भजु धरणिसुता
(किर्तन)
श्रीराम सिया छथि कण – कण
मे ।
ओ बसथि सभक
अन्तर्मन मे ।
बस ध्यान धरू, सन्धान करू,
करू हुनिकहि मे
तन-मन अर्पण ।। |
भजु धरणिसुता, तनुजा –
मिथिला,
जय रामलला
दशरथ नन्दन ।
जय गौरि – महेश, गणेश, विभो,
जय पवनपुत्र मारूति - नन्दन । *
भजु धरणिसुता ...........................।।
तजि लोभ मोह, धरु राम चरण।
तजि भव माया, गहू राम चरण ।
धरु ध्यान सदा मिथिलेश - सुता,
करू राम – रमा सादर वन्दन ।
भजु धरणिसुता ...........................।।
सभ कष्ट - क्लेश - सन्ताप
हरथि ।
निज भक्तक बेड़ा पार करथि ।
करथि गरल–सुधा, कन्दुक-वसुधा,
हिय वन मे करु हुनि
अभिनन्दन ।
भजु धरणिसुता ...........................।।
श्रीराम सिया छथि कण – कण
मे ।
ओ बसथि सभक
अन्तर्मन मे ।
बस ध्यान धरू, सन्धान करू,
करू हुनिकहि मे
तन-मन अर्पण ।
भजु धरणिसुता ...........................।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५२ , अंक –१०४ , १५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।
जय जानकी मिथिला के गौरव
ReplyDeleteजयतु जानकी, जयतु मैथिली,
Deleteजय वैदेही, जय सीते ।
जय विदेहभू - बज्जि - तिरहुत,
तीरभुक्त्ति, पावन मिथिले
जयतु जानकी, जयतु मैथिली,
ReplyDeleteजय वैदेही, जय सीते ।
जय विदेहभू - बज्जि - तिरहुत,
तीरभुक्त्ति, पावन मिथिले ।।