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Tuesday, 8 May 2012

पद्य - ५९ - जयति जयति मिथिले


जयति जयति मिथिले
(जन्मभूमि स्तुति गीत)



जय शत् – सरिते अमिय – वाहिनी ।
मिथिला – भू   जीवन – प्रदायिनी ।
अमिय चरणरज माए मैथिलीक, पाबि धन्य गंगे ।।

(नोट - ई दुहु मानचित्र भाव - प्रदर्शक आ प्रतीकात्मक थिक, मिथिलाक वास्तविक सीमादर्शक नञि ।)

(मिथिलाक इएह नदी सभ जे कि बाढ़ि आनैत अछि, से वास्तव मे समुद्र सँ दूर मिथिलाक लेल जीवनप्रदायिनी सेहो अछि ।)



जय शत् – सरिते अमिय – वाहिनी ।
मिथिला – भू   जीवन – प्रदायिनी ।
अमिय चरणरज माए मैथिलीक, पाबि धन्य गंगे ।।

(नोट - ई दुहु मानचित्र भाव - प्रदर्शक आ प्रतीकात्मक थिक, मिथिलाक वास्तविक सीमादर्शक नञि ।)

(मिथिलाक इएह नदी सभ जे कि बाढ़ि आनैत अछि, से वास्तव मे समुद्र सँ दूर मिथिलाक लेल जीवनप्रदायिनी सेहो अछि ।)






जय  हे !
जयति  मिथिला ।
जयति  मिथिले  
जय कवि - कोकिल - अमिय - वाङ्गमय,
जयति, जयति  मिथिले ।।


जय मिथिला – भू तरण – तारिणी ।
श्रीसीते   निज   गर्भ   धारिणी ।
नतमस्तक तोरा आगाँ माँ, जन्मभूमि मिथिले ।।


जय शत् – सरिते अमिय – वाहिनी ।
मिथिला – भू   जीवन – प्रदायिनी ।
अमिय चरणरज माए मैथिलीक, पाबि धन्य गंगे ।।


जय मिथिला धन जन वन उपवन ।
जय मिथिला केर पुज्य हरेक कण ।
बारम्बार करी स्तुति हम, जयति जयति मिथिले ।।




डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”                                
एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा                                   
कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४



विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ५२ , अंक ‍१०४ , ‍१५ अप्रिल २०१२ मे “स्तम्भ ३॰७” मे प्रकाशित ।




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