुका कवितामे देल गेल अछि ।
*२ - बहुत लोक एकर
माथ परक लाल रंग देखि “एकरा” भ्रमवश “लालसर” चिड़ै कहैत छथि − से गलत
थिक । चिड़ै केर सम्यक जानकारी रखनिहार/-रि लोकनि जनैत छथि कि लालसर
आन चिड़ै थिक ।
*३ - उड़ए बला
अधिकांश पैघ चिड़ै कोनहु-ने-कोनहु प्रकारक जलाशयक नजदीकमे भेटैछ । मुदा, करांकुल
प्रायः जलाशयसँ बहुत दूरक घासयुक्त मैदानी क्षेत्रमे भेटैत अछि । कखनहु - कखनहु
जलाशयक आस - पास सेहो भेटि सकैत अछि ।
*४ - एकर लोल केर
आकृति विशिष्ट प्रकारक होइत अछि जे कि देखबामे बिना बेंतक गैती (PICK AXE) या फेर भीतर दिशि वक्रित तरूआरि (INWARD CURVED SWORD) सनि लागैत अछि ।
मैथिली
पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 204म अंक (15 जून 2016) (वर्ष 9, मास 102, अंक 204) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे प्रकाशित ।
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