सुग्गा
या सूगा (बाल कविता)
पोखरिक भीड़, लतामक गाछ ।
ताहि पर सुग्गा करैए नाच ।।
जहिना पात लतामक हरियर ।
तहिना सुग्गाक रंगो हरियर ।।
बैसि नुकाएल खाए लताम
।
मनुजक आहटि,
चौंकल कान ।।
हेंजक - हेंज अबैए बेस ।
खाए लताम ओ खेपक
- खेप ।।
ककरहु गर्दनि लाल लकीर ।
केओ बिना लालहि
अछि कीर ।।
लाल लोल
सुन्नर लागैए ।
खोधि-खाधि सब
फऽड़ चीखैए ।।
ऊँचगर गाछक बेस क्षुपुङ्ग ।
धोधरिमे सब रहए उत्तुङ्ग ।।
छै स्वतन्त्र उड़बाक सिहन्ता
।
मनुक्खक हाथ
अभागक चिन्ता ।।
पकड़ाएल, की करत उपाए ?
पिञ्जरा नञि छै रहल सोहाए ।।
संकेत आ किछु रोचक तथ्य -
सुग्गाक विश्वमे बहुत रास
जाति ओ प्रजाति पाओल जाइत अछि । एकर रंग हरियर, लाल, पीयर, नील, धूसर-मटियारी आ
एहि रंगक विभिन्न प्रकारक फेंट-फाँट भऽ सकैत अछि । एहि कवितामे सामान्य रूपसँ भारत
ओ खास कऽ मिथिला क्षेत्रमे पाओल जाएबला सुग्गाक वर्णन कएल गेल अछि ।
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