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Sunday, 14 February 2016

पद्य - ‍१५‍२ - हंसक या जलपद (बाल कविता)

हंसक या जलपद (बाल कविता)




हम हंसक, जलपद सेहो कहबी,
लोक  तँऽ  हमरो  हंस कहैए ।*
हंस  भेल  भारतसँ  अलोपित,
लोक  तँऽ  हमरे  हंस बुझैए ।।*

हंस ओ  बत्तख  दुहुक  बीचमे,
हमरहि  तँऽ  स्थान   आबैए ।
की बेजाए  हंसहि सनि  हमरो,
जगमे जञो सम्मान  भेटैए ??

ओहुना  जगमे  कहाँ कतहु छै,
नीर - क्षीर - विवेकी  हंस ? *
ग्रीवक  वक्रता  आ  आकारकेँ,
बिसरि जाइ तँऽ  छीहे  हंस ।।*

ओहुना हंसक  प्रतिनिधि रूपमे,
हमरहि  अहँ  सब  बूझी हंस ।
ने विशिष्ट तँऽ,  व्यापक अर्थमे,
हमरा  मानि  सकै  छी  हंस ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* -  आकार-सुकार आ आन गुणधर्मक आधार पर हंसक समूहक जलीय पक्षी हंस तथा बत्तख केर बीचक जैव श्रृंखलामे अबैछ । तेँ साहित्यमे बहुधा स्पष्ट नामकरण ओ वर्गीकरणक अभाव देखल जाइछ आ उपरोक्त तीनू शब्द भ्रामक रूपेँ परस्पर पर्यायी जेकाँ प्रयुक्त होइत आयल अछि ।

* - भारतमे (विशेष कऽ पुबारी भारत ओ नेपालमे) कतेको सए किंवा हजार वर्षसँ हंसक प्रवास नञि होयबाक कारण उपरलिखित तथ्य क्रमशः आओरो बलगर होइत गेल अछि ।

* - नीर-क्षीर विवेकी हंस अर्थात दूध आ पानिकेँ फेंटला पर पृथक करएबला हंस विश्वमे कतहु नञि होइत अछि । ई मात्र साहित्यिक गल्प थिक, वास्तविकता नञि ।

* - ग्रीवा सुरेबगर वक्रता आ देहक आकारकेँ जँ छोड़ि देल जाए तँऽ हंस ओ हंसकमे बेसी अन्तर नञि ।

*- ओहुना सम्पुर्ण भारतीय उपमहाद्वीपमे वास्तविक हंस केर अनुपस्थितिक कारण सैकड़ों बरखसँ प्रतिनिधिस्वरूप हंसकेकेँ हंस मानल जाइत रहल अछि



मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍195म अंक (‍01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक ‍154) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।



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