चकोर
(बाल कविता)
अहाँ नील गगन केर
चन्दा,
हम छी धरतीक
चकोर ।
गाबै छथि ई गीत भाइजी,
भऽ कऽ बड़ भाव-विभोर
।।*१
शायद जिनगीमे
भैय्या,
देखल ने कहियो
चकोर ।
जँ देखता तँऽ फेर ने कहता,
हम धरतीक चकोर ।।*२
रातिमे बैसल एकटक
चानकेँ,
देखल करैछ चकोर ।
साहित्यक छी कोर−कल्पना,
साँच ने एहिमे थोड़ ।।*३
छोट लोल आ छोटकी मूरी,
बड़की टा केर पेट छै ।
छोटकी दूटा पाँखि
उड़ए नहि,
सौंसे देह बस पेट छै
।।*२
तित्तिर बटेर सनि
लड़ैछ ईहो,
करैछ मनुक्खक मनोरंजन ।
इएह कारणेँ राष्ट्र-चिड़ै कहि,
पाक करैतछि अभिनन्दन ।।*४
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ *२ - मैथिली सहित समस्त भारतीय साहित्यमे चान आ चकोरक
उपमा-उपमेय रूपी उदाहरण प्रसिद्ध अछि । ओहने एकटा गीत केओ भाइसाहेब गाबैत छलाह आ
ताहि पर आँगनक छोट मुदा नटखट भाए-बहीन सभक ई कटाक्ष भरल उक्ति अछि । ओ सभ गीतक भाव
नञि बूझि शाब्दिक अर्थकेँ ध्यानमे राखि कटाक्ष कऽ रहल अछि जे चकोरक तँऽ सौंसे
देहमे खाली पेटे छै तखन भाइजी ओकरा अपनासँ तुलना कोना कऽ रहल छथि; शायद भाइजी
कहियो चकोर नञि देखने छथि ।
*३ - मैथिली सहित
समस्त भारतीय साहित्यमे चान आ चकोरक जे खिस्सा-पिहानी बताओल गेल अछि से बस
साहित्यिक प्रलाप थिक । ओहिमे वास्तविकता लेशमात्रो नञि अछि ।
*४ - बटेर आ तित्तिर
जेकाँ चकोर केर लड़ाएब सेहो किछु समुदायमे प्रसिद्ध अछि । तेँ ओ मनोरंजक पक्षीक
श्रेणीमे आबैत अछि । पाकिस्तानक ओ राष्ट्रिय चिड़ै अछि ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 195म अंक (01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक 154) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
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