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Sunday, 14 February 2016

पद्य - ‍१५८ - माटिखोद्धी या माटिखोधी (बाल कविता)


माटिखोद्धी या माटिखोधी (बाल कविता)



बैसल - बैसल  माटि  खोधै छेँ,
माटिमे  की  तोँ  ताकै   छेँ ?
गाछ लोलसँ ठक - ठक करइत,
कठखोद्धी  सनि  लागै  छेँ ।।*

हम ने  अनेरो  माटि खोधै छी,
कीड़ा − खएबा लेल  तकै छी ।
गाछक छालकेँ खोधि-खाधि कऽ,
सेहो  अपन आहार  तकै छी ।।*

काठ खोधि  ने  धोधरि  बनबी,
कठखोद्धीसँ  भिन्न छी  हम ।*
हमर लोल  पातर - नमगर छी,
माटि खोधक  उपयुक्त जेहेन ।।*

माथ - वक्ष - गर्दनि छी  पीयर,
पीयर - नारंगी  अछि  कलगी ।
खोधए काल माटि − पंखा सनि,
शोभए  माथ  हमर  कलगी ।।*

पछिला भाग पाँखि आ नाङ्गरि,
श्वेत - श्याम   एकान्तर  छी ।
कठखोद्धी  देखब ने  माटि पर,
हमरा - ओकरामे  अन्तर छी ।।*


संकेत आ किछु रोचक तथ्य -

* - नमगर आ पातर लोलसँ माटि वा गाछक अलगल छाल पर बेरि - बेरि आघात करबाक कारण अपना दिशि सामान्य लोक एकरा प्रायः कठखोद्धी बूझि लैत अछि ।

* - माटिखोद्धी माटिक तऽरसँ आ गाछक छालक भीतरसँ कीड़ा-मकोड़ा आ ओकर अण्डा बच्चाकेँ ताकि कऽ खा जाइत अछि ।

* - माटिखोद्धी गाछक छालक भीतरसँ मात्र कीड़ा-मकोड़ाकेँ ताकि भक्षण करैत अछि; कठखोद्धी जेकाँ काठकेँ खोधि कऽ धोधरि नञि बनबैत अछि ।

* - माटिखोद्धीक लोल कठखोद्धीक लोलक अपेक्षा बहुत पातर आ नमगर होइत अछि जे किछु नम (भीजल) माटि आ गाछक अलगल छाल खोधबाक लेल विशेष उपयुक्त अछि नञि कि मजगूत काठ खोधबाक लेल ।

*- माटिखोद्धीक माथ पर नारंगी-पीयर रंगक कलगी (CROWN) होइत अछि । ई कलगी मुर्गाक कलगी जेकाँ अविभक्त नञि भऽ कऽ अरीय ढंगसँ (RADIALLY) विभक्त वा खण्डित रहैत अछि । माटि खोधबा काल ई कलगी पंखा जेकाँ फुजि जाइत अछि (FANNING) वा पसरि जाइत अछि ।

*- माटिखोद्धीक पछिला भाग पर एकान्तर क्रममे कारी आ उज्जर रंगक पट्टी रहैत अछि । माटिखोद्धी जेकाँ कठखोद्धीकेँ माटि खोधैत नञि देखब ।


मैथिली पाक्षिक इण्टरनेट पत्रिका विदेह केर ‍195म अंक (‍01 फरबरी 2016) (वर्ष 9, मास 98, अंक ‍154) केर बालानां कृते स्तम्भमे प्रकाशित ।



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