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Tuesday, 8 May 2012

पद्य - ६२ - भजु धरणिसुता (किर्तन)


भजु धरणिसुता
(किर्तन)

श्रीराम सिया छथि कण – कण मे ।
ओ  बसथि  सभक  अन्तर्मन मे ।
बस  ध्यान   धरू,  सन्धान  करू,
करू हुनिकहि मे तन-मन अर्पण ।।





भजु धरणिसुता, तनुजा – मिथिला,
जय  रामलला  दशरथ  नन्दन ।
जय  गौरि – महेश, गणेश, विभो,
जय  पवनपुत्र  मारूति - नन्दन । *
भजु धरणिसुता ...........................।।

तजि लोभ मोह, धरु राम चरण।
तजि भव माया, गहू राम चरण ।
धरु ध्यान सदा मिथिलेश - सुता,
करू  राम – रमा  सादर वन्दन ।
भजु धरणिसुता ...........................।।


सभ कष्ट - क्लेश - सन्ताप हरथि ।
निज  भक्तक   बेड़ा  पार  करथि ।
करथि  गरल–सुधा,  कन्दुक-वसुधा,
हिय वन मे करु हुनि अभिनन्दन ।
भजु धरणिसुता ...........................।।


श्रीराम सिया छथि कण – कण मे ।
ओ  बसथि  सभक  अन्तर्मन मे ।
बस  ध्यान   धरू,  सन्धान  करू,
करू हुनिकहि मे तन-मन अर्पण ।
भजु धरणिसुता ...........................।।





डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टरनिगडी – प्राधिकरणपूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४



विदेह” पाक्षिक मैथिली इ  पत्रिकावर्ष मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।





3 comments:

  1. जय जानकी मिथिला के गौरव

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    1. जयतु जानकी, जयतु मैथिली,
      जय वैदेही, जय सीते ।
      जय विदेहभू - बज्जि - तिरहुत,
      तीरभुक्त्ति, पावन मिथिले

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  2. जयतु जानकी, जयतु मैथिली,
    जय वैदेही, जय सीते ।
    जय विदेहभू - बज्जि - तिरहुत,
    तीरभुक्त्ति, पावन मिथिले ।।

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