हम कनितहु, कानि ने सकइत छी
(गीत)
सौभाग्य जे प्रिय अहँ नारी थिकहुँ,
नोरहु केर भाषा जनइत छी ।
पर हमर विवशता तऽ देखू,
हम कनितहु, कानि ने सकइत छी ।।
|
की हाल कहू, हम अहँ सँ प्रिय,
सब हाल तऽ अपने जनितहि छी ।
हम एहि ठाँ दूर, अहाँ सँ प्रिय,
चुप रहितहुँ सदिखन, कनितहि छी ।।
हर एक क्षण अहाँ हमर सन्मुख,
हम याद अहीं केँ करइत छी ।
अछि भेल जेना निन्नहु उन्मुख,
भरि राति तरेगन गनइत छी ।।
चन्ना मे देखि अहँक मुख छवि,
जँ धीर कने हम धरइत छी ।
तऽ देखि कलंक, प्रिय अहँ केँ,
चानहु बुझबा सँ डरइत छी ।।
हे प्राण हमर ! अहँ जुनि पुछू,
हम अहँ बिनु कोना कऽ रहइत छी ।
संदेह करब अहँ जुनि कनिञो,
हम अहीँ केर पूजा करइत छी ।।
सौभाग्य जे प्रिय अहँ नारी थिकहुँ,
नोरहु केर भाषा जनइत छी ।
पर हमर विवशता तऽ देखू,
हम कनितहु, कानि ने सकइत छी ।।
No comments:
Post a Comment