पोरकी या
पौड़की (बाल कविता)
कहियो ने कहियो
तोँ सुनने तँऽ हेबही ।
मारए गेलै परबा,
मारि लेलकै पोरकी ।।
इएह छियै पोरकी,
चिन्हीन्ह बौआ ।
दूरसँ कखनो कऽ,
लागै जेना परबा ।।*१
शान्त स्वभाव छै
जेना लजबिज्जी ।
घोल - अनघोलसँ होइ कछमच्छी ।।
ऊँचका गाछ पर,
खोंता ओ लगबए ।
दुहु - प्राणी
शान्तसँ, खोंतामे विचरए ।।*२
खेत -
खरिहानमे दाना
लेल उतरए ।
मनुक्खक
आहटि पबितहिं उड़ि जाए ।।
परबाक स्त्रीलिङ्ग
बूझू जुनि पोरकी ।
परबा फराक
आ फराके छै पोरकी ।।
परबा आ पोरकी −
दुहुमे दू लिङ्ग छै ।
भ्रम दूर भेल,
दुहु शब्द उभयलिङ्ग छै ।।*३
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - दूरसँ देखला पर
परबा (परेबा) आ पोरकी (पौड़की) एकरंगाह लगैत अछि पर दुनु अलग - अलग चिड़ै अछि ।
*२ - ई चिड़ै प्रायः
जोड़ामे अपन खोंतामे या कोनहु गाछक डाढ़ि पर बैसल भेटैछ ।
*३ - पोरकी शब्द
परबाक स्त्रीलिङ्ग नञि अछि । एहिसँ नर पोरकी आ मादा पोरकी दुनुक बोध होइत अछि ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 194म अंक (15 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक 194) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
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