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Wednesday, 20 January 2016

पद्य - ‍१३६ - धनछुआ (बाल कविता)



धनछुआ (बाल कविता)








अपनहि खेत खरिहान रहैए,
ई तँऽ छी धानछुआ ।
उच्चारण  करबामे   बाजी,
एकरे तँऽ धनछुआ ।।

तार पर बैसए, मेह पर बैसए,
बैसए ओ खुट्टा पर ।
धानक ढेरी चट छू आबए,
बैसए जा ठुट्ठा पर ।।

शायद इएह गुणक कारण,
ओ धानछुआ कहबैए ।
गौरसँ देखबै, तखने बुझबै,
एना  किएक  करैए ।।

छोट छोट कीड़ा आ फतिङ्गा,
धानक ढेरीमे  बहुते ।
खा  कऽ  तकरा  पेट  भरैए,
छोड़ि धानकेँ अगबे ।।

एकरे देखि कऽ कहबी बनलै,
अगराहीक  धनछुआ ।
लोक बजैए अर्थ ने बूझए,
चीन्हए ने  धनछुआ ।।

एकरहि एगो छै भैय्यारी,
 करिया  धनछुआ ।
लोक बुझैए ओकरा कोइली,
पर छी ओ  धनछुआ ।।

भेटत जोतला खेतमे या फेर,
जाहिठाँ जमकल पानि ।
खा कऽ जीबए कीड़ामकोड़ा,
करए जे उपजा हानि ।।

बड़ हल्लुक, खऽढ़क ऊपरमे,
देखबै  एकरा  बैसल ।
बस कारी भेने की कोइली,
गाबैत कहिया देखल ??


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -
 
Ø धानछुआ या धनछुआ - धूसर-मटियारी या किछुकिछु छाउरक रंगक चिड़ैविशेष जकरा अंग्रेजीमे एॅशी ड्रोङ्गो (ASHY DRONGO) कहल जाइत अछि ।

Ø करिया धनछुआ - कारी रंगक चिड़ैविशेष जकरा अंग्रेजीमे ब्लॅक ड्रोङ्गो (BLACK DRONGO) कहल जाइत अछि । सामान्य लोक आ धियापुता कारी रंगक कारण एकरहि कोइली बुझि लैत अछि । संस्कृतमे एहि चिड़ैकेँ धुत्त कारी होएबाक कारण भृंगराज नामक पक्षी कहल गेल अछि ।

Ø कोइली - कारी रंगक चिड़ैविशेष जे कि भारतीय ओ आन वाङ्गमयसभमे अपन मधुर आबाजक लेल प्रशिद्ध अछि । हिन्दीमे एकरा कोयल आ अंग्रजीमे कुक्कू (CUCKOO) कहल जाइत अछि ।

Ø कोयली - आमक आँठीक भीतरमे उज्जर रंगक कोमल संरचनाविशेष ।

Ø मैथिलीमे “कोइली” आ “कोयली” श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द भेल । मतलब कि एहेन शब्दसभ जे सुनबामे एकरँगाह लगैत अछि पर ओकर अर्थ अलग−अलग होइत अछि ।



मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍193म अंक (‍01 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक ‍193) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।



4 comments:

  1. कोइली आ कोयली के वर्तनी विभेद नै बुझल छल, वाह। ई चिड़ै के मैथिली में धनछुआ कहल जाय छहि सेहो बुझल। मजा एलै। ई साइत लड़ में सेहो तेज हौइत छैक तैं साइत कोतवाल सेहो कहल जाय छहि एकरा।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ।

      अपनेक कमेण्ट हमर महनतिकेँ सार्थक कऽ देलक ।

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    2. करिया धनछूआ या भुजुंगाकेँ हिन्दी मे "कोतवाल" कहैत छै ।

      ई लड़एमे तेज नञि होइत अछि । ई खतरा देखि टिटही जेकाँ तुरत उड़ि जाइत अछि जे आन चिड़ै सभकेँ सचेत करैत अछि — तेँ किंसाइत कोतवाल संज्ञा ।

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