कहिया तक शान्ति हो ?
(आवाहन गीत)
शान्ति, शान्ति, शान्ति,
शान्ति,
कहिया तक शान्ति हो
?
आबहु तँ मिथिला आ मैथिली ले’ क्रान्ति हो ।।
मैथिलीक उत्थान
हो,
मैथिलीक सम्मान हो ।
भारत केर नक्शा पर,
मिथिला केर नाम हो ।
शान्ति नञि, शान्ति नञि,
क्रान्तिक आह्वान हो ।
आबहु तँ मिथिला आ मैथिली ले’ क्रान्ति हो ।।
घर -
बाहर सर्वत्र,
मैथिलीक गान
हो ।
मैथिलीक मान
हो,
मैथिलीक शान
हो ।
एहि पुनीत
यज्ञ मे, स्वार्थक
बलिदान हो ।
आबहु तँ मिथिला आ मैथिली ले’ क्रान्ति हो ।।
छलहुँ परतन्त्र,
तखन
बातहि किछु आओर छल ।
आब छी
स्वतन्त्र, मुदा
तइयो ने बात
बनल ।*
आबहु किए
भ्रमित छी, दिशा केर ज्ञान हो ।
आबहु तँ मिथिला आ मैथिली ले’ क्रान्ति हो ।।
शस्त्र सँ ने क्रान्ति हो,
शास्त्र सँ क्रान्ति
हो ।
क्रांति, क्रांति, क्रांति,
क्रांति,
चेतनाक क्रान्ति
हो ।
एकताक तीर
सञो, लक्ष्यक सन्धान
हो ।
आबहु तँ मिथिला आ मैथिली ले’ क्रान्ति हो ।।
* महान भाषाविद् सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सनक अनुसार बिहार केर अन्तर्गत मैथिली एकमात्र एहेन भाषा छल जे वास्तव मे भाषा होयबाक सभ शर्त पूरा करैत छल । ओ मैथिली केँ बिहारक राजकाजक भाषा केर रूप मे स्वीकार करबा हेतु तत्कालीन ब्रिटिश सरकार सँ अनुरोध / अनुमोदन कएने छलाह ।
परञ्च ओहि समय भारतक स्वाधीनता संग्राम अपन चरम पर छल आ कहल गेल कि ग्रियर्शन महोदयक उपरोक्त प्रस्ताव फुटकएबाक नीति सँ प्रेरित थिक – तेँ नञि मानल जएबाक चाही । मैथिल लोकनि देशहित मे (भारतक हित मे) सहर्ष बिना कोनहु विरोध केँ मैथिली लेल जिद्द छोड़ि हिन्दीक प्रचार – प्रसार करबाक बात केँ स्वीकार कएलन्हि । एहि क्रम मे अंग्रेज लोकनि सँ मित्रता होयबाक बादहु तत्कालीन दड़िभंगा महाराज स्व॰ लक्ष्मीश्वर सिंह देवनागरी (हिन्दी) केर प्रचार बढ़एबाक हेतु निर्देश निर्गत कएलन्हि । एकर मतलब ई कथमपि नञि कि मैथिल लोकनि अप्पन मातृभाषा “मैथिली” केँ बिसरि गेलाह । मोन मे रहन्हि जे भारतक स्वाधीनताक बाद मैथिली आ मिथिला केँ स्वतः अपन स्थान भेटि जायत ।
अस्तु १५ अगस्त १९४७ ई॰ कऽ देश स्वाधीन भेल । पर मैथिली केर संग आशाक एकदम्मे विपरीय पुर्ण भेद – भाव कएल गेल । भाषाक आधार पर मिथिला राज्य के कहए अपितु मैथिली केर अस्तित्वहि पर प्रश्न चिन्ह लगाओल गेल, हिन्दीक बोलीक रूप मे घोषित करबाक भरिसक दुष्प्रयास कएल गेल । नहिञे साहित्य अकादमी आ नहिञे आठम अनुसुची मे स्थान देल गेल (जे कि बाद मे कतेकहु संघर्षक बाद भेटल) । एतबहि नञि मैथिली केँ तोड़बाक हेतु आ मैथिल केँ परस्पर लड़एबाक हेतु नऽव नऽव परिभाषा सभ गढ़ल गेल । मैथिली केँ भाषाक अधिकार देमए काल अस्सी मोन पानि पड़ैत छलन्हि परञ्च तिरहुतिया, बज्जिका, अंगिका आदि मैथिलीक बोली सभ केँ स्वतन्त्र भाषाक रूप मे परिभाषित कएल गेल । मैथिल लोकनिक देशहित मे कएल गेल काज वा देशभक्तिक ई केहेन पारितोषिक छल, से नहि जानि ??????
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष –५, मास –५२ , अंक –१०४ , १५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment