हंसक
या जलपद (बाल कविता)
हम हंसक, जलपद
सेहो कहबी,
लोक तँऽ
हमरो हंस कहैए ।*१
हंस भेल
भारतसँ अलोपित,
लोक तँऽ हमरे हंस बुझैए ।।*२
हंस ओ बत्तख
दुहुक बीचमे,
हमरहि तँऽ स्थान
आबैए ।
की बेजाए हंसहि सनि हमरो,
जगमे जञो सम्मान भेटैए ??
ओहुना जगमे
कहाँ कतहु छै,
“नीर - क्षीर - विवेकी” हंस ? *३
ग्रीवक वक्रता
आ आकारकेँ,
बिसरि जाइ
तँऽ छीहे हंस ।।*४
ओहुना हंसक प्रतिनिधि रूपमे,
हमरहि अहँ सब बूझी हंस ।
ने विशिष्ट तँऽ, व्यापक अर्थमे,
हमरा मानि
सकै छी हंस ।।*५
संकेत आ किछु
रोचक तथ्य -
*१ - आकार-सुकार आ आन गुणधर्मक आधार पर “हंसक” समूहक जलीय पक्षी “हंस” तथा “बत्तख” केर बीचक जैव श्रृंखलामे अबैछ । तेँ साहित्यमे बहुधा
स्पष्ट नामकरण ओ वर्गीकरणक अभाव देखल जाइछ आ उपरोक्त तीनू शब्द भ्रामक रूपेँ
परस्पर पर्यायी जेकाँ प्रयुक्त होइत आयल अछि ।
*२ - भारतमे (विशेष
कऽ पुबारी भारत ओ नेपालमे) कतेको सए किंवा हजार वर्षसँ हंसक प्रवास नञि होयबाक
कारण उपरलिखित तथ्य क्रमशः आओरो बलगर होइत गेल अछि ।
*३ - नीर-क्षीर
विवेकी हंस अर्थात दूध आ पानिकेँ फेंटला पर पृथक करएबला हंस विश्वमे कतहु नञि होइत
अछि । ई मात्र साहित्यिक गल्प थिक, वास्तविकता नञि ।
*४ - ग्रीवा सुरेबगर
वक्रता आ देहक आकारकेँ जँ छोड़ि देल जाए तँऽ हंस ओ हंसकमे बेसी अन्तर नञि ।
*५ - ओहुना सम्पुर्ण
भारतीय उपमहाद्वीपमे वास्तविक “हंस” केर अनुपस्थितिक कारण सैकड़ों बरखसँ प्रतिनिधिस्वरूप हंसकेकेँ हंस मानल
जाइत रहल अछि ।
मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका “विदेह” केर 195म अंक (01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक 154) केर “बालानां कृते” स्तम्भमे
प्रकाशित ।
No comments:
Post a Comment