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Tuesday, 1 November 2011

पद्य - ‍१७ - सुनू यौ भारत केर सरकार !

 
  सुनू यौ भारत केर सरकार ! 
      (आह्वान गीत)
               
किन्नहु आब ने रहतीह  मैथिली, ककरहु     चरणक     दासी ।
लेब      अपन      अधिकार ,रहब हम  लऽ कऽ अप्पन थाती ।।
(मिथिलाक ऐतिहासिक व सांसकृतिक स्मारक वा साक्ष्य सभ - जकरा कि "विश्व धरोहड़ि" एवं "पर्यटक स्थल" होयबाक चाहैत छल - उपेक्षित अछि । कतहु महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, सरकारी कार्यालय तऽ कतहु सरकारी आवास बनल अछि । कत्तहु मात्र अधिग्रहणक बोर्ड लगा कऽ छोड़ि देल गेल अछि । भारत व बिहार सरकारक एहि प्रकारक उदासीनता व दुर्व्यवहार सँ ई धरोहड़ि वा साक्ष्य सभ नाश भऽ रहल अछि । संगहि मिथिलाक गौरवशाली इतिहासक साक्ष्य सभ मेटाओल जा रहल अछि - मिथिलाक अन्दर सेहो आ बाहर सेहो।) 




सुनू यौ भारत केर सरकार !
सुनू यौ भारत केर सरकार !!

नञि  माँगय  छी  भीख  हऽम, निज माँगै छी अधिकार ।
सुनू यौ भारत केर सरकार !!

जाहि  धरती पर  जन्म लेलहुँ हम,
जाहि   धरती  पर  खेल  केलहुँ ।
पीबि जकर हम अमिय सलिल नित, 
अन्न   खाय   प्रतिपाल   भेलहुँ ।
माँगि  रहल  छी,  माए  मैथिलीक  पावन निर्मल प्यार ।
सुनू यौ भारत केर सरकार !!

जन्महिसँ   सिखलहुँ  जे  बाजब,
जाहि  भाषासँ  दुनिञा  जनलहुँ ।
जकर ज्ञान - गंगामे   नहा  हम,
वाणी रुपी  रुपी रत्नकेँ  पओलहुँ ।
माँगि  रहल  छी,  ओहि भाषामे भाव - ज्ञान - सञ्चार ।
सुनू यौ भारत केर सरकार !!

किन्नहु आब ने  रहतीह  मैथिली,
ककरहु     चरणक      दासी ।
लेब       अपन      अधिकार,
रहब हम  लऽ कऽ अप्पन थाती ।
शान्ति  समाहित  क्रान्ति  ज्वालसँ,  दूर करब  अन्हार ।
सुनू यौ भारत केर सरकार !!

लेब  अपन  अधिकार,  मैथिलक
स्वाभिमान  अछि  जागि  उठल ।
निज समृद्धि, उन्नति, विकाश केर,
नूतन  पथ   अछि  बना  रहल ।
आब ने रहतीह मिथिला - शिथिला, ने सहतीह अत्याचार ।
सुनू यौ भारत केर सरकार !!

रोकि   सकैछ   ने   केओ  आइ,
कोशी - कमलाक  उमड़ल  धारा ।
बान्हि  सकैछ  की   केओ   हवा,
पहिरा  सकइछ  ओकरा   काड़ा ?
देब  जवाब  डूबा  ओकरा ,  जे  रोकत निज  करुआरि ।
सुनू यौ भारत केर सरकार !!



विदेहपाक्षिक मैथिली इ पत्रिका, वर्ष , मास ४७, अंक ९३, ‍दिनांक - १ नवम्बर २०११, स्तम्भ ३॰७ मे प्रकाशित ।

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