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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Tuesday, 8 May 2012

पद्य - ६० - कहिया तक शान्ति हो ?


कहिया तक शान्ति हो ?
(आवाहन गीत)





शान्ति, शान्ति, शान्ति, शान्ति,
कहिया तक शान्ति हो ?
आबहु तँ  मिथिला आ मैथिली  ले’ क्रान्ति हो ।।


मैथिलीक  उत्थान  हो,
मैथिलीक सम्मान हो ।
भारत केर  नक्शा पर,
मिथिला केर नाम हो ।
शान्ति नञि, शान्ति नञि, क्रान्तिक आह्वान हो ।
आबहु तँ  मिथिला आ मैथिली  ले’ क्रान्ति हो ।।


घर  -  बाहर   सर्वत्र,
मैथिलीक   गान  हो ।
मैथिलीक   मान   हो,
मैथिलीक  शान   हो ।
एहि  पुनीत  यज्ञ  मे,  स्वार्थक  बलिदान हो ।
आबहु तँ  मिथिला आ मैथिली  ले’ क्रान्ति हो ।।


छलहुँ   परतन्त्र,   तखन
बातहि किछु आओर छल ।
आब  छी  स्वतन्त्र,  मुदा
तइयो  ने  बात   बनल ।*
आबहु  किए  भ्रमित  छी,  दिशा केर ज्ञान हो ।
आबहु तँ  मिथिला आ मैथिली  ले’ क्रान्ति हो ।।


शस्त्र  सँ  ने  क्रान्ति  हो,
शास्त्र   सँ   क्रान्ति  हो ।
क्रांति, क्रांति, क्रांति, क्रांति,
चेतनाक   क्रान्ति    हो ।
एकताक  तीर  सञो,  लक्ष्यक   सन्धान  हो ।
आबहु तँ  मिथिला आ मैथिली  ले’ क्रान्ति हो ।।






* महान भाषाविद् सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सनक अनुसार बिहार केर अन्तर्गत मैथिली एकमात्र एहेन भाषा छल जे वास्तव मे भाषा होयबाक सभ शर्त पूरा करैत छल मैथिली केँ बिहारक राजकाजक भाषा केर रूप मे स्वीकार करबा हेतु तत्कालीन ब्रिटिश सरकार सँ अनुरोध / अनुमोदन कएने छलाह । 

परञ्च ओहि समय भारतक स्वाधीनता संग्राम अपन चरम पर छल आ कहल गेल कि ग्रियर्शन महोदयक उपरोक्त प्रस्ताव फुटकएबाक नीति सँ प्रेरित थिक तेँ नञि मानल जएबाक चाही । मैथिल लोकनि देशहित मे (भारतक हित मे) सहर्ष बिना कोनहु विरोध केँ मैथिली लेल जिद्द छोड़ि हिन्दीक प्रचार प्रसार करबाक बात केँ स्वीकार कएलन्हि । एहि क्रम मे अंग्रेज लोकनि सँ मित्रता होयबाक बादहु तत्कालीन दड़िभंगा महाराज स्व॰ लक्ष्मीश्वर सिंह देवनागरी (हिन्दी) केर प्रचार बढ़एबाक हेतु निर्देश निर्गत कएलन्हि । एकर मतलब ई कथमपि नञि कि मैथिल लोकनि अप्पन मातृभाषा मैथिलीकेँ बिसरि गेलाह । मोन मे रहन्हि जे भारतक स्वाधीनताक बाद मैथिली आ मिथिला केँ स्वतः अपन स्थान भेटि जायत ।


अस्तु ‍१५ अगस्त ‍१९४७ ई॰ कऽ देश स्वाधीन भेल । पर मैथिली केर संग आशाक एकदम्मे विपरीय पुर्ण भेद भाव कएल गेल । भाषाक आधार पर मिथिला राज्य के कहए अपितु मैथिली केर अस्तित्वहि पर प्रश्न चिन्ह लगाओल गेल, हिन्दीक बोलीक रूप मे घोषित करबाक भरिसक दुष्प्रयास कएल गेल । नहिञे साहित्य अकादमी आ नहिञे आठम अनुसुची मे स्थान देल गेल (जे कि बाद मे कतेकहु संघर्षक बाद भेटल) । एतबहि नञि मैथिली केँ तोड़बाक हेतु आ मैथिल केँ परस्पर लड़एबाक हेतु नऽव नऽव परिभाषा सभ गढ़ल गेल । मैथिली केँ भाषाक अधिकार देमए काल अस्सी मोन पानि पड़ैत छलन्हि परञ्च तिरहुतिया, बज्जिका, अंगिका आदि मैथिलीक बोली सभ केँ स्वतन्त्र भाषाक रूप मे परिभाषित कएल गेल मैथिल लोकनिक देशहित मे कएल गेल काज वा देशभक्तिक ई केहेन पारितोषिक छल, से नहि जानि ??????






डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टरनिगडी – प्राधिकरणपूणा (महाराष्ट्र) – ४११०४४



विदेह” पाक्षिक मैथिली इ  पत्रिकावर्ष मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।



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