माँ जानकी वन्दना
(किर्तन)
जगत जननी, कमल नयनी, जनक कन्या, सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि,
जनिक आसन कमल – नलिनी ।।
जनिक चरणरज पाबि धन्य भेल,
मिथिला केर पावन धरती ।
मिथिलाक मान बढ़ाओल जग मे,
मिथिला केर बनि
स्वयं बेटी ।
क्षिति तनया, श्री
मिथिलाङ्गिनी, जनक कन्या, सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि, जनिक आसन कमल – नलिनी ।।
सुर नर मुनि गन्धर्व आ
किन्नर,
जनिकर महिमा गाबथि
।
सृष्टि मे कखनहु ने श्री
बिनु,
श्रीपति पुर्ण कहाबथि ।
माँ वैदेही, श्रीराम संगिनी, जनक कन्या, सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि, जनिक आसन कमल – नलिनी ।।
जन्म लेलन्हि नारी बनि जग मे,
आदर्शहि लेल अर्पित ।
जिनगी बिताओल सघन विपिन मे,
रामहि लेल समर्पित ।
कुशक माता, लवक जननी, जनक कन्या, सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि, जनिक आसन कमल – नलिनी ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५२ , अंक –१०४ , १५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।
जय जानकी मैया।
ReplyDeleteजय सीता माए । जय मिथिले ।
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