उल्लू
(बाल कविता)
रातिमे कचबच कचबच करइछ,
नाम ओकर कचबचिया छै ।१,२
ई नञि दूर
देश केर प्राणी,
अपनहुँ ठाँ बारहमसिया छै ।।
आँखि ओकर दुहु गोल
- गोल,
गोलका भाँटा केर तरुआ सनि ।
नाक सपाट आ लोल
सुकुच्ची,
आँखिक सोझाँ मड़ुआ
सनि ।।
दुनिञा अचरजसँ देखै छै,
ओ दुनिञाकेँ अचरजसँ ।
राति इजोरिया खौंझाएल मन,
निन्न जँ टूटल
कचबचसँ ।।
आँखि एकर किछु
खास बनल छै,
रातिमे सभ किछु देखबा लए ।३
दिनुका इजोत चोन्हराए
आँखि,
छै बनल ने दिनमे
देखबा लए ।।
गर्दनि छै सेहो
किछु विशेष,
ओ घूमि जाइत छै चारू कात ।४
इएह सब देखि कऽ लोक कहैए,
एक्कर भूत - परेतक
साथ ।।
राति इजोरिया साँझक झलफल,
मूँह लागए जेना हो लुच्चा ।
मूँहक भाव - भंगिमा
गजबे,
कहबै तेँ ओ मूँहदुस्सा ।।१
अपना सभक समाजमे मूर्खक,
उल्लू बनि गेल
छै पर्याय
।
दिन सूतए छै, राति जागए छै,
तेँ एहेन कहबी छै
भाय ।।
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
१ - मूँहदुस्सा, कचबचिया आदि मैथिलीमे उल्लू (OWL) केर पर्यायी नाम अछि ।
२ - “कचबचिया” नाम
मैथिलीमे उल्लूक अतिरिक्त एकटा आन चिड़ै लेल सेहो प्रयुक्त होइत अछि । एहेन शब्द
जकर अलग−अलग स्थान पर अलग−अलग अर्थ हो वा अलग−अलग चीजक बोध करबैत हो मैथिलीमे
अनेकार्थक शब्द कहबैत अछि । दू अलग−अलग तरहक चिड़ै केर बोध करएबाक कारण “कचबचिया” शब्द अनेकार्थक भेल ।
३ - उल्लूक आँखि बहुत कम
प्रकाशमे देखबाक हेतु समायोजित रहैत अछि । तेँ ओकर बनावट किछु विशिष्ट होइत अछि ।
उल्लूक आँखि कम प्रकाशमे दूरक वस्तुकेँ देखबा लेल बनल अछि आ ताहि कारणेँ ओ अपना
लऽगक (आँखिसँ किछु सेन्टीमीटरक परिधिमे) वस्तुसभकेँ एकदम्मे नञि देखि सकैत अछि ।
४ - उल्लूक गर्दनि मे १४
टा ग्रीव कशेरुक हड्डी (CERVICAL
VERTIBRAE) होइत अछि जखनि कि मनुक्खमे मात्र ७ टा ।
मनुक्खक गर्दनि मात्र करीब १७० सँ १८० डिग्री धरि घुमि सकैत अछि जखनि कि उल्लूक
करीब ३४० सँ ३५० डिग्री धरि । तेँ उल्लू
एक ठाम बैसल - बैसल अपना शरीरकेँ बिना हिलएने - डोलओने, बस अपन गर्दनि घुमा कऽ अपन
आगाँ आ पाछाँ सेहो देखि सकैत अछि । रातिमे विचरण करबाक कारण रात्रिचर अछिए । इएह
अद्भुत गुणसभक कारण मनुक्ख ओकरा भूत-परेतक पर्याय मानैत अछि ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 193म अंक (01 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक 193) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे प्रकाशित
।
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