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Monday, 25 January 2016

पद्य - ‍१४९ - पोरकी या पौड़की (बाल कविता)

पोरकी या पौड़की (बाल कविता)





कहियो ने कहियो तोँ सुनने तँऽ हेबही ।
मारए गेलै परबा, मारि लेलकै पोरकी ।।

इएह छियै  पोरकी,  चिन्हीन्ह  बौआ ।
दूरसँ कखनो कऽ, लागै  जेना  परबा ।।*

शान्त स्वभाव  छै  जेना  लजबिज्जी ।
घोल - अनघोलसँ  होइ   कछमच्छी ।।

ऊँचका  गाछ  पर,  खोंता ओ लगबए ।
दुहु - प्राणी शान्तसँ,  खोंतामे विचरए ।।*

खेत - खरिहानमे   दाना  लेल उतरए ।
मनुक्खक आहटि  पबितहिं  उड़ि जाए ।।

परबाक  स्त्रीलिङ्ग  बूझू जुनि  पोरकी ।
परबा  फराक  आ  फराके छै  पोरकी ।।

परबा आ पोरकी − दुहुमे  दू लिङ्ग छै ।
भ्रम दूर भेल, दुहु शब्द उभयलिङ्ग छै ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - दूरसँ देखला पर परबा (परेबा) आ पोरकी (पौड़की) एकरंगाह लगैत अछि पर दुनु अलग - अलग चिड़ै अछि ।

* - ई चिड़ै प्रायः जोड़ामे अपन खोंतामे या कोनहु गाछक डाढ़ि पर बैसल भेटैछ ।

* - पोरकी शब्द परबाक स्त्रीलिङ्ग नञि अछि । एहिसँ नर पोरकी आ मादा पोरकी दुनुक बोध होइत अछि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍194म अंक (‍15 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक ‍194) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।



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