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Tuesday, 8 May 2012

पद्य - ६३ - माँ जानकी वन्दना


माँ जानकी वन्दना
(किर्तन)



माँ वैदेही,   श्रीराम संगिनी,   जनक कन्या,  सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि,  जनिक आसन कमल – नलिनी ।।



जगत जननी,  कमल नयनी,  जनक कन्या,  सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि, जनिक आसन कमल – नलिनी ।।

जनिक चरणरज पाबि धन्य भेल,
मिथिला  केर   पावन   धरती ।
मिथिलाक मान बढ़ाओल जग मे,
मिथिला  केर  बनि स्वयं बेटी ।
क्षिति तनया, श्री मिथिलाङ्गिनी, जनक कन्या, सुता धरणी ।
अवध रानी,  रमा – रश्मि,  जनिक आसन कमल – नलिनी ।।

सुर नर मुनि गन्धर्व आ किन्नर,
जनिकर    महिमा    गाबथि ।
सृष्टि मे  कखनहु  ने  श्री  बिनु,
श्रीपति      पुर्ण    कहाबथि ।
माँ वैदेही,   श्रीराम संगिनी,   जनक कन्या,  सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि,  जनिक आसन कमल – नलिनी ।।

जन्म लेलन्हि  नारी बनि जग मे,
आदर्शहि      लेल      अर्पित ।
जिनगी बिताओल सघन विपिन मे,
रामहि      लेल      समर्पित ।
कुशक माता,  लवक जननी,  जनक कन्या,  सुता धरणी ।
अवध रानी, रमा – रश्मि,  जनिक आसन कमल – नलिनी ।।





डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टरनिगडी – प्राधिकरणपूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४



विदेह” पाक्षिक मैथिली इ  पत्रिकावर्ष मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।







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