उड़ीस
(बाल कविता)
कमला माएकेँ कहियो
ठकलन्हि गोनू बाबू ।
एक सए एक उड़ीसक, बलि देल
गोनू बाबू ।।*१
बास ओकर पुरना
पलंग, कुर्सी, चौकी आ खाटमे ।
रातिमे ओ चुटचुट
काटए, दिन नुका रहैए फाटमे ।।
ओ मनुक्ख केर खून
चूसि कऽ, अप्पन पेट भरैए ।
बदलामे कत’ रोगक
संगहि, निन्नमे विघ्न करैए ।।*२
तेँ जल्दीसँ
करी उपाए
आ ओकरा झट उपटाबी ।
एहेन चौकी आ खाट
पलंगकेँ, चट दऽ रौद लगाबी ।।*३
तोसक, कम्मल,
सीरक, सुजनी सभकेँ रौद देखाबी ।
चद्दरि तकिया-खोल
आदिकेँ, पानिमे दऽ खौलाबी ।।
गऽह - फाट चौकी -
पलंग केर, छीटी उचित दबाई ।
बौआ -
बुच्ची दूर रही,
जँ छीटथि केओ दबाई ।।
तइयो जँ नञि बात
बनए तँऽ अन्तिम करी प्रबन्ध ।
कमसँ कम छओ मास-बरष
धरि, छोड़ू एहेन पलंग ।।*४
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - मिथिलाक प्रशिद्ध
गोनू झाक खिस्सासँ उद्धृत ।
*२ - उड़ीस केर
कटलासँ मनुक्खक रतुका निन्न तँऽ खड़ाब होइते अछि संग - संग त्वचा पर कटबाक निशान
बनि जाइत अछि जे नोचए लगैत (ITCHING
TENDENCY) अछि । नोचला पर (AFTER SCRATCHING) नऽह लगलासँ ओहि स्थानसभ पर घाओ आ द्वितीयक संक्रमणक (SECONDARY INFECTIONS) संभावना भऽ जाइत अछि । उड़ीसमे मनुक्खकेँ
संक्रमित कए रोगग्रस्त करबाक क्षमता रखनिहार कम सँ कम २८ गोट परजीवी (PATHOGENS) पाओल जाइत अछि, जखनि कि एहि क्षेत्रमे एखन बहुत कम्मे काज
भेल अछि ।
*३ - लकड़ीसँ बनल
उपस्कर (फर्निचर) ओ बिछाओन आदिकेँ गर्म करब (तेज रौदमे आ जकरा सम्भव हो तकरा खौलैत
पानिमे) आ सुखाएब सबसँ नीक घरेलू उपचार थिक । 45°C (113°F) पर एक घण्टा
राखब वा -17°C (01°F) पर दू घण्टा
राखब उड़ीसकेँ पुर्णतः समाप्त कऽ दैत अछि । पहिल तरीका अपनासभ दिशि गर्मीमे आ दोसर
तरीका पहाड़क क्षेत्रमे सर्दीमे बेस प्रभावकारी अछि । जँ 50°°C (122°F) केर तापमान
प्राप्त कएल जा सकए फर्निचर ओकरा सहन कऽ सकए तऽ मात्र दू मिनटमे पूरा उड़ीस उपटि
जाइछ । चद्दरि आ वस्त्र आदिसँ उड़ीस उपटएबाक लेल आयरनक उपयोग कएल जा सकैछ । चुँकी
रौदमे देला पर लकड़ीसँ बनल उपस्करक गऽह आ फाटमे उड़ीस नुका कऽ बचि जाइत अछि, तेँ
ओहि ठामसँ ओकरा निकालबाक लेल उचित दबाई केँ गऽह आ फाटसभमे छीटलासँ ई विधि बेशी प्रभावकारी सिद्ध होइछ । दबाई
छिटबाक काज घरक कोनो पैघ आ बुझनुक सदस्य सावधानीपुर्वक करैत छथि कारण ई दबाई
मनुक्खक साँस द्वारा या मूँह आ आँखिमे पड़लासँ मनुष्यक स्वास्थ्यकेँ सेहो गम्भीर
हानि पहुँचा सकैत अछि । धियापुताकेँ एहि काजसँ दूर रहबाक चाही आ अनेरो हुलुक-बुलुक
नञि करबाक चाही । कोनहु दुर्घटना भेला पर सीधे यथासिघ्र चिकित्सककेँ देखएबाक चाही
।
*४ - उड़ीस बिना
किछु खएने - पिउने 100 सँ 300 दिन धरि रहि सकैत अछि । ई अवधि वातावरणक तापमान पर निर्भर
करैछ । तेँ कोनहु खुला जगह पर बिना उपयोगक छओ महीना वा एक वर्ष धरि उड़ीस लागल
लकड़ीक उपस्करकेँ छोड़ि देलासँ सेहो उड़ीसकेँ उपटाओल जा सकैछ ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 194म अंक (15 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक 194) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
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