अहाँ सपनहि मे आबै छी, आयल करू
(गज़ल)
अहाँ सपनहि मे आबै छी, आयल करू ।
मोन सपनहि मे क्षणिकहु, जुड़ायल करू ।।
हम चाही ने आओर किछु, अहँ सँ प्रिय ।
अहँ बनि कऽ गुलाब, मुस्किआयल करू ।।
पाबि सकलहुँ ने अहँ केँ जदपि हम प्रिय ।
अहँ ओहिना, कौमुदि केँ लजायल करू ।।
अहँ दूरहि रही, अहाँ अनकहि सही ।
दीप प्रेमक हमेशा, जड़ायल करू ।।
प्रेम प्रेमहि रहत , ओ मेटा ने सकत ।
अहँ चाही तऽ सपनहु ने आयल करू ।।
प्रेम मोनक मिलन, नहि कामक सदन ।
अहँ जाहि ठाँ छी, ओहि ठाँ फुलायल करू ।।
“विदेह” पाक्षिक मैथिली इ – पत्रिका, वर्ष – ४, मास – ४७, अंक – ९४, दिनांक - १५ नवम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment