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Tuesday, 15 November 2011

पद्य - २३ - अहाँ सपनहि मे आबै छी, आयल करू

अहाँ सपनहि मे आबै छी, आयल करू
(गज़ल)



हम चाही ने आओर  किछु, अहँ सँ प्रिय ।
अहँ बनि कऽ गुलाब, मुस्किआयल  करू ।।




अहाँ  सपनहि मे  आबै छी,  आयल करू ।
मोन सपनहि मे  क्षणिकहु, जुड़ायल करू ।।

हम चाही ने आओर  किछु, अहँ सँ प्रिय ।
अहँ बनि कऽ गुलाब, मुस्किआयल  करू ।।

पाबि सकलहुँ ने अहँ केँ जदपि हम प्रिय ।
अहँ ओहिना,  कौमुदि केँ  लजायल करू ।।

अहँ  दूरहि  रही,  अहाँ  अनकहि  सही ।
दीप   प्रेमक   हमेशा,   जड़ायल   करू ।।

प्रेम  प्रेमहि  रहत , ओ   मेटा ने सकत ।
अहँ  चाही तऽ  सपनहु  ने  आयल करू ।।

प्रेम  मोनक  मिलन,  नहि  कामक  सदन ।
अहँ  जाहि ठाँ  छी, ओहि ठाँ फुलायल करू ।।

 विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४७, अंक , ‍दिनांक - १ नवम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।

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