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Wednesday, 22 June 2016

पद्य - ‍१८९ - करांकुल या कंकूर (बाल कविता)

करांकुल या कंकूर (बाल कविता)



एत्तेक  मेहनति  किएक  करै  छेँ ?
अपन स्वास्थ्य पर ध्यान ने दै छेँ ।
कारी - झामरि  देह भेल छौ,  अनमन्न तोँ कंकूर लागै छेँ ।।

जे कंकूर  छै  सएह  करांकुर
इएह कालकण्टककरांकुल
एकरहि उपमा रोजहि बाजथि,  तइयो तोँ एकरा ने चिन्है छेँ ।।*

चिड़ै  ई  कारी,   धुत्थुर - कारी ।
लेशहि  उज्जर,  आँखियहु  कारी ।
माथक लाल रंग केर कारण, भ्रमसँ तोँ  लालसर  बुझै छेँ ।।*

प्रायः   छोट    झुण्डमे   भेटैछ ।
बाध - बोन  आ  चऽड़मे  भेटैछ ।
पानिक श्रोतसँ  दूरहि देखही,  धारक कातमे किएक ताकै छेँ ।।*

लोल एकर किछु खास लागैत छै ।
बिनु  बेँतक  गैंतीसँ  मिलैत छै ।
या फेर तकरहि सनि आकृति छै, जकरा तोँ तरुआरि कहै छेँ ।।*



संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - कंकूर केर उपमा अपना दिशि बहुत प्रचलित अछि, पर बहुत कम्महि लोककेँ बूझल अछि जे कंकूड़ या कंकूरएक टा चिड़ै केर नाम थिक । किछु लोक कंकूर शब्दक उत्पत्ति कंकाल शब्दसँ मानैत छथि − शायद ओहो लोकनि सही छथि । सूखि कऽ कंकूर भऽ गेलेँ - कंकालसँ कंकूरक उद्गम दिशि ईशारा करैछ । चिड़ै दिशि ईशारा करैत बाँकी उद्धरण उपरुका कवितामे देल गेल अछि ।  

* - बहुत लोक एकर माथ परक लाल रंग देखि एकरा भ्रमवश लालसर चिड़ै कहैत छथि − से गलत थिक । चिड़ै केर सम्यक जानकारी रखनिहार/-रि लोकनि जनैत छथि कि लालसर आन चिड़ै थिक ।

* - उड़ए बला अधिकांश पैघ चिड़ै कोनहु-ने-कोनहु प्रकारक जलाशयक नजदीकमे भेटैछ । मुदा, करांकुल प्रायः जलाशयसँ बहुत दूरक घासयुक्त मैदानी क्षेत्रमे भेटैत अछि । कखनहु - कखनहु जलाशयक आस - पास सेहो भेटि सकैत अछि ।

* - एकर लोल केर आकृति विशिष्ट प्रकारक होइत अछि जे कि देखबामे बिना बेंतक गैती (PICK AXE) या फेर भीतर दिशि वक्रित तरूआरि (INWARD CURVED SWORD) सनि लागैत अछि ।






मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍204म अंक (‍15 जून 2016) (वर्ष 9, मास 102, अंक ‍204) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।


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