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Wednesday, 20 January 2016

पद्य - ‍१३३ - सुग्गा या सूगा (बाल कविता)




सुग्गा या सूगा (बाल कविता)





पोखरिक भीड़,  लतामक गाछ ।
ताहि पर सुग्गा  करैए  नाच ।।

जहिना पात  लतामक हरियर ।
तहिना सुग्गाक  रंगो हरियर ।।

बैसि  नुकाएल  खाए  लताम ।
मनुजक आहटि, चौंकल कान ।।

हेंजक - हेंज    अबैए   बेस ।
खाए लताम ओ खेपक - खेप ।।

ककरहु  गर्दनि  लाल  लकीर ।
केओ बिना लालहि अछि कीर ।।

लाल  लोल  सुन्नर   लागैए ।
खोधि-खाधि सब फऽड़ चीखैए ।।

ऊँचगर गाछक  बेस  क्षुपुङ्ग ।
धोधरिमे  सब  रहए  उत्तुङ्ग ।।

छै स्वतन्त्र  उड़बाक  सिहन्ता ।
मनुक्खक हाथ अभागक चिन्ता ।।

पकड़ाएल,  की  करत  उपाए ?
पिञ्जरा  नञि छै रहल सोहाए ।।





संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

सुग्गाक विश्वमे बहुत रास जाति ओ प्रजाति पाओल जाइत अछि । एकर रंग हरियर, लाल, पीयर, नील, धूसर-मटियारी आ एहि रंगक विभिन्न प्रकारक फेंट-फाँट भऽ सकैत अछि । एहि कवितामे सामान्य रूपसँ भारत ओ खास कऽ मिथिला क्षेत्रमे पाओल जाएबला सुग्गाक वर्णन कएल गेल अछि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍193म अंक (‍01 जनबरी 2016) (वर्ष 9, मास 97, अंक ‍193) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।

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