हए बसन्ती पवन, कने धीरे तोँ चल
(गीत) 
हए  बसन्ती 
पवन !  कने 
धीरे  तोँ  चल ।
कने धीरे तोँ चल 
ने   मचा    हलचल ।
हए  बसन्ती 
पवन !  कने 
धीरे  तोँ  चल ।।
देखू कनइत अछि नगर - नगर,
सिसकैत     अछि    
गाम ।
बनल      पावन     
विदेह,
अपनहि     केर    
गुलाम ।
हे,  सुन, 
सुन गे सरित !
ने तोँ कर  छल-छल ।
हए  बसन्ती 
पवन !  कने 
धीरे  तोँ  चल ।।
पुज्य   जनकक   ई   धरती,
मशान     बनल     अछि ।
लोक   रहितहुँ    जेना    ई,
विरान     बनल     अछि ।
सुन  गे 
कोयली  कने !
ने  तोँ 
गा  चञ्चल ।
हए  बसन्ती 
पवन !  कने 
धीरे  तोँ  चल ।।
जतए  गूँजय 
छल  सदिखन,
विद्यापति     केर    
गीत ।
आइ  नचइत 
अछि   ताण्डव,
आ   गूँजैत  
अछि   चीख ।
शस्य  श्यामल 
ई  भूमि,
अछि बनल  मरूथल ।
हए  बसन्ती 
पवन !  कने 
धीरे  तोँ  चल ।।
उठू    मैथिल   युवक,
कहू   मैथिलीक  जय ।
होहु    आबहु    सतर्क,
करू   मैथिलीक 
जय ।
फूँक  शंख   रे  मधुप
!
चल  छोड़  
शतदल ।
हए  बसन्ती 
पवन !  कने 
धीरे  तोँ  चल ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५२ , अंक –१०४ , १५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।
 

 
 
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