खड़गोश या खरगोश (बाल कविता)
संस्कृतक जे शशक - शशा छी,
तकरा बूझियौ खढ़िआ
।*१
इएह भारतमे छल पहिनेसँ,
काछुसँ हारल खढ़िआ
।।*२
एकरहि सनि एक आओर जीव,
अन्तऽसँ भारत आयल ।
खड़ेहहि सनि देखबामे छल तेँ,
ओ खड़गोश कहाओल ।।*३
खड़ेहा ने पोशुआ
कत्तहु अछि,
छी ओ शुद्ध - बनैया ।
खड़गोशक दुहु अछि प्रकार,
पोशुआ आओर बनैया ।।*४
खढ़िआ केर आबास प्राकृतिक,
छी धरती केर ऊपर ।
खड़गोशक अछि बास बियरिमे,
जे धरती केर भीतर
।।*५
खढ़िआ केर बच्चा
जन्महिसँ,
दृष्टियुक्त
स्वनिर्भर ।
खड़गोशक नवजात शिशु
सभ,
असहाय ओ आन्हर ।।*६
संकेत
आ किछु रोचक तथ्य -
*१ - क्रमिक जैविक
उद्विकाश वा जैविक क्रमविकाशमे (ORGANIC EVOLUTION) कोनहु जीवक उत्पत्ति जाहि भूभाग वा
भूखण्ड पर भेल अछि, ओ जीव एखनहु यदि ताही भूखण्ड पर पाओल जाइत अछि तँऽ ओहि
जीवविशेषकेँ ओहि विशेष भूखण्डक “मूल जीव-वंश (NATIVE GENUS / GENERA)” या “मूल जीव-जाति (NATIVE SPECIES)” कहल जाइत अछि । खढ़िआ या खड़ेहा (HARE) केर किछु जाति (SPECIES) विश्वक आन ठामक अतिरिक्त भारतहु केर मूल निवासी (NATIVE SPECIES) अछि । ओ भारतमे आदिकालहिसँ रहैत आबि रहल अछि । तेँ
संस्कृतक “शशा/शशक” शब्दसँ वास्तवमे जाहि जीव-जातिक बोध
होइत अछि से खड़ेहा वा खढ़िआ थिक,; नञि कि - खड़गोश ।
*२ - पञ्चतन्त्रमे
जे आलसी “शशक” आ सतत प्रयत्नशील “कच्छप” केर प्रशिद्ध
खिस्सा अछि ताहिमे “शशक” माने “खढ़िआ” या “खड़ेहा” अर्थ लेबाक चाही नञि कि “खड़गोश” ।
*३ - भारतक खड़गोश बेसीतर पोशुआ खड़गोश अछि जे कि यूरोपक
खड़गोश (EUROPEAN RABBIT (Oryctolagus cuniculus) अछि आ भारत केर मूल निवासी नञि अछि । खड़गोशक सभ
वंश वा जाति भारतक लेल आयातित वा समावेशित वंश वा जाति
(INTRODUCED GENUS / SPECIES) थिक । ओकर रंग - रूप भारतक खढ़िआ या खड़ेहासँ मिलबाक कारण ओकरा “खड़गोश” कहल जाय लागल ।
*४ - खढ़िआ/खड़ेहा पोशुआ (DOMESTIC) नञि होइत अछि । ओ मात्र बनैया (WILD) होइत अछि । मुदा, खड़गोश - बनैया आ पोशुआ - दुहु प्रकारक होइत अछि ।
*५ - खढ़िआ/खड़ेहा खऽढ़,
खरही या आन ताहि तरहक प्राकृतिक झाड़ी सदृश (BUSHY) जंगली आवास - क्षेत्रमे रहैत अछि । ओ रहबा लेल बियरि (बिल) नञि बनबैत अछि
अपितु जमीनहि पर अऽढ़ जगह पर सुखायल घास - फूस केँ जमा कए रहबा लेल अस्थाई घऽर
बनबैत अछि । मुदा, खड़गोश हमेशा जमीनक भीतर बियरि या बिल (UNDERGROUND BURROW / RABBIT HOLES) बना कऽ रहैत अछि ।
*६ - खड़गोशक जन्मौटी बच्चासभ जन्मक समयमे आन्हर होइत
अछि, ओकर देह पर रोइञा नञि रहैत अछि आ स्वतन्त्र रूपसँ चलबा - फिरबामे असहाय होइत
अछि । तकर विपरीत, खढ़िआ/खड़ेहाक जन्मौटी बच्चासभ (नवजात शिशुसभ)
केर आँखि पुर्ण विकसित ओ दृष्टियुक्त होइत अछि, ओकर देह पर पर्याप्त रोइञा होइत
अछि आ ओ सभ स्वतन्त्र रूपसँ चलबा - फिरबा योग्य होइत अछि ।
किछु
विशेष बात -
अपना दिशि
पहिने बूढ़-पुरान लोकनि कहैत छलाह - “खढ़िआ पोख नञि मानैत अछि” । ताहि वक्तब्यसभसँ ध्वनित होइत अछि जे पहिने “पोषुआ” शब्दमे “मुर्धन्य ष” होइत छल जे क्रमशः “तालव्य श” आ “दन्त्य स” मे बदलैत गेल । तेँ हम उपरुका कविता ओ चित्रमे पोशुआ या पोसुआ
केर स्थान पर “पोषुआ” शब्द जानि-बूझि
कऽ प्रयोग कयल अछि । एहि क्रममे एकटा बात आओर जे मैथिलीक बूढ़ या बूढ़ाक अर्थ
हिन्दीक बूड्ढा नञि कऽ देबाक चाही । हिन्दीक
बुड्ढा अपमानसूचक थिक जखनि कि मैथिलीक
बूढ़ा या बूढ़-पुरान (अथवा बूढ़ - पुरैनिञा) केर संग सम्मान सूचक
क्रिया वा सहायक क्रिया आबैत अछि ।
मैथिली पाक्षिक
इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 205म अंक (01 जुलाई 2016) (वर्ष 9, मास 103, अंक 205) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे प्रकाशित ।
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