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Tuesday 1 May 2012

पद्य - ५८ - नेनपन (बालगीत)


नेनपन (बालगीत)








खेलै – कूदै - मौज   मनाबै,
नेनपन होइ छै खेलबा लए ।
पर  पढ़ाई  सेहो  आवश्यक,
नेनपन होइ छै पढ़बा लए ।।



मीठगर – मीठगर  नीक  लगए,
पर जँ सदिखन  मिट्ठहि भेटए ।
बढ़ए  मोटापा  गेंड़ा  सन,  आ
सुस्त  मोन हो,  जी  उचटए ।
नोनगर,  खटगर,  तीत  जरूरी,
भोजन मे  रुचि  रहबा लए ।
तेँ   पढ़ाई   सेहो   आवश्यक,
नेनपन होइ छै  पढ़बा लए ।।



खेल – कूद  नेनपन  केर गहना,
व्यक्तित्वक    संपोषक    छी ।
खेल – कूद सिखबैछ बहुत किछु,
तेँ  ओ  अति  आवश्यक  छी ।
पर पढ़ाई बिनु खेल – कूद बस,
अनुचित – जीवन जिउबा लए ।
तेँ   पढ़ाई   सेहो   आवश्यक,
नेनपन  होइ छै  पढ़बा लए ।।



उचित  समय  पर  खेली  –  कूदी,
उचित समय अध्ययन - अध्यापन ।
एकक    परिपूरक    दोसर   छी,
सम्यक    अनुपातेँ    परिपालन ।
सुख – दुख जिनगी केर दू पहिया,
दुहु  जरूरी  जिउबा  लए ।
नेनपन  केर  आधार  गढ़नि पर,
जिनगी  खल – खल  हँसबा लए ।।



एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वे
द एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४,


विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५२, अंक ‍१०३, दिनांक ०१ अप्रिल २०१२, बालानाम कृते स्तम्भ मे प्रकाशित ।





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