बगरा/बगड़ा
(बाल कविता)
बगरा, बगरी आओर
बगेड़ी,
तीनू अलग चिड़ै छी ।
बगरी-बगेड़ी बादमे कहियो,
बगरा एखन कहै छी
।।
घऽर आङ्गन
खरिहानमे पहिने,
बगरा खूब भेटै छल ।
बाँसक कोरो -
धरणि - बरेड़ी,
खोंता ओ लगबै छल
।।
धिय-पुता के छल एहेन जे,
देखने नञि हो
बगरा ।
नञि देखने बगरा
केर खोंता,
आ बगरा केर बच्चा
।।
एक समय छल जहिया
बगरा,
चहचहाइत छल सौंसे
।
घऽर आङ्गनमे जँ
कोनो खोंता,
बगरा होयत अवश्ये
।।
आब तँऽ शहरक
क्षेत्रसँ बूझू,
बगरा भेल निपत्ता ।
जञो पथार तखनहि
गामहुमे,
छोट झुण्डमे बगरा
।।*१
एना किए भेल पता
ने ककरहु,
पर जँ रहलै एहिना
।
संग्रहालयमे काल्हि
देखत यौ,
बगरा सगरो दुनिञा
!! *२
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - अनाजक पथार
सुखएबा काल जे बगरा अबैत अछि से प्रायः “घरैया
बगरा” (HOUSE SPARROW) रहैत अछि जखनि
कि खेत सभक आढ़ि पर या बाधसँ जाए बला कच्चा सड़क वा बान्ह पर जे बगरा भेटैत अछि से
“बनैया बगरा” (TREE SPARROW) रहैत अछि ।
*२ - बगराक संख्या ताहूमे खास कऽ घरैया बगराक संख्यामे पछिला १० - २० सालमे बहुत कमी भेल अछि जकर कारण पुर्ण रूपसँ नञि ज्ञात अछि । पर ओकर आवास क्षेत्र (HABITAT) केर समाप्त होयब या कम होयब एकर कारण बताओल जा रहल अछि ।
ई बिहार राज्यक राजकीय चिड़ै थिक ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 194म अंक (15 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक 194) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment