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मिथिलाक पर्यायी नाँवसभ

मिथिलाभाषाक (मैथिलीक) बोलीसभ

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Sunday, 14 February 2016

पद्य - ‍१६० - चकोर (बाल कविता)

चकोर (बाल कविता)




अहाँ  नील गगन केर  चन्दा,
हम  छी  धरतीक   चकोर ।
गाबै छथि  ई  गीत  भाइजी,
भऽ कऽ  बड़  भाव-विभोर ।।*

शायद   जिनगीमे    भैय्या,
देखल  ने  कहियो  चकोर ।
जँ देखता तँऽ  फेर ने कहता,
हम    धरतीक    चकोर ।।*

रातिमे बैसल एकटक चानकेँ,
देखल     करैछ    चकोर ।
साहित्यक छी  कोर−कल्पना,
साँच   ने  एहिमे   थोड़ ।।*

छोट लोल आ  छोटकी मूरी,
बड़की  टा  केर   पेट  छै ।
छोटकी दूटा पाँखि उड़ए नहि,
सौंसे  देह  बस  पेट  छै ।।*

तित्तिर बटेर सनि लड़ैछ ईहो,
करैछ  मनुक्खक मनोरंजन ।
इएह कारणेँ  राष्ट्र-चिड़ै कहि,
पाक  करैतछि अभिनन्दन ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

** - मैथिली सहित समस्त भारतीय साहित्यमे चान आ चकोरक उपमा-उपमेय रूपी उदाहरण प्रसिद्ध अछि । ओहने एकटा गीत केओ भाइसाहेब गाबैत छलाह आ ताहि पर आँगनक छोट मुदा नटखट भाए-बहीन सभक ई कटाक्ष भरल उक्ति अछि । ओ सभ गीतक भाव नञि बूझि शाब्दिक अर्थकेँ ध्यानमे राखि कटाक्ष कऽ रहल अछि जे चकोरक तँऽ सौंसे देहमे खाली पेटे छै तखन भाइजी ओकरा अपनासँ तुलना कोना कऽ रहल छथि; शायद भाइजी कहियो चकोर नञि देखने छथि ।

* - मैथिली सहित समस्त भारतीय साहित्यमे चान आ चकोरक जे खिस्सा-पिहानी बताओल गेल अछि से बस साहित्यिक प्रलाप थिक । ओहिमे वास्तविकता लेशमात्रो नञि अछि ।

* - बटेर आ तित्तिर जेकाँ चकोर केर लड़ाएब सेहो किछु समुदायमे प्रसिद्ध अछि । तेँ ओ मनोरंजक पक्षीक श्रेणीमे आबैत अछि । पाकिस्तानक ओ राष्ट्रिय चिड़ै अछि ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍195म अंक (‍01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक ‍154) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।


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